रामदेवरा गांव की स्थापना

रामदेवरा गांव की स्थापना : लोकदेवता बाबा रामदेवजी की समाधि स्थली नाम से जाना जाने वाला रामदेवरा आज पूरे भारत मे प्रसिद्ध है । रामदेवरा ही एकमात्र ऐसा ग्राम है जहा भारत का सबसे लंबा चलने वाला मेला लगता है , इस मेले मे लाखों की संख्या मे लोग बाबा रामदेवजी की समाधि स्थली के दर्शन करने आते है ।
रामदेवरा ,रानुजा को लेकर बाबा के भक्तों मे अक्सर सवाल आते है की रामदेवरा की स्थापना कैसे हुई तथा किसने की । बाबा के भक्तों के इन्ही सवालों के जवाब देने के लिए हुमने इस आर्टिकल मे रामदेवरा के सम्पूर्ण इतिहास को दिखाया है ।
रामदेवरा गांव की स्थापना का कारण –
बाबा रामदेवजी बचपन से ही सेवा को अपना पहला धर्म माना था । इसी कारण रामदेवजी ने अपने सम्पूर्ण जीवन सेवा धर्म को सबसे ऊंचा रखा था । परंतु बाबा रामदेव जी की सेवा धर्म व भेदभाव ना करके सभी के साथ मिलजुल कर रहना नगर मे कुछ ठेकेदारों को पसंद नहीं था । उनका मानना था कि बड़े लोग को इन छोटे लोगों के मुंह नहीं लगना चाहिए ।
जब बाबा रामदेवजी को लोगों की इस सोच का पता चला तब रामदेवजी को बहुत दुख हुआ और बाबा रामदेवजी ने जल्द ही इस समस्या के निवारण करने का सोचा । रामदेव जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने महल को त्यागने का निर्णय लिया , ताकि वे मतभेद वाले लोगों से दूर रह सके । बाबा रामदेवजी के महल त्यागने का समाचार अजमाल जी और समस्त नगर को मिला तब सभी रामदेव जी के पास पहुंचे और महल छोड़ने का कारण पूछा ।
रामदेवरा गांव की स्थापना का उद्देश्य –
रामदेव जी ने सभी की चिंताओं का निवारण करते हुए कहा की मै एक ऐसे नगर में नहीं रह सकता जहां पर ऊंच-नीच की भावना तथा जाति भेदभाव हो । अंतः मै अब एक ऐसे नगर की स्थापना करने जा रहा हूं जहां पर किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होगा , सभी लोग जाति, धर्म, ऊंच-नीच के भेदभाव की भावना को त्याग मिलजुल कर निवास करेंगे ।
रामदेवरा गांव की स्थापना
बाबा रामदेवजी ने अपने पिता राजा अजमालजी से कार्य सफलता का आशीर्वाद लेकर जाने की आज्ञा मांगते है । साथ ही रामदेवजी यह भी घोषणा की कि जो कोई उनके साथ आना चाहे वह आ सकता है । रामदेव जी ने अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए पोकरण को छोड़ कर नए नगर बसाने के लिए निकल पड़े । रामदेवजी ने पोकरणगढ़ से लगभग 12 किलोमीटर दूर जाकर अपने नए नगर की स्थापना की जिसका नामकरण रुणिचा नगरी रामदेवरा किया ।
बाबा रामदेव जी का रुणिचा के राजा के रूप में तिलक हुआ तभी से रामदेवजी का नाम रूनीचा र राज्य और राणुजा रा धणीया पड़ा । रुणिचा नगर को रामदेव जी ने बड़ा ही खूबसूरत बनाया जहां सभी लोग जात-पात से परे मिलजुल कर रहने लगे । धीरे-धीरे रुणिचा नगर की ख्याति आसमान को छूने लगी|
बाबा रामदेवजी के कड़ी मेहनत से इस नगर की स्थापना हुई जहा पर भेदभाव का बिल्कुल ही स्थान नहीं था । रामदेवरा मे सभी लोग मिलजुल कर रहने लगे ।
बाबा रामदेवजी के मंदिर की स्थापना – baba ramdevji mandir ki sthapna
बाबा रामदेवजी ने जब अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा होते हुवे देखा तब बाबा ने जीवित समाधि लेने का निर्णय लिया । बाबा रामदेवजी ने अपने ही द्वारा बसाये गये नगर रामदेवरा को ही अपनी समाधि स्थली के रूप मे चुना । तथा रामदेवरा मे ही रामसरोवर के पास ही जीवित समाधि ली ।
बाबा रामदेवजी के समाधि लेने के पश्चात उनकी पत्नी रानी नेतलदे ने बाबा रामदेवजी की समाधि पर एक इसे मंदिर का निर्माण कराया जहा हर कोई बिना कोई जाती ,धर्म के भेदभाव के एक ही छत के नीचे बाबा की समाधि के दर्शन कर सके । समय के साथ साथ बाबा रामदेवजी के मंदिर का निर्माण होता रहा ।
बाबा के चमत्कारों को पूरी दुनिया ने मन जिसके फलस्वरूप रामदेवरा प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दूज को बाबा की समाधि स्थली पर ब\\मेले का आयोजन किया जाने लगा । यह मेला इतना विशाल होता है की मेले मे प्रतिदिन लगभग एक लाख से भी ज्यादा बाबा के भक्त दर्शन करते है ।
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