Sanatan Dharm Ek Hindu Dharm

Sanatan Dharm Ek Hindu Dharm 

Hindu Dharm  में उपयुक्त शब्द हिंदू की उत्पत्ति कहां से हुई?

मूल रूप से हिंदू शब्द ना तो धर्म का प्रतीक था और ना ही किसी विचारधारा का। इसके पीछे भौगोलिक परिस्थिति थी। प्राचीन ईरानीयो ने सिंधु नदी के पूर्व क्षेत्र को हिंद कहा और इस क्षेत्र में रहने वाले हिंदू कहलाए । कालांतर में हिंदू शब्द धर्म और संस्कृति से जुड़ कर रूढ हो गया और इस समय प्रचलित धर्म को Hindu Dharm की संज्ञा दी जाती है। हिंदू धर्म जिसे सनातन धर्म भी कहा जाता है।

यह विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक हैं। Hindu Dharm  को समस्त ऊर्जा वेदों से मिलती है । वेदों की संख्या चार मानी गई है, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। सबसे प्राचीन ऋग्वेद है, के कुछ भागों की रचना 1000 ईसा पूर्व से पहले हुई थी। शेष वैदिक साहित्य की रचना बाद में हुई।

सनातन धर्म को Hindu Dharm क्यों कहा जाता है ?

आर्यों के जीवन और संस्थाओं के ऐतिहासिक पुनर्निर्माण का आधार यही साहित्य हैं। आप इस तथ्य से अच्छी तरीके से पता लगा सकते हैं की Hindu Dharm अच्छा सनातन धर्म कितना प्राचीन है । जब पश्चिमी सभ्यता के लोग नग्न अवस्था में जंगलों में इधर उधर भटका करते थे तब सनातन धर्म में हिंदू सभ्यता के लोग रेशम तथा मलमल के वस्त्रों का उपयोग करते थे तथा बहार निर्यात करते थे।

प्रसिद्ध जर्मन विद्वान शोपनहायर के अनुसार उपनिषद मनुष्य के धार्मिक अभिज्ञान का सबसे बहुमूल्य वर्णन है। पृथ्वी में उपनिषदों से बढ़कर सुंदर और उन्नत बनाने वाला कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है। मुझे अपने जीवन में इससे बहुत संतोष मिलता है और इसी से मुझे मृत्यु से भी संतोष मिलेगा।

स्पष्ट है कि वह इन ग्रंथों को दूसरे ग्रंथों से यहां तक कि स्थाई ग्रंथों से भी ऊपर रखते हैं।
प्रारंभिक वैदिक धर्म जिसे वर्तमान में Hindu Dharmकी संज्ञा दी जाती हैं उसमें पहले मूर्तियों या मंदिरों का कोई स्थान नहीं था। वेदो की मूल शिक्षा इश्वर के विश्वास को प्रकट करती हैं और बार-बार वेदों में इसका जिक्र आता है “कोई सच्चा नहीं है शिवाय ईश्वर के जो सब पर छाया हैं” कुल सृष्टि का स्वामी है जिसने सृष्टि का निर्माण किया है। अर्थात् एकमेवाद्वितीयंम । इस काल में खुले स्थानों पर यज्ञ किए जाते थे और हवन के माध्यम से मांस मदिरा दूध घी इत्यादि का चढ़ावा चढ़ाया जाता था।

 

 

स जीवति गुणा यस्य धर्मो यस्य जीवति।
गुणधर्मविहीनो यो निष्फलं तस्य जीवितम्।

जिसने भी धार्मिक जीवन जिया है वह सदाचारी, गुणवान है और उसका जीवन सफल होता है और वह वही जीवन जीता है और जो लोग धर्म से दूर रहकर सद्गुणों और धार्मिक कर्मों से दूर रहते हैं,उनका जीवन निष्प्रभावी होता है, उनका जीवन मृत्यु के समान होता है।

हिंदू दर्शन -Hindu Dharm

हिंदू दर्शन की बाकी की दो शाखाएं पूर्व मीमांसा तथा उत्तर मीमांसा उपरोक्त चारों से भिन्न है । इनका प्रेरणा स्रोत वेद है। पूर्व मीमांसा कहती हैं कि वह इस पर प्रदत हैं इसीलिए उनके निर्देशों का पालन करना चाहिए किंतु उनका संबंध वेदों के धर्म विज्ञान या नीतिशास्त्र से नहीं बल्कि केवल कर्मकांड और धर्म ,यज्ञ भजन से संबंधित श्लोकों से हैं।

यह एकतरफा झुकाव संभवत समय के धर्म दर्शन के विरुद्ध प्रतिक्रिया थी, जिसने सभी नंबरों का बहिष्कार किया था। दूसरी तरफ, उत्तर मीमांसा एक एकात्मक के सिद्धांत पर बल दिया है। यह दोनों मीमांसा ए एक ऐसे धर्म दर्शन का प्रतिनिधित्व करती है जिसका उद्देश्य बौद्ध धर्म और जैन धर्म के विरुद्ध नैतिक हिंदू धर्म का समर्थन करता था।

इस काल की एक अन्य बड़ी उपलब्धि थी भगवतगीता। युद्ध क्षेत्र में अर्जुन को मुंह को आया था और वह युद्ध से इंकार कर रहा था। तब उसके सारथी बने श्री कृष्ण ने उसे उपदेश दिया था। इन्हीं का संकलन भगवत गीता में है।

उपनिषदों में धर्म के सैद्धांतिक पहलुओं पर बल दिया गया है अर्थात धर्म की प्रकृति और आत्मकथा उसकी पहचान पर गीता में व्यवहारिक पहलू यानी भ्रम की अनुभूति एवं मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग के बारे में बताया गया है मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग हैं तब एवं मनुष्य द्वारा ज्ञान का मार्ग आस्था एवं भक्ति का मार्ग और कर्म का मार्ग गीता में यह स्पष्ट किया गया है कि उपनिषदों में वर्णित आत्मा और ब्रह्म की अनुभूति केवल अमृत विचार नहीं है बल्कि प्रेम का भक्ति के साथ अन्वेषण का अन्वेषण के साथ आध्यात्मिक सम्मेलन है और कर्तव्य भाव से किया गया कर्म अवरोध ना हो कर दे की प्राप्ति का प्रभाव कारी माध्यम है ।

एक हिंदू अपनी आत्मा को ज्ञान के प्रकाश में साधना के द्वारा मुक्ति दिलाता है हिंदू धर्म सत्य को सबसे महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ गुण समझता है इसके निकट सूर्य का प्रकाश हवा का झोंका वर्षा की बूंदे और ईश्वर सबके लिए हैं और सबके हैं भगवत गीता दुनिया को यही शिक्षा देती हैं|

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