Sant Namdev Biography And History
भारत की धरती कई संतों व महापुरुषों की जन्मभूमि रही है । इन महान संतों व महापुरुषों के ज्ञान व सनिध्य से पूरे देश मे योग व भक्ति का प्रचार हुआ है । इन सभी संतों मे कुछ ऐसे भी हुवे है जिन्होंने अपने तप व प्रभु भक्ति से आत्मज्ञान की प्राप्ति की है ।
आज के इसस आर्टिकल मे हम एक ऐसे संत के बारे मे चर्चा करेंगे जिन्होंने अपनी निश्छल प्रभु भक्ति से स्वयं भगवान को साक्षात दर्शन देने के लिए विवश कर दिया ।
जी हा हम बात कर रहे है संत नामदेवजी की । Sant Namdev एक ऐसे संत है जिन्होंने अपने बचपन मे ही अपनी निश्छल प्रभु भक्ति से स्वयं भगवान विठ्ठल को साक्षात दर्शन देने के लिए विवश कर दिया था । और इसी विवशता के कारण ही प्रभु विठ्ठल को अपने भक्त के हाथ से दूध पीने के लिए स्वयं आना पड़ा । आइए जानते है संत श्री नामदेव के सम्पूर्ण जीवन के बारे मे ।
Sant Namdev का जन्म कब और कहां हुआ था?
नामदेवजी महाराष्ट्र राज्य के प्रसिद्ध संत कवि थे । संवत 1327 को कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को रविवार 20 अक्टूबर 1270 को हुआ था । इनका जन्म सतारा के पास नरसी नामक ग्राम के छिपा यानी दर्जी परिवार मे हुआ ।
Sant Namdev को विट्ठल नाम की धुन कैसे लगी?
नामदेवजी पर बचपन से ही भगवान की अपार कृपा थी । नामदेवजी बचपन से भगवान विठ्ठल को बहुत मानते थे । नामदेवजी के पिताजी भगवान विठ्ठल के परम भक्त थे , वे प्रतिदिन विठ्ठल भगवान की पूजा अर्चना करते रहते थे । नामदेव जी भी बचपन मे पिताजी को जैसी विठ्ठल भवान की पूजा करते देखते थे जिससे उनकी विठ्ठल मे भक्ति और अधिक बढ़ी ।
भगवान विठ्ठल का नामदेव को साक्षात दर्शन
एक समय की बात है की नामदेव जी के पिताजी किसी कारण वश ग्राम से बाहर जा रहे थे तब उन्होंने नामदेव जी को भगवान विठ्ठल की पूजा की जिम्मेवारी सोपी और कहा की तुम अच्छे से विठ्ठल की पूजा करना तथा भोग लगाना । पिताजी के शहर जाने के बाद भगवान विठ्ठल की पूजा की सम्पूर्ण जिम्मेवारी नामदेव के कंधों पर आ गई ।
नामदेव जी ने अपने पिताजी से जैसी पूजा करना सीखा था वैसे ही नामदेव ने विठ्ठल की पूजा की । नामदेव ने पूजा करने के बाद विठ्ठल को दूध चढ़ाया और विठ्ठल से दूध पीने की विनती की ,परंतु विठ्ठल ने दूध नहीं पिया । नामदेव नादानी मे बालहठ कर रोने लगा फिर भी विठ्ठल ने दूध नहीं पिया । यह देख नामदेव विठ्ठल की मूर्ति के आगे अपना सिर पटककर रोने लगा और कहा की अगर आपने ये दूध नहीं पिया तो पिताजी मुजे बहुत डांटेंगे । इसलिए आपको यह दूध पीना ही होगा ।
कहते है न सच्ची और निछल भक्ति और बालहठ के आगे सभी को जुकना ही पड़ता है । नामदेव की भोली और निस्वार्थ भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विठ्ठल ने नामदेव को दर्शन दिए । और दूध से भरे पात्र को उठाकर पी लिया । इसके बाद नामदेव की विठ्ठल के प्रति भक्ति और अधिक बढ़ गई । कहते है बग़वान विठ्ठल नामदेव को रोजाना दर्शन दिया करते थे ।
नामदेव जी और विसोबा खेचर
एक बार की बात है की एक सत्संग मे ज्ञानेश्वर जी , मुकताबाई , गोरा कुंभार तथा अन्य संतमंडल के साथ नामदेव जी बैठे थे । सत्संग के बाद सभी ने नामदेव को गुरु बनाने की राय दी । इस पर नामदेव जी ने कहा की जब मेरे साथ स्वयं भगवान विठ्ठल है तो मुझे गुरु की क्या आवश्यकता है । यह कहकर नामदेव वहा से चले गए ।
संतों की बात को ध्यान मे रखकर नामदेव ने विठ्ठल का ध्यान किया और विठ्ठल से पूछा की क्या मुझे आपके होते हुवे गुरु की सही मे आवश्यकता है । नामदेव की बात सुनकर विठ्ठल बताते है की नामदेव मे तो सबके साथ हु परतू संसार के मायाजाल से बाहर निकलने के लिए गुरु की परम आवश्यकता होती है । अतः तुम्हें एक गुरु अवश्य बनाना चाहिए जो तुम्हारा मार्ग प्रसस्त करे तथा मेरे सच्चे स्वरूप का ज्ञान करवाएंगे । यह कहते हुवे भगवान विठ्ठल ने नामदेव को विसोबा खेचर को गुरु बनाने को कहा ।
नामदेव जी की गुरु खोज
नामदेव विसोबा खेचर को गुरु बनाने की खोज मे एक शिव मंदिर पहुचे जहा उनको एक वृद्ध व्यक्ति भगवान शिव की मूर्ति पर अपना पैर रखकर सोया था ।
यह देखकर नामदेव ने उनसे वह से हटने को कहा परंतु वृद्ध व्यक्ति ने वहा से हटने से मना किया और कहा की तुम ही हटा लो । यह सुनकर नामदेव ने उसको वृद्ध को हटाया और कही ओर बिठाने के लिए जैसे ही नीचे रखता वहा भगवान की मूर्ति आ जाती । यह देख नामदेव को आश्चर्य हुआ और उस वृद्ध से पुचः आप कौन है ।
वृद्ध व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुवे कहा की मै विसोबा खेचर हु मैंने ही तुम्हें समझाने के लिए ऐसा किया की भगवान हर जगह विराजमान होते है किसी एक जगह नहीं ।ब विसोबा खेचर की बातों को सुनकर नामदेव को यह ज्ञात हो गया की उन्हे एक गुरु की परम आवश्यकता है ।
अतः नामदेव जी ने विसोबा खेचर जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया । नामदेव ने अपने गुरु विसोबा खेचर जी की बहुत सेवा की तथा उनके सानिध्य मे कठिन साधना की जिससे उनको आत्मज्ञान की प्रति हुई । आत्मज्ञान की प्राप्ति होने के कारण नामदेव जी सभी जीवचर मे भगवान दिखने लगे ।
संत नामदेव और एक भूखा कुत्ता
एक बार की बात है एक समय नामदेव जी भोजन करने के लिए रोटी और घी लेकर बैठे थे तभी अचानक से एक कुत्ता वहा आता और रोटी लेकर वहा से भागने लगता है । यह देख नामदेवजी उस कुत्ते के पीछे घी का कटोरा लिए पीछे भागे ओर कहने लगे रुक जाओ तुम रोटी मत ले जाओ । पर कुत्ता नहीं रुका ।
अंत मे नामदेव कुत्ते को रोक देते है और कुत्ते से रोटी लेकर उस पर घी लगाकर वापस कुत्ते को देकर कहते है की तुम ये रोटी घी के साथ खाओ । नामदेव का यह व्यवहार देखकर Sant Namdev को उस कुत्ते मे भगवान विठ्ठल के दर्शन होते है । नामदेव का यह कार्य उनको सबसे अलग रखता है क्योंकि नामदेव सभी जीवों मे भगवान के दर्शन करते है ।
संत नामदेव जी का परलोक गमन
Sant Namdev अपने गुरु से आत्मज्ञान प्राप्त कर वहा से प्रभु भक्ति का प्रचार प्रसार करने लगे । नामदेवजी ने प्रभु भक्ति मे दो बार तीर्थ यात्रा की । नामदेव जी अपने जीवन मे की साधु संतों से मिलकर ज्ञान प्राप्त किया ही साथ ही उनका भी प्रभु के प्रति भ्रम को दूर किया । संत नामदेव के गुरु संत श्री ज्ञानेश्वर का देवगमन हुआ तब से वे सहमे सहमे से रहने लगे । उम्र के साथ साथ नामदेव जी का यश और अधिक फ़ाइल रहा था । पूरा देश Sant Namdev का यशगान करने लगा । Sant Namdev का 80 वर्ष की आयु मे विक्रम संवत 1407 मे देवगमन हो गया ।
Sant Namdev की साहित्यक देन
नामदेव जी द्वारा जो बाणीया गाई उनका उल्लेख गुरु ग्रंथ साहिब मे मितल है । साथ ही नामदेव जी किन बहुत सी बाणीया महाराष्ट्र मे आज भी गाई जाती है । इनकी वाणी को पढ़ने तथा सुनने से मन मे एक अलग की ऊर्जा का संचार होता है जो मन को शांति प्रदान करती है । इनकी बानियों मे वह शक्ति आज भी है जिसके द्वारा नामदेवजी बड़े से बड़े विद्वान को प्रभु भक्ति मे लगा देते थे ।
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लोगों द्वारा पूछे गए प्रश्न
Sant Namdev का गोत्र क्या है?
नामदेव जी के अगर गोत्र की बात की जाए तो नामदेवजी ऋषि गोत्र के वैशम्पायन से संबंध रखते थे ।
संत नामदेव किसका भक्त था?
संत नामदेवजी बचपन से ही भगवान विठ्ठल के परम भक्त थे ।
नामदेव जयंती कब मनाई जाती है?
संत नांदेकवजी की जयंती प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है ।
संत नामदेव की मृत्यु कब हुई?
नामदेवजी का 80 वर्ष की आयु मे विक्रम संवत 1407 मे देवगमन हो गया ।
विट्ठल कौन से भगवान हैं?
भगवान श्री विष्णु के अवतार द्वारकाधीश श्री कृष्ण को ही विठ्ठल भगवान कहा जाता है ।