ओशो का जीवन परिचय ,Osho biography in hindi
osho जिनका पूरा नाम Chandra Mohan Jain है आज उनके जीवन के बारे मे जानेगे
दोस्तों आपको अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए जीवन जीने वाले लोग बहुत मिल जाएंगे परंतु आपको ऐसे बहुत कम मिलेंगे जो केवल और केवल दूसरों के लिए अपनी जिंदगी जीते हैं।
दोस्तों आज ऐसे ही व्यक्ति के जीवन के बारे में जानेंगे जिन्हें लोग भगवान मानते थे। लोगों का कहना है कि इन्होंने अपनी संपूर्ण जिंदगी लोगों की सेवा में समर्पित कर दी थी। दोस्तों हम बात करेंगे धर्मगुरु ओशो osho के बारे में जिन्हें लोग आचार्य रजनीश के नाम से भी जानते हैं।

कौन है ओशो – Osho
ओशो एक ऐसे अनोखे गुरु थे जिनकी टीचिंग से अमेरिका तक कांप उठा था। कहां जाता है कि अमेरिका के रोनल्ट विंगन ओशो के सामने झुक गए थे। उसने लगभग 100000 से भी ज्यादा पुस्तकों का अध्ययन किया है जिनके कारण आज ओशो की कई सारी पुस्तकें हैं जो बहुत बड़ी मात्रा में बिकती है। परंतु ओशो ने आज तक कोई पुस्तक नहीं लिखी है। ओशो के अनुयायियों द्वारा लिखी पुस्तक के लोगों में बहुत ही प्रचलित हैं जिसके कारण osho को बुकमैन भी कहा जाता है।
ओशो osho को अमीरों का गुरु भी कहा जाता था क्योंकि ओशो अमीरों के शौक रखते थे। अशोक सन्यास को अलग तरीके से जीते थे। ओशो का यह सपना था कि उनकी पांच 365 अलग-अलग रोल्स रॉयस कारे हो। ओशो एक धर्मगुरु होने के साथ-साथ योग गुरु भी हैं जिन्होंने अपनी प्रसिद्धि अमेरिका तक फैला रखी थी।
ओशो का जन्म – osho in hindi
osho का जन्म 11 दिसंबर 1931 को हुआ था। ओशो का बचपन का मूल नाम चंद्रमोहन जैन था। ओशो का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य की रायसेन शहर के कुछवाड़ा नामक गांव में हुआ था। उसे अपनी 11 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। ओशो की माता का नाम सरस्वती देवी जैन तथा पिता का नाम बाबूलाल जैन था।
ओशो की जब जन्म कुंडली ज्योतिष द्वारा बनाई गई थी तो उनका कहना था कि 21 वर्ष तक होने तक ओशो का हर 7 वर्ष में मरने का योग बना रहेगा। परंतु अगर ओशो 21 वर्ष से भी ज्यादा जीवन जी गया तो बुद्धा बन जाएगा। इसी के कारण ओशो के माता-पिता को ओशो की मृत्यु का डर बना रहता था, यहां तक कि यह भी सुनने वह आता है कि ओशो भी अपनी मौत का इंतजार करते थे।
ओशो का बचपन – osho
ओशो बचपन से ही गंभीर स्वभाव वाले बालक थे। ओशो की बचपन की करीबन 7 वर्ष ननिहाल में ही बीते थे। ओशो का कहना है कि उनकी विकास में प्रमुख योगदान ननिहाल की 7 वर्ष की थी। विद्यार्थी जीवन में osho की प्रवृत्ति बगावती थी। उसने विद्यार्थी जीवन में एक कुशल वक्ता और तर्क वादी के रूप में अपनी सबसे अलग पहचान बना दी थी।
ओशो बचपन से ही बहुत गुणी बालक थे। बचपन से ही ओशो की पुस्तक पढ़ने में एक अलग ही रूचि थी। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि दोस्तों को बचपन से ही सिद्धियां प्राप्त थी। ओशो अपनी किशोरावस्था तक आते-आते नास्तिक हो चुके थे वह भगवान तथा उनकी भक्ति में बिल्कुल ही विश्वास नहीं रखते थे।
ओशो को आचार्य की उपाधि किसे मिली
ओशो अपनी शिक्षा पूर्ण कर वर्ष 1957 में रायपुर की विश्वविद्यालय में प्राध्यापक पद से जुड़े ।परंतु विश्वविद्यालय में कुछ विपरीत परिस्थितियां जिसकी कारण उत्पन्न होने लगी वहां की कुलपति ने रजनीश का स्थानांतरण कहीं और करवा दिया । स्थानांतरण के ठीक 1 वर्ष पश्चात जबलपुर की विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के तौर पर पदभार ग्रहण किया जहां पर रजनीश को आचार्य रजनीश की उपाधि से विद्यार्थियों के द्वारा नवाजा गया। इस विश्वविद्यालय के जरिए रजनीश ने पूरे भारत के अलग-अलग जगह जाकर गांधीवादी और समाजवादी का प्रचार प्रसार करने लगे।
ओशो का आश्रम
ओशो की अपनी अलग सोच के कारण धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी। भारत के कोनो कोनो से ओशो के अनुयाई ओशो का भगवान की तरह पूजन लगे। धीरे-धीरे ओशो के विदेशी अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी बाद में ओशो ने अपने सभी शिष्यों को लेकर पूना आ गए तथा 1974 में रजनीस आश्रम की स्थापना की यहां आने के बाद ओशो की प्रसिद्धि और बढ़ गई।
osho rajneesh का आश्रम रजनीशपुर यूएसए – Rajneeshpur USA
ओशो की प्रसिद्धि के कारण ओशो के विचारों का प्रचार-प्रसार तीव्र हो गया परंतु बाद में मीडिया तथा सरकार द्वारा ओशो के विचारों की खूब आलोचना होने लगी। इन्हीं आलोचनाओं के कारण ओशो ने अपना आश्रम पुणे में से अमेरिका स्थानांतरित कर दिया।
धीरे-धीरे ओशो की प्रसिद्धि अमेरिका में आग की तरफ फैलने लगी। बाद में ओशो तथा उसके अनुयायियों ने मिलकर 65000 एकड़ में रजनीश पुर शहर बसा दिया। मात्र 3 वर्ष में रजनीश पुर शहर पूर्ण रूप से विकसित हो चुका था जहां पर मात्र osho के ही अनुयायी रहा करते थे।
ओशो ने अपने शहर में हर व सुविधा उपलब्ध कराई जो एक आम शहर में होनी चाहिए। जैसे पुलिस स्टेशन, हॉस्पिटल, मॉल, रेस्टोरेंट्स आदि। जैसे-जैसे ओशो की कम्युनिटी मजबूत होती गई वैसे-वैसे अमेरिका सरकार की चिंता बढ़ने लगी। अमेरिकी सरकार को यह डर था कि कहीं यह कम्युनिटी उनके लिए संकट ना बन जाए।
ओशो को जेल क्यों जाना पड़ा
अक्टूबर 1985 में अमेरिकी सरकार द्वारा उत्सव पर नियमों के उल्लंघन के तहत 35 आरोप लगाए गए थे जिसके तरह उनको हिरासत में लिया गया। बाद में अमेरिकी न्याय व्यवस्था के तहत ओशो को चार लाख अमेरिकी डॉलर की जुर्माना राशि भुगतान करने तथा 5 वर्ष तक अमेरिका ना आने का आदेश पारित किया गया।
ओशो की मृत्यु
osho की मृत्यु को लेकर कई सवाल आज भी लोगों के मन में बसे हुए हैं जिनका जवाब पाना मुश्किल है। ओशो की मृत्यु 19 जनवरी 1990 को 58 वर्ष की उम्र में ओशो के पुणे की आश्रम में हुई थी। ओशो की मृत्यु का कारण ज्यादातर वही बताया जा रहा है कि ओशो की मृत्यु हृदय आघात के कारण हुई थी।
परंतु उनके अनुयायियों द्वारा यह यह बयान दिया गया था कि अमेरिका में जो जेलों में कैदियों को जहर दिया जाता था ,वहीं जहां ओशो को दिया गया था।उनके कारण ही ओशो की मृत्यु हुई ।ओशो की समाधि पर लिखा गया है कि ना जन्मे नाम अरे सिर्फ 11 दिसंबर 1931 और 19 जनवरी 1990 के बीच इस ग्रह पृथ्वी का दौरा किया।
निष्कर्ष
ओशो को कई लोगों ने गलत बताया है । कई लोगों ने लोगों ओशो की इतनी नींदा की जो सुनी भी नहीं जा सकती है । ये सब कुछ गलत फहमियों तथा अधूरे ज्ञान का परिणाम है जिसके कारण एक महान संत की छवि धूमिल हो रही है । भारत ऋषि मुनियों की धरती है । फिर भी हम आज कुछ लोग उन्ही ऋषि मुनियों का अपमान कर रहे है । हमारा तो यही कहना है की किसी भी व्यक्ति की बुराई करने से पहले उसकी पूरी सच्चाई जानकर ही अपना मत दे ।
क्या ओशो भगवान को मानते थे ?
ओशो भगवान मे बचपन से ही विश्वास नहीं रखते थे , परंतु ओशो परमात्मा मे विश्वास रखते थे ।
ओशो की संपती जितनी है ?
ओशो उर्फ रजनीश आचार्य एक धर्म गुरु है इनकी कुल संपती 1000 करोड़ से भी अधिक बताई जा रही है ।
ओशो का दूसरा नाम क्या है ?
ओशो को उनके अनुयायी आचार्य रजनीश के नाम से बुलाते थे ।
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