श्रीनाथ मंदिर का विध्वंस || हिंदू योद्धाओं का बलिदान
भारत का इतिहास गौरवशाली है, लेकिन कई बार इसे विकृत रूप से पेश किया गया है। विशेष रूप से औरंगजेब के शासनकाल में हुई घटनाओं को अक्सर गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। श्रीनाथ मंदिर का विनाश और उसके बाद हिंदू योद्धाओं द्वारा किया गया प्रतिरोध एक ऐसा ही विषय है, जिसे इतिहास में गलत तरीके से दर्शाया गया है।
श्रीनाथ मंदिर का विध्वंस
मथुरा स्थित प्राचीन श्रीनाथ मंदिर की कहानी बहुत ही विचलित करने वाली है। श्रीनाथ मंदिर को औरंगजेब ने 1670 में नष्ट कर दिया था। श्रीनाथ मंदिर एक प्रसिद्ध और समृद्ध मंदिर था, जिसे कृष्ण भक्तों द्वारा बहुत पूजा जाता था। औरंगजेब ने श्रीनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया और इसकी जगह एक मस्जिद बनवाई गई।
मेवाड़ के राजा की प्रतिक्रिया
श्रीनाथ मंदिर के विनाश की खबर सुनकर मेवाड़ के नरेश राज सिंह ने बहुत क्रोधित होकर प्रतिशोध लिया। उन्होंने अपने पुत्र भीम सिंह को गुजरात भेजा और कहा कि वह वहां की सभी मस्जिदों को नष्ट कर दे। भीम सिंह ने इस आदेश का पालन किया और गुजरात में लगभग 300 मस्जिदों को नष्ट कर दिया।
हिंदुओं की स्वतंत्रता की लड़ाई
इतिहास गवाह है कि जब भी आक्रांता अत्यधिक बर्बर हुए हैं, हिंदुओं ने संगठित होकर प्रतिरोध किया है। हिंदू स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए ही बने हैं। हालांकि, सूफियों और मिशनरियों ने हिंदुओं का धर्मांतरण किया, लेकिन हिंदुओं ने हमेशा तलवार से प्रतिरोध किया है।
वीर दुर्गादास राठौड़ का बलिदान
वीर दुर्गादास राठौड़ एक अन्य महान योद्धा थे, जिन्होंने औरंगजेब के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। उन्होंने औरंगजेब की नाक में दम कर दिया था और महाराज अजीत सिंह को राजा बनाकर ही दम लिया। दुर्गादास राठौड़ के बारे में कहा जाता है कि उनका भोजन, पानी और विश्राम सभी घोड़े के पास ही होता था। राजस्थान के लोकगीतों में गाया जाता है कि अगर दुर्गादास न होते तो राजस्थान में सुन्नत हो जाती।
शिवाजी की तरह छापामार युद्ध
वीर दुर्गादास राठौड़ भी शिवाजी की तरह छापामार युद्ध की कला में विशेषज्ञ थे। उन्होंने औरंगजेब के विरुद्ध लगातार लड़ाई लड़ी और उसकी फौजों को बहुत नुकसान पहुंचाया।
हिंदुओं का संगठित प्रतिरोध
मध्यकाल का दुर्भाग्य यह रहा कि हिंदू संगठित रूप से एक संघ के तहत नहीं लड़े, बल्कि अलग-अलग स्थानों पर स्थानीय स्तर पर प्रतिरोध करते रहे। औरंगजेब के समय में दक्षिण में शिवाजी, राजस्थान में दुर्गादास, पश्चिम में सिख गुरु गोविंद सिंह, पूर्व में लचित बरफुकन और बुंदेलखंड में राजा छत्रसाल ने भरपूर प्रतिरोध किया। इन्हीं प्रतिरोधों के कारण औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का पतन हुआ।
अन्य राजवंशों का योगदान
जबकि मुगलों के पास उस समय मेवाड़, दक्षिण और पूर्व भी नहीं था। भारत में अन्य कई वंश भी शताब्दियों तक राज्य करते रहे, लेकिन उन्हें उतना महत्व नहीं दिया गया। विजयनगर साम्राज्य 300 वर्षों तक टिका रहा और हम्पी नगर में हीरे-माणिक्य की मंडियां लगती थीं।
मुगल साम्राज्य का पतन
बाबर ने मुश्किल से 4 वर्ष राज किया और हुमायूं को भगा दिया। मुगल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली, लेकिन औरंगजेब के समय में यह उखड़ गया। केवल 100 वर्ष (अकबर 1556 ई. से औरंगजेब 1658 ई. तक) के स्थिर शासन को मुगल काल नाम से इतिहास में एक पूरे भाग की तरह पढ़ाया जाता है, मानो मध्यकाल में सिर्फ इनका ही राज था।
महाभारत युद्ध के बाद:
– जरासंध वंश के 22 राजाओं ने 1006 वर्ष तक राज किया
– 5 प्रद्योत वंश के राजाओं ने 138 वर्ष तक
– 10 शैशुनागों ने 360 वर्षों तक
– 9 नन्दों ने 100 वर्षों तक
– 12 मौर्यों ने 316 वर्षों तक
– 10 शुंगों ने 300 वर्षों तक
– 4 कण्वों ने 85 वर्षों तक
– 33 आंध्रों ने 506 वर्षों तक
– 7 गुप्तों ने 245 वर्षों तक राज्य किया
रघुवंशी लोहाणा (लोहर-राणा) वंश ने पाकिस्तान के सिंध, पंजाब से लेकर अफगानिस्तान के समरकंद तक राज किया और देश को आक्रांताओं से बचाया। उन्होंने मुहम्मद गजनी के पिता सुबुकटिगिन को अपने दरबार में मारकर उसका सिर मुल्तान में टांग दिया था।
कर्नाटक के विक्रमादित्य ने भी 100 वर्षों तक राज किया, लेकिन उन्हें भी इतिहास में गुमनाम कर दिया गया। कश्मीर में करकोटक वंश के ललितादित्य मुक्तपीड ने आरबों को धूल चटाई और कश्मीर की सबसे शक्तिशाली रानी दिद्दा लोहराणा (लोहर क्षत्रिय) ने मजबूती से राज किया और दुश्मनों को मार दिया।
इतिहास में छिपाए गए तथ्य
तारीख-ए-हिंदवा सिंध और चचनामा जैसी पुस्तकें पहले आरब मुस्लिम आक्रमण के बारे में बताती हैं, जिसमें कराची के पास देवाल में 700 बौद्ध साधविओं का बलात्कार किया गया था। लेकिन इन आरबों को मारकर इराक तक भगाने वाले बाप्पा रावल, नागभट्ट प्रथम, पुलकेसिन जैसे वीर योद्धाओं के बारे में नहीं पढ़ाया जाता।
इतिहासकारों की पूर्वाग्रही दृष्टि
इन महान् योद्धाओं और राजवंशों का वर्णन करते समय इतिहासकारों को मुंह का कैंसर हो जाता है। सामान्य ज्ञान की किताबों में पन्ने कम पड़ जाते हैं, पाठ्यक्रम के पृष्ठ सिकुड़ जाते हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं में उनके हृदय पर हल चल जाता है। वामपंथी इतिहासकारों ने नेहरूवाद का मल भक्षण किया है और जो उल्टियां की उसे ज्ञान समझकर चाटने वाले चाटुकारों को धिक्कार है!
षड्यंत्र का आरोप
यह सब कैसे और किस उद्देश्य से किया गया, हम अभी तक ठीक से नहीं समझ पाए हैं और न ही समझने का प्रयास कर रहे हैं। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हिंदू योद्धाओं को इतिहास से बाहर कर दिया गया है और सिर्फ मुगलों को महान बताने वाला नकली इतिहास पढ़ाया जा रहा है। महाराणा प्रताप के स्थान पर अत्याचारी और अय्याश अकबर को महान होना लिख दिया गया है।
मौलाना आजाद का योगदान
इस प्रकार इतिहास को प्रस्तुत करने का जिम्मेदार सिर्फ एक व्यक्ति है, वह है मौलाना आजाद, भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री। अब यदि इतिहास में उस समय के वास्तविक हिंदू योद्धाओं को शामिल करने का प्रयास किया जाता है तो विपक्ष शिक्षा के ‘भगवाकरण’ करने का आरोप लगाता है!
निष्कर्ष
समग्र रूप से, श्रीनाथ मंदिर के विध्वंस और उसके बाद हुए हिंदू योद्धाओं के प्रतिरोध को इतिहास में उचित स्थान नहीं दिया गया है। कई महान् योद्धा और राजवंशों को नजरअंदाज किया गया है। हमें इतिहास को निष्पक्ष और पूर्वाग्रह से मुक्त दृष्टिकोण से देखना चाहिए और सभी महत्वपूर्ण घटनाओं और व्यक्तित्वों को उचित सम्मान देना चाहिए।