भगवान की aarti क्यू की जाती है ? || भक्ति का सुंदर साधन

Aarti || भक्ति का सुंदर साधन

आरती का अर्थ है भक्ति के विरह में होकर भगवान को याद करना और उनका स्तवन करना। इस पवित्र प्रथा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, और कपूर से की जाती है, जिससे पूजा का सम्पूर्णता मिलती है। आरती, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पूजा विधि है जो भक्ति और आध्यात्मिक साधना का सुगम माध्यम प्रदान करती है। इस धार्मिक परंपरा में आरती को ईष्ट देवता की आराधना का एक विशेष रूप माना जाता है, जिससे आत्मा में शान्ति, प्रेम, और समर्पण की भावना उत्पन्न होती है।

आरती एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक प्रथा है, जो देवी-देवताओं की पूजा के दौरान की जाती है। Aarti माध्यम से भक्त अपनी भक्ति और श्रद्धा का अभिव्यक्ति करता है।

इस लेख में, हम जानेंगे कि आरती में प्रयुक्त सामग्री का हिन्दू धर्म में क्या महत्व है और इसका वैज्ञानिक तथा धार्मिक प्रमाण क्या है।

भगवान की aarti क्यू की जाती है ? || भक्ति का सुंदर साधन

आरती के प्रकार: Bhagwan ki Aarti

  1. दीप आरती: दीपक को जलाकर सूर्य की तरह प्रकाशित करना।
  2. जल आरती: जल से भरे शंख की पूजा, जीवन के प्रति कृतज्ञता का संकेत।
  3. धूप, कपूर से आरती: वातावरण को सुगंधित करते हैं और मन को प्रसन्न करते हैं।
  4. पुष्प आरती: सुंदरता और सुगंध का प्रतीक।

आरती का महत्व:

आरती के साथ ध्वनि, वाद्य, और मंत्रों का समाहित संगीत होता है, जिससे प्रशांति और शांति मिलती है। इससे रोगाणुओं का नाश होता है और पर्यावरण को पवित्रता मिलती है। Aarti के बाद मंत्रों के साथ फूलों का अर्पण करना और प्रार्थना करना भक्ति का सूचक है।

Aarti एक समर्पित रीति है जो भक्त और ईष्ट देवता के बीच एक विशेष संबंध को साझा करती है। इसमें दीप, धूप, और पुष्पों के साथ सांगीतिक भक्ति शामिल होती है, जिससे आत्मा का उत्कृष्ट अनुभव होता है। आरती का महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि इसके माध्यम से भक्त अपनी आस्था को व्यक्त करता है और ईष्ट देवता के साथ एक साकार संबंध बनाता है।

Bhagwan ki Aarti का समय:

  1. मंगला आरती: सूर्योदय से पहले।
  2. श्रंगार आरती: पूजा के बाद।
  3. राजभोग आरती: दोपहर के भोजन के समय।
  4. संध्या आरती: शाम को भगवान को समर्पित करते समय।
  5. शयन आरती: रात्रि में सोने के समय।

आरती का सामग्री समृद्धि और शांति का स्थायी स्रोत मानी जाता है, जिससे आत्मा का प्रकाश बना रहता है। यह भक्ति और आत्मा संबंध को मजबूत करता है और व्यक्ति को ईश्वर के साथ एकात्मता में ले जाता है। आरती का आनंद लेने का सही तरीका है भक्ति भावना के साथ, मानो व्यक्ति पंच प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। यह एक सुंदर और मानवता के लिए शिक्षाप्रद साधन है, जो आत्मा को ईश्वर के साथ मिलाता है।

आरती का आध्यात्मिक तात्पर्य:

Aarti का आध्यात्मिक सन्देश है कि हमें ईश्वर के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहना चाहिए और हमें सभी प्राणियों के प्रति समर्पण से युक्त रहना चाहिए। आरती के द्वारा, हम ईश्वर की स्तुति न केवल वचनिक रूप से करते हैं, बल्कि मान, वचन, और क्रिया से भी उनकी आराधना करते हैं।

 आध्यात्मिक महत्व:

आरती एक आध्यात्मिक समारोह है जो भक्तों को ईष्ट देवता के साथ सीधे संबंध में लाता है। यह स्थूल और सूक्ष्म रूपों में आत्मा को जोड़ने का एक सांस्कृतिक तरीका है। आरती के दौरान ज्यों ही दीपकों की रौशनी चमकती है, व्यक्ति का चित्त ध्यान में समर्पित होता है और वह अपने अंतर्यात्मा में एकता का अनुभव करता है।

आरती में सामग्री का महत्व

पूजा और आरती का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है सामग्री। यह विभिन्न तत्वों को सम्बोधित करने और उनकी पूजा करने का साधन होती है, जिससे आराधक भक्ति और श्रद्धा से भरा रहता है।

रुई, घी, और कपूर

आरती में उपयोग होने वाली रुई, घी, और कपूर की बाती से निकलने वाली सुगंध वातावरण को शुद्ध और शांति प्रदान करती है। इससे नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

कलश

कलश का खास महत्व है, जिसमें शिव का प्रतिष्ठान होता है। Aarti के समय कलश का प्रयोग शिव से एकाकार होने का संकेत है और इसमें सभी देवताओं का आवास माना जाता है।

नारियल, सोना, और तांबे की मुद्रा

नारियल, सोना, और तांबे की मुद्रा भी पूजा के अभिष्ट सिद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनसे सकारात्मक ऊर्जा को आकृष्ट करने की शक्ति होती है और भक्त के अंदर सात्विक गुणों का समावेश होता है।

सप्तनदियों का जल, पान सुपारी, और नागबेल

Aarti में सप्तनदियों का जल डालना, पान सुपारी और नागबेल का प्रयोग सात्विक ऊर्जा को बढ़ाता है और पूजा को और भी पवित्र बनाता है। इन सामग्रियों के सही प्रयोग से पूजन सत्य, शुद्धि, और ध्यान की अवस्था में पूर्ण होता है।

कलश में सप्तदियों का जल

कलश में सप्तदियों का जल डालना पूजा के प्रारंभ में एक पवित्र और शुद्ध बात है। इससे सात समुद्रों का प्रतीक, गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी, और सिंधु के संगम की भावना होती है, जिससे पूजा का माहौल प्रशांत होता है।

पान सुपारी और नागबेल

पान सुपारी और नागबेल का प्रयोग पूजा में ध्यान और भक्ति में सहारा प्रदान करता है। इन्हें सात्विक भोजन माना जाता है, जो मानव शरीर और मस्तिष्क को पवित्र बनाए रखने में मदद करता है।

आरती के दीपक 

आरती में जलाए जाने वाले दीपक का मिट्टी से बना होता है, जिसमें पांच तत्वों – मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि, और वायु का प्रतीक होता है। Aarti माध्यम से पूजा करने वाला व्यक्ति पंचतत्वों के साथ एकीकृत होकर परमात्मा की अनुभूति करता है।

आरती में बजाए जाने वाले भजन

आरती के समय बजाए जाने वाले भजन भक्ति और साधना को बढ़ावा देते हैं, जिससे मानव आत्मा का एकत्व बढ़ता है। ये भजन सुनने से मन शांत होता है और व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ता है।

आरती का असली अर्थ

Aarti का मूल शब्द “आराधना” से आता है, जिसका अर्थ होता है भक्ति और पूजा में भगवान की स्तुति करना। आरती में उपयुक्त और सुरक्षित तत्वों का उपयोग करके ईष्ट देवता की पूजा की जाती है, जिससे स्थान का शुद्धिकरण होता है।

आरती और स्वास्थ्य:

आरती के दौरान जलती हुई दीपकों से फैलने वाली सुगंध कई औषधिक गुणों से भरी होती है। धूप, अगरबत्ती, और पुष्पों की खुशबू वातावरण को शुद्ध करने में मदद करती है और योगाभ्यास में भी शान्ति बनाए रखने में सहायक होती है।

निष्कर्ष

आरती में सामग्री का महत्वपूर्ण रूप से हिन्दू धर्म में मान्यता है, जो भक्त को आत्मा के साथ सात्विक गुणों की प्राप्ति में मदद करती है। इसके माध्यम से पूजा करने वाला व्यक्ति शांति, शुद्धि, और ध्यान की स्थिति में पहुंचता है और ईश्वर के साथ अपना एकत्व महसूस करता है।  Aarti में सामग्री का उपयोग धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह सामग्री भक्त को शुद्धि, सत्य, और ध्यान में मदद करती है, जिससे उसका आत्मा प्रशान्त रहता है और वह ईश्वर के प्रति अपनी अनुभूति को बढ़ाता है।

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