चित्तौड़ का तीसरा जौहर || चित्तौड़गढ़ दुर्ग

चित्तौड़ का तीसरा जौहर: एक ऐतिहासिक पुनरावृत्ति

भारतीय इतिहास में, 23-24 फरवरी 1568 ई. को चित्तौड़ के तीसरे जौहर का आयोजन किया गया था। इस महत्वपूर्ण घटना के माध्यम से राणी फूल कंवर जी ने राजपूत गौरव की रक्षा करते हुए अपने देशवासियों के लिए बहादुरी और आत्मबलिदान का परिचय दिया।

जौहर का स्वरूप और विवरण

जौहर एक पुरातात्विक प्रथा है जिसमें राजपूत रानियां अपने पतियों और परिवार के साथ एकाग्रता बनाए रखने के लिए आत्मदाह करती थीं। चित्तौड़ का तीसरा जौहर रावत पत्ता चुण्डावत की पत्नी रानी फूल कंवर जी ने नेतृत्व किया। इस जौहर के दौरान, तीन अलग-अलग स्थानों पर यह सम्पन्न हुआ – रावत पत्ता चुण्डावत के महल, साहिब खान जी के महल, और ईसरदास जी के महल में।

चित्तौड़ का तीसरा जौहर: इतिहास और सिख

चित्तौड़ का तीसरा जौहर राजपूतों के वीरता और आत्मसमर्पण का एक उदाहरण है। यह घटना भारतीय समाज में समर्पण की भावना और अपने सम्पूर्ण समृद्धि के लिए आत्मनिर्भरता की ऊँचाई बताती है। रानी फूल कंवर जी ने अपने प्राणों की आहुति देने के माध्यम से देशभक्ति और राजपूत संस्कृति को बचाने का निर्णय किया।

अबुल फजल की रिपोर्ट: इतिहास की अद्वितीय गवाही

मुग़़ल साम्राज्य के इतिहासकार अबुल फजल ने इस घटना को अपने लेखों में विवरण किया है। उनकी रिपोर्ट के अनुसार, राजपूतों की फौज दो दिनों से भूखी और प्यासी थी, लेकिन उन्होंने भीमगढ़ की सुरंगों को तैयार करने में अविरत प्रयासरत रही। एक रात, चित्तौड़ का तीसरा जौहर से उठता हुआ धुंआ ने दिखाई दी, जिसे देखकर सभी अफसर समझ गए कि जौहर का समय आ गया है।

चित्तौड़ का तीसरा जौहर  चित्तौड़गढ़ दुर्ग

जौहर के शूरवीरों की सूची: नाम और योगदान

इस अद्वितीय जौहर में अनेक राजपूत वीरांगनाएँ ने अपने प्राणों की आहुति दी। उनमें से कुछ प्रमुख रानियाँ थीं:

  1. रानी फूल कंवर: इन्होंने चित्तौड़ के तीसरे जौहर का नेतृत्व किया।
  2. सज्जन बाई सोनगरी: रावत पत्ता चुण्डावत की माता
  3. रानी मदालसा बाई कछवाही: सहसमल जी की पुत्री
  4. जीवा बाई सोलंकिनी: सामन्तसी की पुत्री व रावत पत्ता चुण्डावत की पत्नी
  5. रानी सारदा बाई राठौड़
  6. रानी भगवती बाई: ईसरदास जी की पुत्री
  7. रानी पद्मावती बाई झाली
  8. रानी बगद़ी बाई चौहान
  9. रानी रतन बाई राठौड़
  10. रानी बलेसा बाई चौहान
  11. रानी बागड़ेची आशा बाई: प्रभार डूंगरसी की पुत्री

प्रमाण स्वरूप: इतिहास का साक्षात्कार

चित्तौड़ के तीसरे जौहर के प्रमाण स्वरूप, भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने समिद्धेश्वर मन्दिर के पास सफाई करवाई। इस साक्षात्कार में, राख और हड्डियां बड़ी मात्रा में मिलीं, जो इस ऐतिहासिक घटना की गहरी छाया को दर्शाती हैं।

समापन: श्रद्धांजलि और गर्व का अभिवादन

चित्तौड़ का तीसरा जौहर एक ऐतिहासिक घटना है जो राजपूतों की अद्भुतता, वीरता, और आत्मनिर्भरता की कहानी को सजीव रूप से सुनाती है। हम सभी क्षत्राणी माताओं की श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके साहसपूर्ण आत्मबलिदान के लिए गर्वित हैं।

भविष्य की ओर: समृद्धि और अभिवृद्धि का संकल्प

चित्तौड़ का तीसरा जौहर हमें हमारे ऐतिहासिक राजपूत संस्कृति के महत्वपूर्ण अंशों की ओर मुड़ने के लिए प्रेरित करता है। हमें यहां से एक मजबूत संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने समृद्धि और अभिवृद्धि के माध्यम से अपनी समृद्धि की ओर बढ़ेंगे और राजपूत गौरव को यहां तक बढ़ाएंगे।

नारी शक्ति: एक नई परिप्रेक्ष्य

चित्तौड़ के तीसरे जौहर की कहानी हमें नारी शक्ति के प्रति नए समर्पण और समर्थन की दिशा में प्रेरित करती है। रानी फूल कंवर जी ने अपने साहस और समर्पण से साबित किया कि नारी शक्ति ही एक समृद्धि और समृद्धि की सूची में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

इस पुनरावृत्ति के माध्यम से, हम आपको सभी को चित्तौड़ के तीसरे जौहर की महत्वपूर्ण और गर्वन्वित कहानी से जुड़ी नई दिशा में ले जाने का आशीर्वाद देते हैं। इसे याद रखना हमारी सांस्कृतिक विरासत को महसूस करने और समृद्धि की ओर बढ़ने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

पुरातात्विक साक्षरता: ज्ञान का सफर

तीसरे जौहर के महत्वपूर्ण अध्याय से, हमें यह सिखने को मिलता है कि पुरातात्विक साक्षरता का महत्व कैसे है। यह एक ऐसा सफर है जिसमें हम अपने इतिहास, संस्कृति, और धार्मिक मूल्यों को समझते हैं और उन्हें अगली पीढ़ियों के साथ साझा करते हैं।

निष्कर्ष

चित्तौड़ का तीसरा जौहर हमें गर्व और आत्मनिर्भरता का सजीव दृष्टिकोण प्रदान करता है। इस ऐतिहासिक घटना के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि समर्पण, वीरता, और सत्य के प्रति समर्पित रहना हमारे समाज को मजबूती और समृद्धि की ओर बढ़ा सकता है।

चित्तौड़ के तीसरे जौहर की उपलब्धि और उसकी महत्वपूर्णता को याद रखते हुए, हमें आगे बढ़कर एक नए भविष्य की ओर मुख करना चाहिए, जिसमें समृद्धि, शिक्षा, और सामाजिक समरसता हो। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस ऐतिहासिक ऊंचाइयों को नए आयामों तक पहुँचाएं और हमारी सांस्कृतिक धरोहर को समृद्धि और समृद्धि की ऊँचाइयों तक ले जाएं।

इस सफल और गर्वन्वित यात्रा में, हमें चित्तौड़ के तीसरे जौहर की श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और आत्मनिर्भरता, समर्पण, और वीरता की ओर एक कदम और बढ़ते हैं।

इस पुनरावृत्ति के माध्यम से, हम आप सभी को चित्तौड़ के तीसरे जौहर की महत्वपूर्ण और गर्वन्वित कहानी से जुड़ी नई दिशा में ले जाने का आशीर्वाद देते हैं। इसे याद रखना हमारी सांस्कृतिक विरासत को महसूस करने और समृद्धि की ओर बढ़ने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

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