रामापीर का वंश परिचय

रामापीर का वंश परिचय

रामापीर का वंश परिचय

बाबा रामदेवजी जो आज राजस्थान के एक लोकप्रिय लोकदेवता है जिनका जन्म तंवर वंश के राजा अजमाल जी के यहा हुआ था । बाबा रामदेवजी के वंश के विषय मे की इतिहासकारों ने अपनी रचनाओ मे विस्तृत से वर्णन किया है जिसको समझना हर किसी के लिए सहज नहीं होता है ।

इसी को ध्यान मे रखते हुवे हमने बाबा रामदेवजी के वंश को संक्षिप्त मे समझाने का एक छोटा सा प्रयास किया है । आज के इस आर्टिकल मे आपको बाबा रामदेवजी का वंश परिचय को संक्षिप्त रूप मे दिखाया गया है ताकि हर किसी को सहज भाषा मे समझ  आ सके ।

रामापीर का वंश परिचय
रामापीर का वंश परिचय

रामापीर का वंश परिचय – बाबा रामदेवजी वंशावली

बाबा रामदेवजी महाराज चंद्र वंशिय महाराजा थे जो पांडव पुत्र अरजुन के वंश से संबंध रखते है। ऐसा कहा जाता है की पाँच पांडवों में भाई अरजुन के वंश में आगे चलकर महाराजा अनंगपाल जी तोमर का जन्म हुआ जो दिल्ली के महान शासक बने।

जब राजा अनंगपाल जी वृद्धावस्था में थे तब उन्होंने तीर्थयात्रा करने का मन बनाया। वे जहाँ भी जाते थे वहीं वे अपने छोटे भाई को साथ लेकर जाते थे परंतु अबकी बार उन्होंने भाई को साथ ले जाने से इंकार कर दिया था और उसे दिल्ली की राज-गादी संभालने को कहा, पर छोटा भाई हमेशा महाराज के संग जाता था तो उसे मन में बहुत दुख हुआ।

तभी उसने महाराज को सुझाव देते हुआ कहा की क्यों न यह गादी कुछ दिनों के लिए अजमेर के चौहानों में ब्याई बेटी के लड़के, दोयता पृथ्वीराज चौहान के हाथों दे दी जाए ताकि दोनों भाई साथ तीर्थयात्रा पर जा सके। महाराजा अनंगपाल जी को जैसे ही सुझाव अच्छा लगा वैसे ही तुरंत दिल्ली साम्राज्य की बाग-दौड़ अपने दोयते, पृथ्वीराज चौहान के हाथों देकर वे अपने छोटे भाई के संग तीर्थयात्रा पर निकल गए।

 

अनंगपाल जी और पृथ्वीराज चौहान – रामापीर का वंश परिचय

कुछ महिनों बाद जब महाराज एवं उनके छोटे भाई वापस दिल्ली आए तो दोयते पृथ्वीराज चौहान ने अपने ननिहाल वालों को वापस राज-गादी देने से इंकार कर दिया तथा उन्हें कहने लगा की अपने से छोटे को कोई वस्तु देकर वापस लेना हमारा धर्म नहीं।

हर्षोल्लास से तीर्थयात्रा कर वापस लौटे महाराज एवं उनके छोटे भाई मायुस होकर राज-गादी अपने दोयते को देकर तंवरों की राजधानी दिल्ली को छोड़ अपने परिवार के संग आगे निकल पड़े। आगे चलकर तंवरों ने ग्वालियर को अपना राजधानी बनाया। महाराज अनंगपाल जी के बाद राजा अमजी हुए। उनके बाद राजा अखेराज जी, फिर राजा भीवराज जी, फिर राजा जोगराज जी हुए।

राजा जोगराज जी के बाद बाबा रामदेवजी के दादा जी, राजा रणसी जी महाराज बने जिनकी समाधि गाँव- नरेना, जिला- जयपुर, राजस्थान में स्थित हैं। आज भी यह गाँव मुख्य तोर पर तंवर राजपुतों का ही हैं।

राजा रणसी जी के पुत्र राजा अजमाल जी हुए जो प्रभु श्री द्वारकाधीश के अनन्य भक्त थे। उनका विवाह हुए बहुत वर्ष हो चुका था परंतु वे नि-संतान थे जिसके वजह से वे अत्यंत दुखी रहते थे। उनकी प्रजा भी उनके बाँझपन के कारन किसी भी शुभ कार्य करने जाने से पहले उन्हें देखना अशुभ मानती।

अजमाल जी और द्वारकाधीश – रामापीर का वंश परिचय

एक दिन जब गाँव वाले अपने खेतों में बीज रोपने जा रहे थे और वे राजा अजमाल जी को देख लेते है तो अशुभ संकेत समझकर वापस अपने घर को लोट जाते हैं। यह देख राजा अजमाल जी और भी ज्यादा दुखी हो जाते है और महल में जाकर अपनी रानी मैणादे से अपने मन की पीड़ा बतलाते हैं। तब राणी मैणादे, राजा अजमाल जी से उनके इस्ट देव प्रभु द्वारकाधीश के शरण में जाने को कहती है और उनके दर्शन कर आने को कहती है।

रानी की बातों का मान रखते हुए राजा अजमाल जी अपने कुछ संगी-साथियों के संग द्वारकाधीश दर्शन को निकल पड़ते है। रानी मैणादे पुरे रात जगकर अपने इस्ट देव प्रभु द्वारकाधीश के लिए लड्डु तैयार करती है और महाराज को भोग लगाने हेतु कपड़े में बान्धकर देती है।

द्वारका पहुँचकर महाराज मंदिर में स्थित मूर्ति के आगे अपना दुःख बतलाने लगते है। परंतु जब उन्हें मूर्ति से अपने प्रशनों का कोई उत्तर नहीं मिलता है तब वे अत्यन्त क्रोधित हो जाते है और घुस्से में प्रभु को लड्डु की दे मारते है। मंदिर में शोर-शरावा होते देख पुजारी जी जो विश्राम कर रहे होते है वे मंदिर की ओर दोड़े चले आते है और राजन से उनके क्रोध का कारण पुछते हैं।

रामापीर का वंश परिचय

जब महाराज उन्हें सब कुछ बतलाते है तो पुजारी जी उन्हें मानसिक रूप से पीड़ित समझकर यह कह देते है की प्रभु तो क्षीर सागर में विश्राम कर रहे है। अगर आपको उनसे मिलना है तो आपको सागर का मार्ग अपनाना होगा। इतना कहकर पुजारी जी अपने काम में लग जाते हैं।

राजा अजमाल जी सागर का रास्ता न जानते हुए भोले मन से पुजारी जी को उनके साथ चलने को कहते है और उन्हें मार्ग दिखलाने को कहते है। पुजारी जी अपने आपको विप्तति में फसा देख राजन को आधे दुर रास्ता दिखा कर मंदिर को चले आते हैं। राजा अजमाल जी फिर स्वयं ही प्रभु से मिलने सागर में आगे की ओर बढ़ते है।

अंदर जाते-जाते जैसे ही वे प्रभु के निकट जा पहुँचते है, वे स्वामी के शिश पर पट्टी देख पूछ बैठते है की उन्हें क्या हो गया है। तब प्रभु बतलाते है की उनके किसी भोले भक्त ने क्रोध में उन्हें लड्डु की दे मारी थी जिसके कारण उनके शिश पर चोट लग गई है।

उस वक्त राजा अजमाल जी को अपनी करनी याद आती है तथा उन्हें अपने किए पर पछतावा होता है और वे प्रभु से छमा मांगने लगते है। प्रभु भी अपने भक्त की सच्ची भक्ति देख उनको माफ कर देते है और उन्हें दो वरदान मांगने को कहते है।तब राजन पहले वरदान में पुत्र रतन प्राप्ति की कामना करते है तथा दुसरे वरदान में स्वयं श्री हरी को अपने साथ चलने को कहते है।

श्री जी अपने भक्त को दिए गए वचनों से परे होकर उन्हें आसवासन देते है की वे स्वयं राजा अजमाल जी के घर पधारेंगे। तथा राजन के पूछने हेतु वे उन्हें बतलाते है की जब वे पधारेंगे तब भादव मास की बीज (दूज) होगी और चन्द्र प्रकाश होते ही आंगन में कुम-कुम के पगलिया मंड जाएंगे, पानी दुध में परिवर्तित हो जाएगा तथा महल में चारों ओर संख नगाड़े बजने लग जाएंगे।

यह सब सुनकर तथा आशीर्वाद प्राप्त कर खुसी-खुसी राजा अजमालजी अपने घर के लिए रवाना हो जाते है। वे घर पहुँचकर सर्व प्रथम रानी मैणादे को सब कुछ बतलाते। फिर वे दोनों ही प्रभु आस्था में लीन हो कर उनके आने की आस में लग जाते है।

बाबा रामदेवजी का जन्म – रामापीर का वंश परिचय

पहला वरदान उन्हें माघ मास में बाबा के बड़े भाई पुत्र विरमदेव जी के रूप में प्राप्त होता है तथा दुसरा वरदान उन्हें प्रभु द्वारा स्वयं कथित तिथि भादव मास के बीज के दिन प्राप्त होता है जब पालने में दो पुत्र एक साथ नजर आते है। चन्द्र प्रकाश होते ही आंगन में कुम-कुम के पगलिया भी मंड जाते है, पानी दुध में परिवर्तित हो जाता है तथा महल में चारों ओर संख नगाड़े बजने लग जाते है।

तब राजन को ज्ञात हो जाता है की प्रभु द्वारकाधीश ने अपने वचनों के अनुसार पुत्र रामदेव जी के रूप में उनके घर अवतार ले लिया है और वे बधाईयाँ बाटने लग जाते है।

(तंवर राव बही-भाट के अनुसार बाबा रामदेव जी का जन्म विक्रम संवत 1409 में चैत्र सुदी पंचमी के दिन बुधवार को उण्डू काश्मीर, बाड़मेर में हुआ था तथा उन्होंने विक्रम संवत 1442 में 33 वर्ष की आयु में भादव पक्ष की एकादशी के दिन रामदेवरा गांव में रामसरोवर तालाब के निकट जीवित समाधि ली।)

बाबा रामदेवजी के पश्चात का वंश- रामापीर का वंश परिचय

बाबा रामदेव जी के बड़े भाई राजा विरमदेवजी ने विरमदेवरा गांव बसाया जहाँ आज भी उनके वंशज रहते है। उनकी गादी पर वर्तमान में रावसा किशोर सिंह जी विराजमान है।

बाबा रामदेव जी महाराज ने रामदेवरा गांव बसाया। महाराज के दो बेटे हुए – सादो जी तथा देवराज जी।

सादो जी के वंशज सादा गांव में रहते है तथा देवराज जी के वंशज रामदेवरा में ही रहते है। वर्तमान में गादीपति का चयन भी उन्हीं के वंशजों के बीच किया जाता है। बाबा रामदेवजी महाराज के बाद उनकी गादी पर श्री देवराज जी विराजमान हुए जिनका जन्म विक्रम संवत 1436 में हुआ था।

श्री देवराज जी के बाद श्री रतन सिंह जी गादी पर विराजमान हुए। श्री रतन सिंह जी के बाद श्री गोविन्द जी राव बने। श्री गोविन्द जी के बाद श्री देवकरण जी गादी पर विराजमान हुए। उनके बाद श्री पृथ्वीराज जी गादी पर विराजमान हुए तथा राव बने। फिर राव राणो जी, राव मांडण सिंह जी, राव भूपत सिंह जी, राव रघुनाथ सिंह जी, राव मान सिंह जी, राव अजब सिंह जी, राव किशोर सिंह जी, राव सवाई सिंह जी, राव चैन सिंह जी, राव राम सिंह जी, राव बुलिदान सिंह जी, राव हिम्मत सिंह जी, राव गज सिंह जी, राव रिडमल सिंह जी हुए।

राव रिडमल सिंह जी के दो पुत्री हुई जिसके कारण इतने दिन जो गादी राव अजब सिंह जी के बड़े बेटे राव किशोर सिंह जी के परिवार में थी वह अब उनके छोटे बेटे श्री लाल सिंह जी के परिवार में चली गई। राव रिडमल सिंह जी के बाद राव जसवंत सिंह जी रावसा की गादी पर विराजमान हुए। वर्तमान में राव जसवंत सिंह जी के पुत्र रावसा भोम सिंह जी तंवर गादी पर विराजमान है जो बाबा रामदेवजी महाराज के 19 वीं पीढ़ी के गादीपति है।

One response to “रामापीर का वंश परिचय”

  1. […] बाबा रामदेव जी ramapir – को मारवाड़ , गुजरात सहित अन्य प्रांतों के लोग मानते हैं तथा इनकी पूजा आराधना करते हैं। […]

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