Siddhivinayak Temple || सम्पूर्ण इतिहास तथा व्रत कथा
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं। यहां पर सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं। भारत अपनी धार्मिक संस्कृति एवं सभ्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
भारत में सभी धर्मों के लोगों के आराध्य देवो के पूजा स्थल है जैसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा इत्यादि। भारत की सभी धर्मों में से हिंदू धर्म के लोग देवी देवताओं में अधिक विश्वास रखते हैं। यहां पर अनेक प्रकार की मंदिर बने हुए है, जिनमें से सिद्धिविनायक मंदिर प्रमुख है।
Siddhivinayak Temple भगवान शिव एवं माता पार्वती के पुत्र भगवान गणेश जी को समर्पित हैं। यह मंदिर भगवान श्री गणेश की सभी मंदिरों में से सबसे प्रसिद्ध मंदिर हैं।
सिद्धिविनायक कौन है?
सिद्धिविनायक नाम का शाब्दिक अर्थ होता है सफलता की शुभकामना। सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश जी का ही एक नाम है।
सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश जी का सबसे प्रसिद्ध नाम है। इस रूप में भगवान श्री गणेश जी की सुंड दाई ओर बड़ी हुई है।
गणेश जी की ऐसी प्रतिमा वाले मंदिर सिद्ध पीठ मंदिर कहलाते हैं। इसलिए इन्हें सिद्धिविनायक मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि यहां पर दर्शन करने पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
Siddhivinayak Temple की स्थापना कब हुई थी?
भारत का सबसे प्रसिद्ध और धनी मंदिर के रूप में माना जाने वाला भगवान श्री गणेश जी का Siddhivinayak Temple का निर्माण विक्रम संवत 1692 में हुआ था। परंतु सरकारी दस्तावेजों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 19 नवंबर 1801 में हुआ था।
सिद्धिविनायक मंदिर के निर्माण के पीछे की कहानी
Siddhivinayak Temple के निर्माण के पीछे एक अनोखी कहानी है। इसका निर्माण नवंबर अट्ठारह को लक्ष्मण विधु पाटिल नाम के स्थानीय ठेकेदार द्वारा किया गया था।
बहुत कम लोगों को इस मंदिर के निर्माण में लगी राशि तथा किसके द्वारा लगाई गई के बारे मे पता होगा। इस मंदिर के निर्माण हेतु एक महिला ने अपनी संपूर्ण पूंजी लगा दी थी। उस महिला की कोई संतान नहीं थी।
वह सिद्धिविनायक मंदिर के निर्माण में अपना योगदान देना चाहती थी, ताकि भगवान के आशीर्वाद से उसे संतान प्राप्ति का सुख मिल सके।
Siddhivinayak Temple सभी प्रकार के धर्म व जातियों के लिए हमेशा खुला रहता है। किसी भी धर्म को यहां पर प्रधानता नहीं दी जाती।
इस मंदिर में सभी धर्म के लोग बराबर माने जाते हैं। यह मंदिर अपनी मंगलवार आरती के लिए बहुत प्रसिद्ध है। क्योंकि इस दिन भक्तों की कतारें 2 किलोमीटर से भी अधिक चली जाती है।
सिद्धिविनायक का सबसे प्रसिद्ध मंत्र
ॐ नमो सिद्धि विनायकाय सर्व कार्य कर्त्रे सर्व विघ्न प्रशमनाय
सर्व राज्य वश्यकरणाय सर्वजन सर्वस्त्री पुरुष आकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा
यह सिद्धिविनायक भगवान का सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंच है आपके द्वारा किए गए सारे पापों को नष्ट कर देता है तथा स्मरण शक्ति और एकाग्रता को बढ़ाता है। यह मंत्र आपके घर में सुख समृद्धि लाता है।
सिद्धिविनायक मंदिर कहां पर स्थित है?
Siddhivinayak Temple भारत के महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में स्थित हैं। इसका पता 2R8j+P3H,SK BOLE MARG,PRABHADEVI,MUMBAI, MAHARASTRA
Siddhivinayak Temple में उपस्थित दो चूहे
मंदिर परिसर में चांदी से बनी चूहों की दो बड़ी मूर्तियां मौजूद हैं। लोगों का मानना है कि अगर आप उन दो चूहों के कानों में अपनी इच्छाओं को प्रकट करते हैं तो इच्छा सीधे भगवान श्री गणेश तक पहुंचती है और आपकी इच्छा पूरी हो जाती हैं। इस मंदिर में यह क्रिया करते हुए कई भक्तों को देखा जा सकता है।
सिद्धिविनायक मंदिर में कितना चढ़ावा आता है?
पुराने आंकड़ों के अनुसार सिद्धिविनायक मंदिर में हर साल लगभग एक सौ मिलियन से डेढ़ सौ मिलियन रुपयों का दान होता है। इस दान राशि का देखरेख मुंबई शहर की सबसे अमीर संस्था द्वारा किया जाता है।
सिद्धिविनायक व्रत कथा
सिद्धिविनायक व्रत की एक पौराणिक कथा है। पुराणों के अनुसार एक समय भगवान शिव एवं माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे चौपड़ खेल रहे थे।
माता पार्वती और भगवान शिव के इस खेल का निर्णय करने के लिए वहां पर कोई तीसरा उपस्थित नहीं था। तब भगवान शिव ने इस खेल का निर्णायक बनाने के लिए तिनकों को एकत्रित कर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठित किये।
भगवान शिव ने आदेश किया की हम दोनों के खेल का निर्णय लेना आपके ऊपर हैं। आप ही इस खेल के हार एवं जीत का निर्णय लेंगे। खेल आरंभ हुआ। खेल तीन बार खेला गया। परंतु संयोगवश माता पार्वती इस खेल में तीनों बार भोलेनाथ से जीत गई।
तब भगवान शिव ने उस पुतले से हार जीत का फैसला करने के लिए कहा । तब उस पुतले ने महादेव को विजई घोषित किया।
भारत के मंदिरों तथा महापुरुषों की जीवनी जानने के लिए क्लिक करे
मा पार्वती का क्रोधित होना
महादेव को विजेता घोषित किए जाने पर माता पार्वती उस पुतले पर अत्यंत क्रोधित हुई और श्राप दे दिया। बाद में उस पुतले ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा मुझसे यह अज्ञानता वश हो गया है आप मुझे क्षमा करें।
आप मेरे श्राप का निवारण करें। उस पुतले रूपी बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता पार्वती ने श्राप के समाधान के लिए कहा यहां पर श्री गणेश पूजन के लिए नागकन्या आएगी।
उनके कहे अनुसार तुम भगवान श्री गणेश का ध्यान करना जिससे तुम यह प्राप्त करोगी। यह कहकर माता पार्वती और शिव जी कैलाश पर्वत पर चले गए।
1 वर्ष बाद उस स्थान पर नागकन्या श्री गणेश के पूजन हेतु वहां आई। तब नागकन्या ने उस बालक को श्री गणेश का व्रत तथा व्रत विधि के बारे में बताया।
बालक द्वारा किए गए इस व्रत से श्री गणेश प्रश्न हुए और बालक की इच्छा पूर्ण करने का वरदान दिया। बालक की इच्छा पूर्ण हुई और वह अपने माता पिता स्वरूप भगवान शिव और पार्वती से मिल पाया।