रामदेव पीर की आत्मकथा
बाबा रामदेव जी राजस्थान के लोक देवी देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं। रामदेव पीर को भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। राजस्थान, गुजरात ,मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश ,महाराष्ट्र सहित भारत के हर राज्य में इनकी पूजा व आराधना की जाती है। इन्हें पीरों के पीर रामसापीर के नाम से भी जाना जाता है।

रामदेव पीर की आत्मकथा : बाबा रामदेव जी रामसापीर का संक्षिप्त परिचय
नाम | रामदेव जी ,बाबा रामदेव जी , रणुजा राजा,रामसापीर, रुणिचा रा धनिया |
पिता का नाम | राजा अजमल जी |
माता का नाम | रानी मैणादे |
जन्म | भाद्रपद मास द्वितीया वि.स.1409 (चैत्र शुक्ला पंचमी वि.स.1409 तुवर वंशीय भाट बही अनुसार |
जन्म स्थान | उंडू काश्मीर (बाड़मेर) |
बहन | सुगना |
गुरु | बालक नाथ |
वंश | तोमर वंश |
वंशज | अनंगपाल तोमर |
पत्नी | नेतलदे (अमरकोट) |
पर्चे/चमत्कार | 24 पर्चे |
उद्देश्य | भेदभाव खत्म करना और ऊंच-नीच भावना को मिटाना । |
समाधि | विक्रम संवत 1442 |
समाधि स्थल | रुणिचा ,रामदेवरा { राम सरोवर के पास} |
प्रसिद्ध मंदिर | रामदेवरा( रणुजा), छोटा रणुजा गुजरात |
“महिमा गावा रामदेव री सुन्यो ध्यन लगाए
जन्म जन्म रा पाप कटे, दुःख दाड़ी कट जाए”
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रामदेव पीर की कथा
रामसापीर baba ramdev ji भारतवर्ष में पूजे जाने वाली राजस्थान के लोक देवता रामदेव जी को समस्त संप्रदाय के लोग भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। लोगों का मानना है कि , धरती पर पाप कम करने के लिए भगवान विष्णु ने रामदेव जी के रूप में अवतार लिया है।
कई लोग रामदेवजी को द्वारकाधीश के नाम से भी पुकारते हैं क्योंकि लोग ने द्वारकाधीश का अवतार भी मानते हैं ।
रामदेव पीर, बाबा रामदेव जी का जन्म
रामदेव जी के जन्म को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं , इनके जन्म के संबंध में कई लोगों के अलग-अलग मत हैं, परंतु इन सभी का समाधान तुवरो की भाट बही में मिलता है।
भाट बही के अनुसार रामदेव जी का जन्म अनंगपाल तोमर की आठवीं की में विक्रम संवत 1409 की चैत्र शुक्ल पंचमी को हुआ। परंतु बाबा के भक्त ज्यादातर उनका जन्म महोत्सव भाद्रपद मास की दूज को मनाते हैं।
रामदेव जी के जन्म का कारण -Baba Ramdev Ji
Baba Ramdevji रामदेव जी के जन्म के कारण को लेकर लोगों का मानना है कि राजा अजमल की राज में भैरव नाम के दैत्य का आतंक था , लोग उसकी यातना से पीड़ित थे। तब अजमाल जी द्वारकाधीश के पास प्रार्थना लेकर गए और द्वारकाधीश ने उन्हें वचन दिया की वे स्वयं उनके घर पधारेंगे और उनके पुत्र रामदेव के नाम से जाने जाएंगे ।
द्वारकाधीश और अजमाल जी Raja Ajmal ji
राजा अजमल जी की कोई संतान नहीं थी उनकी प्रजा उन्हें बाजिया कहती थी तथा उनका मुख देखना अशुभ मानती थी । इस पर दुखी होकर अजमाल जी द्वारकाधीश के मंदिर में गए और उनकी मूर्ति को लड्डू दे मारा और शिरसागर में कूद गए । वहां उन्हें द्वारकाधीश ने दर्शन दिए और अपने अंश रुपी पुत्र का वरदान दिया जो आगे रामदेव नाम से प्रसिद्ध हुआ।
बाबा रामदेव जी का बाल्यकाल Ramdev ji ka Bachpan
रामदेव जी ने अपने बाल्यकाल में ही चमत्कार करने शुरू कर दिए।द्वारकाधीश के आशीर्वाद रूप उनका अंश अजमाल जी के घर पर प्रकट हुआ और उन्होंने निशानी स्वरूप महल में कुमकुम के पगलिया तथा पानी रो दूध बन गया ।रामदेव जी के जन्म लेते ही अजमाल जी के राज्य में जोरदार बारिश हुई और लोगों को अकाल से राहत मिली।
बाबा रामदेव जी और कपड़े का घोड़ा दर्जी को पर्चा-Baba Ramdev Ji aur kapde ka ghoda
बाल्यकाल मैं रामदेव जी ने अपनी माता से कपड़े के घोड़े की जिंद की , रामदेव जी की कपड़े के घोड़े से खेलने की बहुत इच्छा थी । तभी उनकी माता ने दर्जी को बुलाकर कपड़े का घोड़ा बनवाया परंतु दर्जी ने लालच के कारण घोड़े में खोट भर दी ।
रामदेव जी ने दर्जी को सबक सिखाने के लिए कपड़े की घोड़े को आकाश में उड़ा दिया और पूरे राज्य की परिक्रमा करके वापस आ गए।
रामदेव जी और भैरव राक्षस
Ramdev Ji aur Bhairav rakshajअजमाल जी के पुत्र रामदेव जी बचपन से ही प्रतिभावान बालक थे। जब वे अपने मित्र संघ क्रीडा कर रहे थे तब उन्होंने जान बूझकर अपनी गेंद को बालीनाथ की आश्रम की ओर फेंका और खुद लाने के लिए वहां गए । बालक को देख बालक नाथ घबरा गए और उन्होंने अपनी कुटिया में छुपा दिया । तभी भैरव राक्षस आया और कुटिया में गुदडी को खींचने लगा तभी गुदडी लंबी होती गई और भैरव डर के भाग गया और पीछे पीछे रामदेव जी दौड़ने लगे आखिर में भैरव राक्षस का वध कर डाला । तथा अपनी जनता को भैरव के आतंक से मुक्ति दिलाई।
रामदेव जी और डाली बाई
Ramdev ji bhakt Dali Bai रामापीर रामदेव जी अपने भ्राता वीरमदेव के साथ वन भ्रमण कर रहे थे तभी उन्हें एक पेड़ की डाली पर एक बच्ची मिली जो बहुत रो रही थी तभी रामदेव जी ने उस बच्ची को गोद लिया और अपने महल लेकर आए और उसका नाम डाली रखा।
डाली बाई रामदेव जी को भगवान कृष्ण का अवतार मानती थी और उनकी पूजा भी करती थी, वह हमेशा रामदेव जी की भक्ति में लीन रहती थी।
रणुजा राजा और सुगना बाई
लोक देवता रामदेव जी की एक बहन की इसका नाम सुगना था , बाबा रामदेव जी को अत्यंत प्रिय थी । उन्होंने अपनी बहन को बड़े ही स्नेह से पाल पोस कर बड़ा किया और बड़े ही धूमधाम से अपनी बहन सुगना का ब्याह पूंगलगढ़ के कुंवर किशन सिंह परिहार के साथ किया।
रामदेव जी ने सुगना बाई के ससुराल वालों को पर्चा दिया उनका गर्व दमन किया और उन्होंने अपने भानु को भी पुनर्जीवित कर सुगना बाई के पुत्र की रक्षा की।
रामदेव जी महाराज और पांच पीर
-Ramdev Ji ko peeron ke pir Ramsapir kyon kaha jata hai
RAMADHANI रामदेव जी को पीरों के पीर रामसापीर के नाम से भी जाना जाता है।एक बार रामदेव जी को पांच पीर मिले और उन्होंने रामदेव जी से अपने भगवान होने का प्रमाण मांगा ।
तब उन्होंने पांच पीरों को भोजन का आग्रह किया परंतु पीरो ने मना कर दिया और कहां हम अपने बर्तनों के अलावा किसी में भोजन नहीं करते और वे मक्का में है।
तभी रामदेव जी ने हाथ बढ़ाया और पांच पीरों के बर्तन मक्का से मंगवा लिये। तभी उन पीरो ने रामदेव जी को रामसा पीर की उपाधि दी और उसी स्थान पर 5 पीपल के पेड़ लग गए जो आज भी मौजूद है ।
रुणिचा नगर की स्थापना
Runicha Nagar Ramdevra रुणिचा नगर की स्थापना बाबा रामदेव जी द्वारा की गई थी ।बाबा रामदेव जी ने भेदभाव ,ऊंच-नीच, अमीर, गरीब की भावना को एक तरफ रखते हुए एक समानता तथा हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतिरूप में रुणिचा नगर की स्थापना की ।
वे चाहते थे की ऐसे नगर की स्थापना की जाए जहां पर किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता हो ,ना कोई अमीर हो, ना कोई गरीब, ना राजा हो , ना कोई रंक सभी एक साथ मिलजुल कर रहे इसी उद्देश्य से रुणिचा नगर की स्थापना की । रुणिचा नगर को ही रामदेवरा के नाम से जाना जाता है।
बाबा रामदेव जी की समाधि
Baba Ramdev Ji ki samadhi बाबा रामदेव जी ने अपने जीवन के लक्ष्य को पूरा होते हुए देखकर उन्होंने समाधि लेने का निश्चय किया । उन्होंने अपनी समाधि का स्थान रुणिचा तय किया । उनकी समाधि की खबर सुनकर उनकी पत्नी , परिवार और डाली बाई और भक्तगण वहां आए और और समाधि लेने से मना किया परंतु रामदेव जी ने प्रेम भाव से मना कर दिया और अपनी समाधि खुदवाई ।
उन्होंने जाते यही संदेश दिया की सभी लोग मिलकर और भेदभाव को भूलकर निवास करें ।
रामदेव जी ने समाधि विक्रम सावंत 1462 ईस्वी मैं ली ।
निष्कर्ष
बाबा रामदेव जी तोमर वंश अजमाल जी परिवार में जन्म लेकर भैरव राक्षस वध किया सामाजिक भेदभाव छुआछूत अमीरी गरीबी की भावनाओं को मिटाया और सभी को एक साथ मिलजुल कर रहने की सीख दी ।रामदेव जी की समाधि के पास में डाली बाई ने भी समाधि ली वह भी उनके साथ पूजी जाती हैं।आज उसी स्थान पर रामदेवरा में बाबा रामदेव जी का भव्य मंदिर बना हुआ है ।देश-विदेश से लोग अपनी मुरादें और मन्नते लेकर आते हैं और बाबा उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है ।
जय श्री रामदेव जी की ।
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बाबा के भक्तों द्वारा पूछे गए प्रश्न
बाबा रामदेवजी किसके अवतार है ?
बाबा रामदेवजी को भगवान श्री कृष्ण जो की द्वारकाधीश है के अवतार है ।
बाबा रामदेवजी का जन्म कब हुआ ?
तंवर वंश की भाट बही के अनुसार रामदेव जी का जन्म अनंगपाल तोमर की आठवीं की में विक्रम संवत 1409 की चैत्र शुक्ल पंचमी को हुआ। परंतु बाबा के भक्त ज्यादातर उनका जन्म महोत्सव भाद्रपद मास की दूज को मनाते हैं।
बाबा रामदेवजी के कितने पुत्र थे ?
बाबा रामदेवजी के पुत्रों के बारे मे ज्यादातर इतिहासकार दो ही पुत्र बताते है ,सदोजी तथा देवराजजी ।
परंतु कुछ इतिहासकार रामदेवजी के 7 पुत्र व एक पुत्री बताते है । जो क्रमशः सदोजी , देवराजजी , गजराजजी , महराजजी , भीवोंजी , बाँकोंजी , जेतोंजी तथा पुत्री चांद कंवर ।
बाबा रामदेवजी ने समाधि क्यों ली ?
बाबा रामदेवजी ने अपने जीवन का एक ही उद्देश्य निश्चित किया था दीन दुखियों की सेवा तथा भेदभाव को मिटाना । बाबा रामदेवजी ने सामाजिक समरसता का संदेश दिया था जाती ,धर्म के आधार पर फैले भेदभाव को मिटाने का कार्य किया ।जब रामदेवजी ने चारों ओर भेदभाव मुक्त समाज देख अपने उद्देश्य को पूर्ण होता पाया तब रामदेवजी ने समाधि लेने का निर्णय लिया ।
बाबा रामदेवजी की कितनी पत्नीया थी ?
हम सभी को ज्यादातर यह ही जानकारी है की रामदेवजी की एक ही पत्नी थी नेतलदे । परंतु कुछ इतिहासकार लिखते है की रामदेवजी की तीन पत्नीया थी रानी तारादे , रानी नेतलदे तथा रानी कलुकवर ।
बाबा रामदेवजी के घोड़े का क्या नाम था ?
बाबा रामदेवजी अपनी निजी सवारी के लिए घोड़े का उपयोग किया करते थे जिसे लीला घोडा के नाम से जाना जाता था ।
नेतलदे के पिताजी का नाम क्या था ? और क्यां वों माँ लक्ष्मिजी का अवतार थें ?