Dattaji Shinde || एक महान मराठा शूरवीर
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी में असंख्य वीरों के बलिदान गुंथे हुए हैं। इन वीरों में से एक है दत्ताजी शिंदे, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन देश की रक्षा से कभी समझौता नहीं किया। उनके बलिदान की गाथा आज भी हमारे लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है।
Dattaji Shinde का परिचय
दत्ताजी शिंदे एक महान मराठा सेनापति थे, जिन्होंने अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों का डटकर मुकाबला किया था। वे मराठा सरदार राणोजी शिंदे के पुत्र थे और ग्वालियर से अपनी सेना का संचालन करते थे। मराठों ने अहमदशाह अब्दाली के खिलाफ कई बार मोर्चा संभाला था, लेकिन Dattaji Shinde का बलिदान इस लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण था।
अहमदशाह अब्दाली का भारत पर आक्रमण
अहमदशाह अब्दाली अफगानिस्तान का शासक था और विश्व प्रसिद्ध लुटेरे नादिरशाह का वंशज था। उसने भारत पर कुल छह बार आक्रमण किए, जिनमें लूट, हत्याएं और स्त्रियों का अपहरण शामिल था। उसके आक्रमणों से लोगों में इतना भय था कि एक कहावत प्रचलित हो गई थी: “जितना खा लो पी लो पहन लो वही अपना है, बाकी तो अहमदशाह ले जाएगा।”
रूहेलों का विश्वासघात और बलिदान Dattaji Shinde
अहमदशाह अब्दाली के आखिरी आक्रमण में रूहेलों ने मराठों से विश्वासघात किया। उन्होंने दत्ताजी शिंदे को सहयोग का आश्वासन दिया, लेकिन अंत में अब्दाली से मिल गए। दत्ताजी शिंदे केवल 2,500 सैनिकों के साथ दिल्ली पहुंचे और बुराड़ी घाट नामक स्थान पर घिर गए।
जब उन्होंने रूहेलों की नियत समझी, तो उन्होंने अपनी पगड़ी में रखे कन्हैया जी को निकाला और अपने भाई माधवराव को दे दिया। उनके सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की, लेकिन दत्तात्रेय शिंदे भी घायल हो गए। तब नजब खां ने आकर उनका सिर काट लिया और अहमदशाह अब्दाली को भेंट कर दिया।
दिल्ली में लूट और कत्लेआम
इस घटना के बाद अहमदशाह अब्दाली ने दिल्ली में लूट और कत्लेआम शुरू कर दिया। मुगल बादशाह भी इतना भयभीत हो गया था कि उसने न केवल नगर, बल्कि महल में भी लूट की अनुमति दे दी। इतिहासकारों के अनुसार, मुगल खानदान की कोई भी स्त्री ऐसी नहीं बची, जिसके साथ अनाचार न हुआ हो।
मुगल साम्राज्य की शरणस्थिति
उस समय मुगल साम्राज्य विखंडित होने की कगार पर था और उसे राज्य संचालन के लिए मराठों या रूहेलों की सहायता लेनी पड़ती थी। मराठे तो सहायता करते थे, लेकिन इसके बदले में आर्थिक लाभ लेते और मंदिरों का जीर्णोद्धार भी कराते थे। इससे रूहेलों को ईर्ष्या होती थी।
Dattaji Shinde का पंजाब अभियान
जब अफगानों ने पंजाब और लाहौर पर अधिकार कर लिया, तो पेशवा ने Dattaji Shinde को 18,000 सैनिकों की सेना के साथ उत्तर भारत भेजा। मराठों ने जीत दर्ज की और पंजाब तथा सिंध में सनातनी राज्य की स्थापना की। यह परिवर्तन सात सौ साल बाद हुआ था।
दत्ताजी शिंदे की वीरगाथा
Dattaji Shinde ने अपने जीवन की अंतिम सांस तक देश की रक्षा की कोशिश की। उनके बलिदान से यह साबित होता है कि वीरता और देशभक्ति केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि एक जीवन मूल्य है। आज भी उनकी वीरगाथा युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। अपने बलिदान के बावजूद उन्हें सम्मान नहीं मिला, क्योंकि वे विजेता नहीं थे। लेकिन इतिहास उन्हें एक महान योद्धा और देशभक्त के रूप में याद करता है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि देश की रक्षा के लिए किसी भी बलिदान को छोटा नहीं समझा जाना चाहिए।
इस लेख में हमने दत्तात्रेय शिंदे के जीवन और बलिदान की गाथा को सामने लाने की कोशिश की है। हम उम्मीद करते हैं कि आप इस महान वीर की कहानी से प्रेरित हुए होंगे। उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जाना चाहिए, क्योंकि वे देशभक्ति और वीरता के प्रतीक हैं।