Story of khatu shyam ji || खाटू श्याम जी का इतिहास
Khatu Shyamji || बर्बरीक से खाटू श्याम जी का इतिहास
खाटू श्याम जी हारे के सहारे के नाम से पूजे जाने वाले खाटू श्याम जी को पूरे भारत वर्ष मे पूजा जाता है । धोरा री धरती राजस्थान के सीकर जिले के छोटे से गाव खाटू मे बना शीश के दानी श्री खाटू श्याम जी मंदिर अपने कई चमत्कारों के लिए पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है । भारतीय ग्रंथों और पुरानो के अनुसार खाटू श्याम जी का संबंध महाभारत काल से बताया जाता है ।
आज इस आर्टिकल में हम खाटूश्याम जी के जीवन से जुड़े इतिहास तथा उन्हें शीश का दानी क्यों कहा जाता है ? आइये जानते है।
khatu shyam खाटू श्याम जी का लघु परिचय
तीन बाण धारी के नाम से पूजे जाने वाले खाटू श्याम जी का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू ग्राम मे बना हुआ है । यहा पर लाखों की संख्या मे भक्तों का तांता लगा रहता है । खाटू श्याम जी को भगवान श्री कृष्ण के अवतार के रूप मे भी पूजा जाता है । पुरानो मे खाटू श्याम जी का संबंध महाभारत काल से बताया जाता है जिसमे कहा गया है की खाटू श्याम जी द्वापरयुग मे बर्बरीक थे जिनसे भगवान श्री कृष्ण ने शीश का दान लिया था । इसी शीश के दान देने के कारण खाटू श्याम जी को शीश के दानी के रूप मे पूजा जाता है ।
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खाटू श्याम जी की कहानी – story of khatu shyam ji
खाटू श्याम जी की कहानी की शरुआत महाभारत काल से शुरू होती है । खाटू श्याम जी महाभारत काल मे बर्बरीक थे । बर्बरीक का जन्म द्वापर युग मे सर्वश्रेष्ठ गदाधर भीम के पौत्र के रूप मे हुआ था । बर्बरीक के पिता का नाम घटोत्कच तथा माता का नाम कामकंटिका ( मूरा ) था । बर्बरीक को बचपन से ही धार्मिक प्रवृति के थे , बर्बरीक की सदैव निर्बलों की सहायता करने मे रूचि थी । अपनी दादी से धार्मिक कथाओ को सुनकर बर्बरीक ने अपने जीवन का उद्देश्य निर्बलों की रक्षा तथा मुक्ति पान का निश्चय किया ।
तीन बाण धारी कैसे बने खाटू श्याम जी khatu shyam ji
बर्बरीक ने अपनी दादी से यह सीखा था की मुक्ति पाने का एक ही सरल माध्यम है की भगवान के हाथों मृत्यु । बर्बरीक ने मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री कृष्ण से युद्ध करने की ठानी ,इसके लिए बर्बरीक ने कठिन तपस्या कर नव दुर्गा को सिद्ध किया और वरदान मे कई दैविक शक्तिया प्राप्त की । इससे भी मन नहीं भरा तब बर्बरीक ने माहिसंगम तीर्थ स्थान पर घोर तपस्या कर सिद्ध माता को प्रसन्न कर उनसे वरदान मे अपराजित वैष्णवी विध्या स्वरूप तीन बाण प्राप्त किए जो अचूक थे । इन तीन बाणों मे संसार को विनाश करने की शक्ति थी ।
सिद्ध माता ने बर्बरीक से एक वचन मांगा की तुम इस शक्ति का उपयोग निर्बलों की सहायता के लिए ही करोगे अपने निजी स्वार्थ हेतु नहीं । अजय का वरदान मिलने के बाद बर्बरीक तीन बाण ही धारण करते थे जिसकी वजह से इनका नाम तीन बाण धारी पड़ गया ।
श्री कृष्ण और बर्बरीक – Khatu Shyamji
कौरवों और पांडवों में महाभारत के युद्ध की घोषणा हुई । दोनों पक्षों की सेनाएं अपने सेनापतियों के साथ कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए एकत्रित होने लगी । जब बर्बरीक यह समाचार मिला की कौरवों और पांडवों मे महाभारत का भीषण युद्ध शुरू होने वाला तब बर्बरीक युद्ध मे भाग लेने के लिए कुरुक्षेत्र की ओर निकल पड़े ।
भगवान श्री कृष्ण को यह ज्ञात हो गया था की बर्बरीक की इस युद्ध मे उपस्थिति इस महाभारत के युद्ध के लिए उचित नहीं है । इसी को ध्यान मे रखकर श्री कृष्ण बर्बरीक को रोकने हेतु बर्बरीक के पास पहुचे और युद्ध मे भाग न लेने के लिए कहा । परंतु बर्बरीक ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण श्री कृष्ण को मना कर दिया ।
बर्बरीक से कैसे बने Khatu Shyamji
बर्बरीक ने कहा की मैंने प्रतिज्ञा की है की जो दल निर्बल होगा मे उसका साथ दूंगा । इसी कारण मे कोरवों का साथ दूंगा क्योंकि जिस दल मे साक्षात भगवान श्री कृष्ण हो वो दल तो निर्बल कैसे हो सकता है । यह सुनकर श्री कृष्ण फिर से बर्बरीक को युद्ध नहीं लड़ने को कहा परंतु बर्बरीक ने मना कर दिया । इस पर विवश होकर धर्म की रक्षा के लिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शीश धड़ से अलग कर दिया ।
शीश कटने के बाद बर्बरीक ने क्षमा मांगते हुवे कहा की प्रभु मैंने यह सब मुक्ति पाने के लिए किया है मेरा उद्देश्य आपका अपमान करने का नहीं था । बर्बरीक की बात सुनकर श्री कृष्ण ने कहा की मै जनता था की तुम यह सब मुक्ति के लिए कर रहे हो । बर्बरीक तुमने मुक्ति पाने और धर्म की रक्षा के लिए मुझे अपना शीश दान मे दिया है इसलिए आज से लोग तुम्हें शीश के दानी के नाम से जानेगे ।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रसन्न होकर बर्बरीक को कहा आज से मेरी सारी शक्तिया तुमको प्रदान करता हु और यह वरदान देता हु की कलयुग मे लोग तुम्हें श्याम बाबा के नाम से जानेगे और जो भी तेरी पूजा करेगा उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण होगी ।
Khatu Shyamji के नामों के रहस्य
baba shyam को शीश के दानी के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि उन्होंने भगवान श्री कृष्ण द्वारा शीश मांगे जाने पर बड़े ही सहज और बिना किसी झिझक के अपना शीश श्री कृष्ण के चरणों में चढ़ा दिया।इससे प्रसन्न होकर उन्हें अपने नाम के साथ साथ शीश के दानी के नाम की उपाधि दी तभी से भक्तगण baba shyam को शीश का दानी कहते हैं।
Khatu Shyamji को लखदातार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि लोगों की यह धारणा है कि अगर baba shyam से कुछ भी मांगा जाए तो वह लाखों बार भक्तों की मुराद पूरी करते हैं। इसलिए shyam baba को लखदातार नाम से भी जाना जाता है।
shyam baba को भक्तगण श्रद्धा पूर्वक हारे का सहारा के नाम से भी पुकारते हैं। हारे का सहारा का शाब्दिक अर्थ होता है हारे भी व्यक्ति का साथ देना। जब महाभारत युद्ध का आरंभ हो रहा था तब Khatu Shyamji ने दुर्बल पक्ष के दल में युद्ध करने का निर्णय लिया था। इसलिए भक्तगण ने हारे का सहारा के नाम से जानते हैं।
shyam baba को मौरछी धारक भी कहा जाता है क्योंकि shyam baba हर समय मयूर पंख को अपने सिर पर धारण किए हुए रहते हैं।
आरती टाइम टेबल : खाटू श्याम सीकर (332602)
- पट खुलने का समय : प्रात: 5:00 बजे
- मंगल आरती : प्रात: 5:30 बजे
- शृंगार आरती : प्रात: 7:45 बजे
- भोग आरती : दोपहर 12:30
- पट बंद होने का समय : दोपहर 1 बजे
- पट खुलने का समय : सायं 4:00 बजे
- ग्वाला आरती : सायं 7:00 बजे
- शयन आरती : रात्रि 9:15 बजे
- मंदिर बंद होने का समय रात्रि 9:30 बजे
आरती lyrics श्री खाटू श्याम जी की
Khatu Shyamji की आरती :
जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
रतन जडि़त सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे।
तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे।
खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जले॥जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे।
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे॥जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
झांझ कटोरा और घडिय़ावल, शंख मृदंग धुरे।
भक्त आरती गावे, जय-जयकार करे॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
जो ध्यावे फल पावे, सब दुख से उबरे।
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम-श्याम उचरे॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
श्री श्याम बिहारी जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत आलूसिंह स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
तन मन धन सब कुछ है तेरा, हो बाबा सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा॥जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
जय श्री श्याम हरे, बाबाजी श्री श्याम हरे।
निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे॥जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।