रामदेव जी का ब्यावला
बाबा रामदेवजी के इतिहास के बारे आप सभी ने किसी न किसी लेख मे अवश्य पढ़ और सुनने को मिलता परंतु बाबा रामदेव जी का ब्यावला का विस्तार से विवरण बहुत कम जगह आपको देखने को मिलता है । बाबा रामदेवजी के ब्याव का जिक्र आपको आपको इतिहास की बजाय ज्यादातर गीतों मे मिलता है ।
आज इस आर्टिकल मे हम आपको बाबा रामदेव जी का ब्यावला तथा सम्पूर्ण विवाह मे हुई घटनाए जानने को मिलेगी । आइए बाबा रामदेव जी का ब्यावला पर विस्तार से चर्चा करते है ।

रामदेव जी का ब्यावला
रामदेव जी ने अपनी बहन सुगना का विवाह बड़े ही धूमधाम के साथ किया तथा प्रसन्नता के साथ अपनी बहन को ससुराल भेजा। समय बीतता गया और अजमाल जी के लिए रामदेवजी का विवाह चिंता का विषय बनने लगा । इसी बीच अजमाल जी के पास राजगुरू रामदेवजी का विवाह प्रस्ताव लाए । राजगुरू अमरकोट के राजा दलजी सोढ़ा की पुत्री नेतलदे का विवाह प्रस्ताव अजमाल जी के सामने रखा ।
लोक मान्यता के अनुसार नेतलदे को रुखमणि का अवतार माना जाता है । दलजी सोढ़ा जी को रामदेवजी के चमत्कारों से व्याकिप्त थे, वे जानते थे कि रामदेवजी कोई साधारण मनुष्य नहीं है अपितु आलौकिक शक्ति है । इसी को ध्यान में रखकर दलजी सोढ़ा ने अपनी पुत्री नेतलदे का विवाह प्रस्ताव रामदेवजी के लिए भेजा और रामदेवजी और अजमाल जी को अंधेरे में रखकर यह बात उनसे छिपाई ।
रामदेवजी का विवाह प्रस्ताव
अजमाल जी ने रामदेवजी का विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और जल्द ही बारात बुलाने का संदेश अमरकोट के राजा दलजी सोढ़ा को भेजा । नगर में रामदेवजी का विवाह ढिंढोरा पीटा गया ,सभी लोगों को रामदेवजी के विवाह के ख़ुशख़बरी दी गई। महल के चारों और खुसी का माहौल छा गया सभी लोग रामदेवजी के विवाह की तैयारियों में जुट गए ।
नगर को दुल्हन की तरह सजाया गया और अलग – अलग पकवान बनाए गए नगर में सभी लोग रामदेवजी के विवाह के लिए उत्साहित थे । सोंढा ने कूकू पत्री के साथ टीके के रूप में सोने व चाँदी से बना हुआ विवाह का नारियल अजमाल जी के यहाँ भेजा । अजमाल जी ने बड़े ही आदरभाव सम्मानपूर्वक विवाह नारियल को स्वीकारा ।
रामदेवजी का विवाह की घड़ियाँ नज़दीक आइ अजमाल जी ने सर्वप्रथम पूज्य श्री गणेशजी का श्रंगार कर पूजन किया और निरविग्न विवाह को सफल बनाने की प्रार्थना की । तत्पश्चात अन्य देवी देवताओं का श्रंगार कर पूजा अर्चना की । इसके बाद सभी देवी देवताओं का ध्यान कर अमरकोट में नेतलदे के लिए सगुन का नारियल व अन्य उपहार भेजे गए ।
अजमाल जी ने सभी वेद पंडितों को विवाह का शुभ मुहूर्त निकालने के लिए आग्रह किया । अजमाल जी के आग्रह पर सभी विद्वान अपने ग्रंथों सहित अजमाल जी के महल पहुँचे । पंडितों ने ग्रंथों और दोनो वर वधू की कुण्डली को ध्यान में रखकर शुभ मुहूर्त निकाला। मुहूरत निकालने के साथ ही विवाह उत्सव का शुभारंभ हुआ ।
अजमाल जी ने मुहूरत के अनुसार विवाह की कुं कुं पत्री को छपवाया। कुं कुं पत्री को अजमाल जी ने अपने सभी सगे संबंधियों को भेजा व राजा महाराजाओं भिजवाकर बड़े ही प्रेम पूर्वक विवाह मे शामिल होने के लिए न्यौता भेजा ।
पूंगलगढ़ विजय
अजमाल जी ने अपने सभी सगे संबंधियों को विवाह में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा परंतु विशेष रूप से अपनी पुत्री सुगना के ससुराल निमंत्रण भेजने का दायित्व रंदेवजी को सोपा । रामदेव जी ने अपनी प्रिय बहन सुगना को लाने व अपने संबंधी को शादी में शामिल होने के लिए रतना राइका के साथ निमंत्रण भेजा। रतना राइका अपने ऊठ पर सवार होकर पूँगलगढ़ के लिए अपनी यात्रा शुरू की ।
रतना कुछ दिनों मे पूँगलगढ़ पहुच गया । वहाँ पर रतना राइका पड़िहार राजा किशन सिंह को रामदेवजी के विवाह का निमंत्रण दिया और बहन सुगना को अपने साथ पीहर ले जाने की आज्ञा माँगी। राजा किशन सिंह ने विवाह निमंत्रण ठुकरा कर सुगना को पीहर जाने से मना कर दिया और राइका को जेल में क़ैद कर दिया । राजा किशन सिंह रामदेवजी से नफ़रत करते थे जिसके दो कारण थे पहला जब रामदेव जी ने किशन सिंह के पिता जी का अपमान किया था तथा दूसरा उनको रामदेव जी का नीची जात के लोगों के साथ उठना बैठना पसंद नहीं था ।
रामदेवजी का पुंगलगढ़ प्रस्थान
राजा किशन सिंह का यह व्यवहार देख रतना बहूत दुखी हुआ और अपने प्रभु रामदेवजी से कोई चमत्कार करने की विनती करने लगता है । रामदेव जी रतना की पुकार सुन पुंगलगढ़ के लिए निकल पड़ते हैं। रामदेव जी के आने की सूचना परिहारों को जैसे ही मिली उन्होंने पूरे नगर की घेराबंदी कर दी। नगर की चारों ओर सेना तैनात कर दी तथा महल के बुर्ज पर तोफ़े तैनात कर दी ।
रामदेवजी के पुंगलगढ़ पहुँचते ही पड़िहारों ने आक्रमण कर दिया । तब रामदेव जी ने अपनी शक्ति से एक देव सेना की टुकड़ी तैयार कर दी और पड़ीहार से मुक़ाबला किया । रामदेवजी की सेना को जीतते देख पड़िहार तोफ के गोले बरसाने शुरू कर दीए परंतु रामदेव जी दिव्य शक्ति से गोले फूल में परिवर्तन हो गए । अंतत पड़िहारों ने रामदेवजी के सामने घुटने टेक दिए तथा अपनी हार स्वीकार की ।
रामदेव जी ने पड़ीहारों को क्षमा कर विवाह में शामिल होने का आग्रह किया तथा सुगना हो ले जाने की अनुमति मांगी । परिहारों ने रामदेवजी के आग्रह को स्वीकार कर सुगना बाई को विवाह में शामिल होने की अनुमति दे दी और रतना राइका को जेल से स्वतंत्र कर दिया । सुगना बाई ने अपने सास ससुर से अपने विवाह में जाने की अनुमति ली तथा रतना राइका और अपने बेटे के साथ महल में प्रस्थान करती है।
रामदेवजी अपनी बहन के आगे आगे चल मार्ग प्रसस्त करते हुए अपनी नगरी पहुँचते हैं , जहाँ पर उनका भव्य स्वागत किया जाता है। सुगना बाई अपने वीरा के विवाह के लिए बहुत खुश है और बड़े ही धूमधाम से विवाह की तैयारियां करती है ।
रामदेवजी का विवाह
रामदेव जी का ब्यावला का मुहूर्त नज़दीक आया रामदेवजी को घृत पान कराकर बंदोली निकाली गई तत्पश्चात् प्रीतिभोज का आयोजन किया गया जिसमें तरह तरह के व्यंजन बनाए गए । प्रीतिभोज में पधारे गए सभी मेहमान बड़े ही चाव से भोजन का लुफ्त उठाते है । रामदेव जी का दूल्हे के रूप में श्रंगार किया गया पूरा नगर मे ढोल नगाड़ों की आवाज से गूंज उठ रहा थी और महिलाओं के द्वारा विवाह मंगल गीतों का गायन किया गया ।
रामदेव जी ने दूल्हे के वस्त्र धरण कर सोने वह हीरे मोती से जड़ित मुकुट को धरण कीया। रामदेव जी दूल्हे के रूप में देखकर ऐसा लग रहा था मानो जैसे किसी सूर्य का तेज रंदेवजी मे समा गया हो । बारात के लिए घोड़े ,ऊँट और रथ सुसज्जित किए गए तथा घोड़ो – हाथियों को आकर्षक दिखने के लिए उनका श्रंगार किया गया ।
रामदेवजी की सवारी के लिया विशेष रथ को सुसज्जित किया गया तथा रथ को सुंदर मगली वस्त्रों से रथ को सजाया गया । सफर के लिए खाने पीने व रुकने के लिए टेंट की व्यवस्था को ध्यान में रखकर आवश्यक सामान को गाडो पर लादा गया । बारात अब प्रस्थान करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी थी।
रामदेव जी को रथ पर विराजमान करके गाजा बाजों के साथ बारात अमरकोट के लिए रवाना हो गई और कुछ ही दिनों में बारात अमरकोट पहुँच गई । अमरकोट के सैनिकों ने बारात आगमन की सूचना सोंडा सरदार को दी। दलजीत सोढा ने आदर भाव से बारात का स्वागत किया तथा रामदेव जी को विशिष्ट आसन प्रदान कर उनकी आरती उतारी गई । अमरकोट के सभी नगरवासी रामदेवजी को सूर्य के समान तेजस्वी रूप को देखकर मोहित हो गए।
बारात के लिए जलपान की व्यवस्था कराई गई तत्पश्चात् आवश्यक रस्मों को पूर्ण कर रामदेव जी को तोरन पर लाया गया । इस दौरान मांगलिक गायन के साथ साथ रामदेव जी को विशिष्ट आसन प्रदान कर उनकी आरती उतारी गई और रामदेव जी को चवरी की तरफ़ ले जाकर विराजमान किया गया । जहाँ पर पहले से ही नेतलदे वधू के रूप में विराजमान थी । नगरवासियों तथा बारातियों को रामदेवजी के विवाह के लिए बड़ा उत्साह था जिसके कारन पधारे सभी लोग विवाह की रस्मों का आनंद ले रहे थे ।
रानी नेतलदे को पर्चा
विवाह की रस्म को शुरू किया गया पंडित द्वारा विवाह के लिए मंत्रोच्चारण किया जा रहा था। सोढा सरदार ने रामदेव जी के सर्व प्रथम चरण पखार कर तिलक किया तत्पश्चात कन्यादान के लिए रामदेव जी हाथ में नेतलदे का हाथ मंत्रोच्चारण के साथ नेतलदे का कन्यादान किया । इसके बाद पंडित जी फेरो के लिए नेतलदे और रामदेव जी को उठने के लिए कहा । पडित ही के कहने पर रामदेव जी तो खड़े हो गए परंतु नेतलदे नहीं उठ पाइ ।
यह देखकर अजमाल जी ने सोढा सरदार से पूछा नेताल्दे उठ क्यों नहीं रही? इस पर सोढा सरदार ने माफी मांगते हुए कहा मुझे माफ कर दीजिए अजमाल जी मैंने आपसे यह बात छुपाई कि मेरी बेटी पांगली है इससे कोई भी कुंवर विवाह के लिए राजी नहीं था और मैं यह भी नहीं चाहता था कि मेरी बेटी कुवारी ही रहे।
मैंने आपके पुत्र के चमत्कार सुन रखे थे इसलिए मैंने अपनी पुत्री का संबंध आपके पुत्र से जोड़ा ताकि वह किसी चमत्कार से स्वस्थ हो जाए । यह सुनकर अजमाल जी को सोढा सरदार पर बहुत क्रोध आया वे उन पर धोखा देने का आरोप लगाने लगे । यह सभी वृतांत रामदेव जी सुन रहे थे। अजमाल जी को क्रोधित देख रामदेव जी ने अपने पिता से शांत रहने का आग्रह किया । तभी सभी बारातियों से शांति से विराजमान होने को कहा सभी लोगों की नजर अब रामदेव जी पर थी।

रामदेव जी ने सोढा सरदार से कहा किसने कहा यह चल नहीं सकती है , नेतल दे स्वस्थ है । यह सुनकर रामदेव जी ने बार-बार नेतलदे को उठने को कहा परंतु नेतल दे ने उठने के लिए सभी प्रयास व्यर्थ हो चुके थे। तभी रामदेव जी ने अपना हाथ बढ़ाया और नेत दे हाथ थाम कर उन्हें उठाया और नेतल दे ऐसे उठ गई मानो उन्हें कभी कुछ हुआ ही नहीं था । रामदेव जी के इस चमत्कार को देख सभी लोग रामदेव जी की जय जयकार करने लगे तत्पश्चात संपूर्ण विधि विधान से रामदेव जी ने अग्नि के सम्मुख सात फेरे लेकर नेतलदे को अपनी भार्या के रूप में स्वीकार किया |
रामदेव जी द्वारा अपनी सालियों को पर्चा
रामदेव जी का विवाह संपूर्ण रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ । सभी बरती नगर वासियों ने भोजन का लुफ्त उठाया इधर रामदेव जी के फेरे संपन्न होने के बाद उन्हें एक कक्ष में भोजन के लिए बिठाया गया। इसी बीच रामदेव जी की सालियों ने रामदेव जी के साथ एक छोटा सा हास्य खेल रचा था कि वे रामदेव जी को थोड़ा सा परेशान कर सकें इसलिए उन्होंने रामदेव जी के भोजन के लिए परोसी जाने वाली थाली की जगह एक मरी हुई बिल्ली को थाली में सजाकर रामदेव जी के सामने प्रस्तुत कर दी ।
सालियों ने रामदेव जी का प्रमाण कर भोजन करने का आग्रह करती है रामदेव जी जैसे ही थाली पर रखे कपड़े को हटाते हैं तभी वहां बिल्ली जीवित होकर वहां से भाग जाती है और थाली पांच पकवानों से भर जाती है। यह देखकर रामदेवजी की सलिया अचंभित रह जाती है और रामदेव जी को प्रणाम कर वहां से चली जाती है ।
कुछ दिन पश्चात अजमाल जी सोढा सरदार से जाने की आज्ञा मांगते हैं ताकि वह समय पर अपने नगर पहुंचे। सोढा सरदार बारात प्रस्थान की आज्ञा देते हैं और अपनी पुत्री को बड़े ही प्रेम से उसके ससुराल के लिए विदा करते हैं ।
भाणु को पर्चा
बात उस समय की है जब बाबा रामदेवजी का विवाह हो रहा था । बाबा रामदेवजी पूँगलगढ़ से नेतलदे बड़े हु धूमधाम के साथ ब्याह कर अपने महल के लिए प्रस्थान किया । अजमाल जी द्वारा पहले से ही एक सेवक महल बारात के प्रस्थान करने के संदेश के साथ भेज दिया था । नगर मे चारों ओर बारात के स्वागत की तैयारिया हो रही थी ।
सम्पूर्ण नगरवासी नई दुल्हन के स्वागत की तैयारियों मे व्यस्त थे । नगर बाबा रामदेवजी के ब्याह की खुसियों का माहोल था । परंतु किसको पता था की ये खुसी ज्यादा देर तक नहीं रहने वाली थी । नगरवासियों की खुसी को नजर सी लगने वाली थी ।
अंततः वह घड़ी आ ही गयी जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार था । बारात नगर के द्वार के समीप पहुचने वाली थी । संदेश वाहक ने नगर के चारों ओर बारात के आगमन की खबर फैला दी । महल मे बारात के आने का समाचार मिलने पर सभी बारात के स्वागत की तैयारिओ मे जुट गाए ।
भाणु की मृत्यु
बहन सुगना अपने भाई भाभी के स्वागत के लिए तैयार हो रही थी और डाली बाई बारात के स्वागत तथा बाबा रामदेवजी और नेतल दे की आरती के लिए आरती की थाली सजा रही थी । इधर महल मे भाणु खेल रहा था तभी अचानक एक विषधर सांप वहा आया और भाणु को काट लिया । सांप के काटने के कुछ क्षण बाद ही भाणु की मृत्यु हो गयी ।
भाणु की मृत्यु का समाचार दासी ने जैसे ही सुगना को दिया सुगना पुत्र मोह मे बेसूद होकर भाणु के पास जाकर विलाप करने लगी । धीरे धीरे भाणु की मृत्यु का समाचार पूरे नगर मे फैल गया जिसके कारण पूरे नगर मे शोक की लहर छा जाती है। इतने मे बारात गाजे बाजे के साथ महल के द्वार आ पहुंची और स्वागत का इंतजार करने लगी ।
बारात आने का समाचार सुगना तक पहुंचा और सुगना ने डाली बाई को यह कहकर बारात के स्वागत के लिए भेज दिया कि तुम जाओ मेरे वीरे की आरती करो मै अपने पुत्र को छोड़कर नहीं जा सकती । डाली दुखी मन से सुगना बाई की बात मान बाबा रामदेवजी को बधाने के लिए जाती है ।
भाणु को जीवनदान
सभी सखियां मांगलिक गीतों का गायन करते हुवे बारात का स्वागत करने हेतु महल के द्वार पहुंचती है । डाली बाई रामदेव जी की आरती उतारने जैसे ही आगे आती है उनकी आंखों से आंसू भर आते हैं। डाली बाई की आंखों से आंसू को देखकर रामदेव जी डाली बाई से पूछते हैं तेरी आंखों में आंसू क्यों ?
यह सुनकर डाली बाई कहती है भानु की मृत्यु हो गई है , उसे विषधर ने डस लिया हैं । यह सुनते ही रामदेव जीसभी को वही द्वार पर छौड़ दौड़कर भाणु के पास पहुंचे । बाबा रामदेवजी के भाणु के पास पहुचते ही सुगना रामदेव जी के गले लगकर विलाप करने लगती है । रामदेवजी सुगना को ढाढ़स बढ़ा कर विलाप न करने को कहते है ।
रामदेवजी सुगना को चुप करा भाणु को उठने को कहते है , भाणु को बार-बार उठाने पर भी भानु नहीं उठता है । तब रामदेव जी भाणु के सिर को अपने हाथ से सहलाकर कहते है भानु उठ , तेरा मामा आया है और मामी भी साथ लाया है । तभी रामदेवजी के चमत्कार से भाणु कुछ क्षण बाद झट से उठ जाता है और मामा मामा कह कर रामदेवजी के गले लग जाता है। यह चमत्कार देख सभी लोग रामदेव जी की जय जयकार करने लगते हैं ।
निष्कर्ष
बाबा रामदेव जी का ब्यावला आप सभी ज्यादातर गीतों के माध्यम से ही जानते है या फिर किसी इतिहासकार की पुस्तक मे वो भी संक्षिप्त मे । परंतु हमने यहा ऊपर दिए गये लेख मे बाबा रामदेवजी के सम्पूर्ण विवाह को विस्तार से वर्णन किया है । ऊपर के लेख मे कई घटनाओ का उल्लेख किया गया गई जो बाबा रामदेवजी के विवाह के दोरान घटित हुई थी ।
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