Khatu Shyamji || बर्बरीक से खाटू श्याम जी का इतिहास
Khatu Shyamji नमस्कार दोस्तों खाटू श्याम जी जिन्हे हम श्याम बाबा के नाम से भी जानते है आज इस आर्टिकल में हम खाटूश्याम जी के जीवन से जुड़े इतिहास तथा उन्हें शीश का दानी क्यों कहा जाता है ? आइये जानते है।
Khatu Shyamji का सम्बन्ध कहा से मिलता है ?
धर्म ग्रन्थ महाभारत में ऐसी बहुत सी कथाओ का वर्णन मिलता है जिसे मनुष्य अपने जिंदगी में उतार ले तो न उसे कभी खुद पे अहंकार हो सकता है और नहीं खुद को शक्तिशाली समझने की भूल कर सकता है।
खाटूश्याम जी khatu shyamji का सम्बन्ध भी महाभारत से मिलता है इनका वर्णन महाभारत में किया गया है। इसके वर्णन में ये जानेंगे की महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो को अपने विजय होने का अहंकार आ गया था। तो किस प्रकार भगवन श्री कृष्ण ने उनके अहंकार का नाश किया।
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Khatu Shyamji story
shyam baba की कहानी की शुरुआत होती हैं महाभारत काल की समय से। जब कौरवों और पांडवों में अपने राज्य के लिए युद्ध शुरु होने वाला था। इस युद्ध के लिए दोनों पक्षों की सेनाएं तथा सेनापति कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए एकत्रित हो रहे थे। दोनों ही शिविरों में युद्ध की तैयारियां बड़े जोरों शोरों से चल रही थी। सभी योद्धा अपने अपने बाहुबल वह पराक्रम की गाथा सुना रहे थे।
इस युद्ध की खबर सर्वश्रेष्ठ गदाधर भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक मिली। बर्बरीक को आदि शक्ति से तीन महान शक्तियां बाण स्वरूप मिली हुई थी। यह शक्तियां अचूक थी। इन शक्तियों का महाभारत के युग में भगवान श्री कृष्ण के अलावा किसी के पास तोड़ नहीं था।
जब दुर्योधन को यह पता चला की बर्बरीक युद्ध में शामिल होने की तैयारियां कर रहा है तो वह बर्बरीक के पास पहुंचा और अपने पक्ष में युद्ध करने का प्रस्ताव दिया। परंतु बर्बरीक ने साफ मना कर दिया क्योंकि वह धर्म पक्ष में युद्ध करना चाहता था जबकि दुर्योधन अधर्मी था।
बर्बरीक सदा अपनी मां से धर्म अधर्म के बातों को सुनता था और उन्हें अपने अंदर धारण भी करता था। मां से धर्म , कर्म तथा मोक्ष की बातों का अध्ययन उसे सदा धर्म का साथ देने का सुझाव देता था। परंतु दुर्योधन ने अपनी कूटनीति से बर्बरीक के दिमाग को अपने वश में कर लिया। इस पर बर्बरीक ने दुर्योधन को यह वचन दिया कि जिस तरह का पहला भारी होगा उसके विरुद्ध वह युद्ध करेगा।
Barbarik se Khatu Shyamji story
जब यह सूचना श्री कृष्ण के कानों में पड़ी तब वह बर्बरीक को रोकने के लिए उनके मार्ग में आए और उन्हें युद्ध ना लड़ने का निवेदन किया। परंतु बर्बरीक ने श्री कृष्ण की एक ना सुनी।
इस पर विवश होकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को दिव्य दृष्टि प्रदान करें संपूर्ण युद्ध का बोध कराया की जिस तरह बर्बरीक युद्ध करेगा या इस युद्ध में बर्बरीक अगर भाग लेता है तो इस युद्ध का कोई भी निर्णय नहीं होगा। केवल बर्बरीक और श्री कृष्ण ही बच पाएंगे।
इस पर बर्बरीक ने श्री कृष्ण से इसका उपाय करने का निवेदन किया। तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपना शीश काटने का निवेदन किया। श्री कृष्ण के निवेदन पर बर्बरीक ने सहज स्वभाव से अपना शीश काटा और भगवान श्री कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया। बरबरी के इस त्याग को देखकर भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपना नाम देते हुए khatu shyamji के नाम से विश्व प्रसिद्ध होने का वरदान दिया।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक के बलिदान को देखकर उसके सर को जीवित किया और उसे कुरुक्षेत्र की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित कर दिया ताकि वहां संपूर्ण महाभारत की युद्ध का साक्षी बने। यदि baba shyam जी के बर्बरीक से khatu shyamji होने की कथा।
shyam baba के कुछ अनसुने रहस्य Khatu Shyamji story
1 baba shyam जी को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहा जाता है शिवाय भगवान श्रीराम को छोड़कर। क्योंकि उनके पास एक ऐसी धनुर्विद्या थी जिसके द्वारा वह एक ही बाण से अपने समस्त शत्रुओं का नाश कर सकते थे।
2 baba shyam का मेला हिंदू मास के फागुन मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी से बारस तक चलता है। परंतु ग्यारस के दिन विशेष दिन होने के कारण मेला खास रहता है।
3 khatu shyam ji अर्थात बर्बरीक अपने पिता भीम पुत्र घटोत्कच से भी ज्यादा मायावी और बलवान था।
4 baba shyam अर्थात बर्बरीक अपने पिता भीम पुत्र घटोत्कच से भी ज्यादा मायावी और बलवान था।
Khatu Shyamji के नामों के रहस्य
baba shyam को शीश के दानी के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि उन्होंने भगवान श्री कृष्ण द्वारा शीश मांगे जाने पर बड़े ही सहज और बिना किसी झिझक के अपना शीश श्री कृष्ण के चरणों में चढ़ा दिया।इससे प्रसन्न होकर उन्हें अपने नाम के साथ साथ शीश के दानी के नाम की उपाधि दी तभी से भक्तगण baba shyam को शीश का दानी कहते हैं।
Khatu Shyamji को लखदातार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि लोगों की यह धारणा है कि अगर baba shyam से कुछ भी मांगा जाए तो वह लाखों बार भक्तों की मुराद पूरी करते हैं। इसलिए shyam baba को लखदातार नाम से भी जाना जाता है।
shyam baba को भक्तगण श्रद्धा पूर्वक हारे का सहारा के नाम से भी पुकारते हैं। हारे का सहारा का शाब्दिक अर्थ होता है हारे भी व्यक्ति का साथ देना। जब महाभारत युद्ध का आरंभ हो रहा था तब Khatu Shyamji ने दुर्बल पक्ष के दल में युद्ध करने का निर्णय लिया था। इसलिए भक्तगण ने हारे का सहारा के नाम से जानते हैं।
shyam baba को मौरछी धारक भी कहा जाता है क्योंकि shyam baba हर समय मयूर पंख को अपने सिर पर धारण किए हुए रहते हैं।
Khatu Shyamji की आरती की समय-सारणी
पट खुलने का समय : प्रात: 5:00 बजे
मंगल आरती : प्रात: 5:30 बजे
शृंगार आरती : प्रात: 7:45 बजे
भोग आरती : दोपहर 12:30
पट बंद होने का समय : दोपहर 1 बजे
पट खुलने का समय : सायं 4:00 बजे
ग्वाला आरती : सायं 7:00 बजे
शयन आरती : रात्रि 9:15 बजे
मंदिर बंद होने का समय रात्रि 9:30 बजे
Khatu Shyamji की आरती
जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
रतन जडि़त सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे।
तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे।
खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जले॥जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे।
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे॥जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
झांझ कटोरा और घडिय़ावल, शंख मृदंग धुरे।
भक्त आरती गावे, जय-जयकार करे॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
जो ध्यावे फल पावे, सब दुख से उबरे।
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम-श्याम उचरे॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
श्री श्याम बिहारी जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत आलूसिंह स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
तन मन धन सब कुछ है तेरा, हो बाबा सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा॥जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
जय श्री श्याम हरे, बाबाजी श्री श्याम हरे।
निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे॥जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
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