Roshan Singh || एक क्रांतिकारी और देश प्रेमी

Roshan Singh || एक क्रांतिकारी और देश प्रेमी

ठाकुर रोशन सिंह का जीवन परिचय

22 जनवरी 1892 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के फतेहगढ़ गांव के नवादा में जन्मे ठाकुर रोशन सिंह एक असाधारण क्रांतिकारी और देश प्रेमी थे। उनका बचपन संस्कारों और सिद्धांतों से भरा रहा, जिसने उन्हें भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

Roshan Singh का बचपन और शिक्षा

रोशन सिंह का परिवार भारतीय संस्कृति और परंपराओं से गहरे तौर पर जुड़ा हुआ था। उनके पिता का नाम जंगी सिंह और माता का नाम कौशल्या देवी था। घर में शिक्षा और संस्कार का वातावरण था। संतों और समाज सेवियों का आना-जाना भी होता था, जिससे घर में स्वाभिमान संपन्न राष्ट्र निर्माण की चर्चा अक्सर होती थी।

इन चर्चाओं से यह निष्कर्ष भी निकलता था कि भारत की स्वतंत्रता आवश्यक है। इस वातावरण में रोशन सिंह बड़े हुए और उन्होंने संस्कृत और संस्कृति के प्रति स्वाभाविक झुकाव विकसित किया। परिवार आर्य समाज से जुड़ा हुआ था और स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस के साथ था।

असहयोग आंदोलन में भागीदारी

रोशन सिंह ने 1922 में महात्मा गांधी के आव्हान पर हुए असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उन्होंने पूरे क्षेत्र में घूमकर आंदोलन को सफल बनाने की तैयारी की और स्वयं बरेली के प्रदर्शन में शामिल हुए, जहां पुलिस शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग करने लगी।

रोशन सिंह ने पहले पुलिस को समझाने की कोशिश की, लेकिन एक पुलिस जवान ने हाथापाई शुरू कर दी।  रोशन सिंह मजबूत शरीर के स्वामी थे। Roshan Singh सिपाही से बंदूक छीनकर हवाई फायर किए, जिससे पुलिस भाग खड़ी हुई। ठाकुर रोशन सिंह गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें दो साल की सजा हुई।

 Roshan Singh || एक क्रांतिकारी और देश प्रेमी
 Roshan Singh || एक क्रांतिकारी और देश प्रेमी

 क्रांतिकारी गतिविधियां

इसी आंदोलन के दौरान चौरा-चौरी कांड हुआ, जिससे व्यथित होकर गांधी जी ने आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर दी। इस घोषणा से देश भर के उन नौजवानों पर विपरीत प्रभाव पड़ा,Roshan Singh ने अहिंसक आंदोलन होने के बावजूद पुलिस प्रताड़ना सही और प्रतिकार किया था। ठाकुर रोशन सिंह इन्हीं में से एक थे।

दो साल बाद जेल से छूटने के बाद, ठाकुर रोशन सिंह क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। क्रांतिकारियों के साथ उनकी एक टोली बन गई। Roshan Singh न केवल शारीरिक दृष्टि से सबल थे, बल्कि उनका निशाना भी अचूक होता था। इस कारण Roshan Singh क्रांतिकारी टोली में लोकप्रिय हो गए।

यद्यपि आयु में रोशन सिंह बड़े थे, फिर भी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान आदि के साथ एक अच्छा समूह बन गया। सभी ने मिलकर सशस्त्र आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया। इसके लिए हथियार और धन की आवश्यकता थी। योजना बनी कि धन या तो उनसे लूटा जाए जो अंग्रेजों के लिए धन जमा करते हैं, या फिर सरकारी खजाना ही लूटा जाए।

बमरौली और काकोरी कांड

इस योजना के अंतर्गत पहला धावा 25 दिसंबर 1924 को बमरौली में बोला गया। इसमें एक ऐसे व्यापारी को निशाना बनाया गया जो अंग्रेजों के लिए धन एकत्र करता था। इस कांड में क्रांतिकारियों को चार हजार रुपये तो मिले, लेकिन ठाकुर रोशन सिंह की पिस्तौल से निकली गोली से एक व्यक्ति मारा गया।

इस दल पर विभिन्न संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज हो गया। पहचान केवल ठाकुर रोशन सिंह की ही हुई, क्योंकि वे इस क्षेत्र में सक्रिय थे। उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट निकला, लेकिन वे पकड़ में नहीं आए।

फिर 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड हुआ, जिसमें सरकारी खजाना लूटा गया। इस घटना से पूरी अंग्रेज सरकार हिल गई और पूरे इलाके में जबरदस्त छानबीन हुई। अंत में सभी क्रांतिकारी पकड़ लिए गए, जिनमें ठाकुर रोशन सिंह भी शामिल थे।

Roshan Singh को फांसी की सजा

ठाकुर रोशन सिंह, अशफाकुल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद की नैनी जेल में फांसी दी गई।

फांसी से पहले की रात

फांसी से एक दिन पहले, ठाकुर रोशन सिंह ने अपने एक मित्र के माध्यम से परिवार को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने लिखा:

“इस सप्ताह के भीतर ही फांसी होगी, आप मेरे लिए रंज हरगिज न करें। मेरी मौत खुशी का सबब होगी। यह मौत किसी भी प्रकार से अफसोस के लायक नहीं है। दुनियां की कष्ट से भरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिंदगी जीने जा रहा हूं।”

Roshan Singh को  19 दिसंबर को फांसी हुई। 18 और 19 दिसंबर की मध्य रात्रि वे बहुत कम सोए। उन्होंने ब्रह्म मुहूर्त में बिस्तर त्यागा, स्नान किया, योग किया, ध्यान किया और गीता पाठ किया। फिर वे तैयार होकर प्रहरी की प्रतीक्षा करने लगे।

 फांसी का समय

प्रातः प्रहरी आया। वे गीता हाथ में लेकर मुस्कुराते हुए साथ चले। जब फंदा सामने आया, तब उन्होंने एक वेद ऋचा का पाठ किया:

“ॐ विश्वानिदेव सवितुर्र दुरितानि,
परासुव यद्भद्रम् तन्नासुव”

और “ॐ शांति” कहकर उन्होंने स्वयं फंदा अपने गले में डाल लिया।

निष्कर्ष

ठाकुर रोशन सिंह एक असाधारण क्रांतिकारी और देश प्रेमी थे, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उनका बलिदान और त्याग हमेशा याद रखा जाएगा। Roshan Singh भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे और देश के लिए उनका योगदान अविस्मरणीय है।

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