Jagannath Rath Yatra 2024

Jagannath Rath Yatra 2024

जगन्नाथ यात्रा विश्व की प्रसिद्ध रथ यात्राओं मे मानी जाती है। जगन्नाथ रथ यात्रा उड़ीसा राज्य की पूरी में आयोजित की जाती है। यह भारत और विश्व में होने वाली सबसे पुरानी रथ यात्रा‌ हैं। यात्रा का वर्णन भारतीय ग्रंथो जैसे ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण , स्कंद पुराण और कपिल संहिता में मिलता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा 2024 कब है? (Jagannath rath yatra 2024)

भारतीय पंचांग के मुताबिक जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 7 जुलाई 2024 से शुरू होगी तथा 17 जुलाई 2024 को खत्म होगी। 

जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ा इतिहास 

रथ यात्रा उड़ीसा राज्य के पुरी में निकल जाती हैं। यह वहां का प्रसिद्ध महोत्सव है। भगवान कृष्ण को जगन्नाथ के रूप में पूजते हैं तथा उनकी आराधना करते हैं ‌। यह त्यौहार भारत के साथ-साथ विश्व का भी सबसे पुराना त्यौहार है। इस दिन लोग भगवान कृष्ण , बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा ही रथ यात्रा निकाली जाती है। इस रथ यात्रा के पीछे अलग-अलग लोगों की अलग-अलग मान्यताएं।

लोगों की मान्यता अनुसार Jagannath rath yatra 2024

रथ यात्रा के संबंध में लोगों का कहना है कि जो भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई तब उनके भाई बलराम अत्यंत दुखित हुए । तब बलराम जी अपने भाई कृष्ण के वियोग में दुखी होकर कृष्ण को लेकर समुद्र में कूद गए। उनके पीछे पीछे उनकी बहन सुभद्रा भी उनके पीछे समुंद्र में कूद पड़ी। लोग कहते हैं कि इस दौरान वहां के राजा इंद्रद् विमुना को स्वप्न में भगवान कृष्ण का शरीर समुद्र में तैरते हुए देखते हैं।

और उन्हें आभास होता है कि कोई दिव्य स्वर में उनसे भगवान कृष्ण की प्रतिमा कथा मंदिर निर्माण का कह रहा हो और साथ में बलराम और सुभद्रा की भी प्रतिमा बनाकर श्री कृष्ण की अस्थियों को उनकी प्रतिमा में क्षेत्र के रख दी जाए।

स्वप्न देख कर राजा ने प्रतिमा निर्माण का कार्य शुरू करना चाहा और भगवान कृष्ण, बलराम, सुभद्रा की प्रतिमा निर्माण हेतु विश्वकर्मा को कार्य सौंपा। विश्वकर्मा ने उनसे वचन दिया कि जब तक वह प्रतिमा का कार्य पूर्ण‌ कर ले तब तक कोई भी उनके कार्य में बाधा उत्पन्न ना करें।परंतु राजा से रहा ना गया और उन्होंने पटना निर्माण कार्य में दखल दे दिया उसी वक्त विश्वकर्मा वहां से चले गए परंतु प्रतिमा का कार्य अधूरा रह गया। तभी राजा ने उन्हें अधूरी प्रतिमाओं को मंदिर में स्थापित कर दिया और भगवान कृष्ण की प्रतिमा के पीछे उनकी अस्थियां रख दी।

जगन्नाथ रथ यात्रा  कहानी Jagannath Rath Yatra 2024

रथ यात्रा भारत सबसे पुरानी और विश्व की जी सबसे पुरानी महोत्सव है। यह उड़ीसा के पूरी में आयोजित किया जाता है जिसमें लाखों की संख्या में भक्तगण दर्शनों को आते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा के संबंध में कई मान्यताएं और कई कथाएं है। जिनमें से कुछ को हम नीचे बताने जा रहे हैं

पहली कथा Jagannath Rath Yatra 2024

 कुछ लोगों की मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा को द्वारिका दर्शन की इच्छा हुई तो भगवान श्री कृष्ण ने उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए अपने भ्राता संघ अलग अलग रखो में बैठकर यात्रा की थी। सुभद्रा की नगर की यात्रा की स्थिति में है यह रथ यात्रा पूरी में हर साल आयोजित की जाती हैं। इस यात्रा का वर्णन भारतीय ग्रंथों में किया जाता है।

दूसरी कथा Jagannath Rath Yatra 2024

 चरणों के पुस्तकों के अनुसार चारण परंपरा में भगवान श्री द्वारकाधीश के साथ, बलराम और सुबह का समुद्र किनारे दाह संस्कार किया गया था। कहा जाता है कि उस समय समुंद्र किनारे तूफान आने से द्वारकाधीश के अद्धजला शरीर पुरी के समुद्र के तट पर बहते हुए पहुंच गए।

पुरी के राजा ने तीनों शवों को अलग-अलग जात में विराजित करवा कर पूरे नगर वासियों ने रथ को अपने हाथों से खींचा। अंत में जो लकड़ी शवों के साथ तैर कर कराई थी उनकी बेटी बनाकर उन सवो को भूमि में समर्पित कर दिया।

लोगों द्वारा पूछे गए प्रश्न Jagannath Rath Yatra 2024

भगवान जगन्नाथ के रथ में कितने पहिए होते हैं?

भगवान जगन्नाथ के रथ नंदीघोष के 16 पहिए होते हैं वह ऊंचाई साडे 13 मीटर तक होती है। इस रथ को ढकने के लिए लगभग 1100 मीटर लाल पीले रंग के कपड़े का उपयोग किया जाता है। इस रथ को बनाने में 832 लकड़ी के टुकड़ों का उपयोग किया जाता है।

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया तथा कितने साल पुराना है?

Jagannath mandir  भारतीय राज्य उड़ीसा के सबसे प्रभावशाली स्मारको में से एक है। इसका निर्माण गंगा राजवंश के एक प्रसिद्ध राजा अनंतवर्मन चांद गंगा देव द्वारा 12वीं सदी शताब्दी में समुद्र के किनारे पुरी में किया गया। इसका निर्माण 1136 ईस्वी में शुरू हुआ ,12 वीं शताब्दी के श्राद्ध में पूर्ण हुआ।

जगन्नाथ यात्रा कितने दिन चलती है?

रथ यात्रा का आयोजन उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष आषाढ़ माह में रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। यह यात्रा लगभग 10 दिन चलती है।

जगन्नाथ मंदिर का ध्वज प्रतिदिन क्यों बदला जाता है?

जगन्नाथ मंदिर के ध्वज को रोजाना बदलने की परंपरा का पालन वर्षों से किया जा रहा है। एक पुजारी रोजाना मंदिर की गुंबंद पर चढ़कर ध्वज को बदलता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी यह ध्वज नहीं बदला गया तो मंदिर 18 साल के लिए बंद हो जाएगा।

भगवान जगन्नाथ के रथ का क्या नाम है?

भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस रथ को भगवान इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण को उपहार स्वरूप दिया था।

भारत के सभी मंदिरों की जानकारी के लिए यहां पर क्लिक करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *