Rajendra Prasad Ka Jivan Parichay

Rajendra Prasad Ka Jivan Parichay

आज हम बात करेंगे एक ऐसे नेता की जिन्होंने अपने ज्ञान और बुद्धि के बल पर पूरे देश को जीत लिया था । एक ऐसा वव्यक्ति जो महात्मा गांधी के सबसे करीब था । हम बात कर रहे है भारत के अनमोल रत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद की ,जिनके नाम देश के पहले राष्ट्रपति का खिताब है । डॉ राजेंद्र प्रसाद एक अच्छे विध्यारथी होने के साथ साथ एक कुशल शिक्षक और एक कुशल वकिल भी थे ।
Rajendra Prasad Ka Jivan Parichay
Rajendra Prasad Ka Jivan Parichay

Rajendra Prasad का प्रारंभिक जीवन

राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 मे बिहार के सिवान जिले मे हुआ था । राजेन्द्र प्रसाद के पिता का नाम महादेव सहाय था तथा मत का नाम कमलेश्वरी देवी था ।राजेन्द्र प्रसाद की मत जी ने ही उनको रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान दिया । मात्र 5 वर्ष की आयु मे राजेन्द्र प्रसाद की मत का देहांत हो गया था ।
मा के जाने के बाद राजेन्द्र प्रसाद का पालन इनकी बड़ी बहन ने किया था । कुछ समय पश्चात राजेन्द्र प्रसाद को एक मोलवी को  दे दिया ताकि वह राजेन्द्र प्रसाद का मार्गदर्शन कर सके । राजेन्द्र प्रसाद को कुछ नया सीखने मे हमेशा रुचि रहती थी ।

Rajendra Prasad  का विद्यार्थी जीवन

राजेन्द्र प्रसाद की आरंभिक शिक्षा सिवान मे हुई थी । राजेन्द्र प्रसाद को संस्कृत ,पारसी जैसी कई भाषाओ का ज्ञान था ।  राजेन्द्र प्रसाद ने अपने ज्ञान के आधार पर हर क्षेत्र मे अपना नाम किया ।
राजेन्द्र प्रसाद जी विवाह 12 वर्ष की आयु मे राजवंशी देवी से हुआ था । राजेन्द्र प्रसाद ने अपने ज्ञान के जरिए भारत के सबसे बड़े कॉलेज  प्रेज़िडन्सी कॉलेज मे अपना दाखिल लिया । तथा 1905 मे अपनी मास्टर ऑफ आर्ट्स की डिग्री पूरी की ।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद एक शिक्षक के रूप में

पढ़ाई पूरी होने के बाद राजेन्द्र प्रसाद जी का झुकाव देश की सेवा की ओर बढ़ने लगा ।अपनी उपलब्धियों के कारण वे मुजफ्फरपुर  बिहार के लँगत सिंह कॉलेज मे इंग्लिश विषय के एक प्रोफेसर बने । यहा  पर ही Rajendra Prasad प्रधानाध्यक भी बने । कुछ समय तक अपनी सेवा देने के बाद राजेन्द्र प्रसाद अपनी वकील की पढ़ाई के लिए कोलकाता गए ।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद एक वकील के रूप में

कोलकाता के रिपोन कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी कर एक वकील बने । राजेन्द्र प्रसाद जी को एलएलबी की परीक्षा मे गोल्ड मेडल भी मिला । इसके बाद 1937 मे एलाहबाद univercity से अपनी डॉक्टरेट की डिग्री पूरी की ।  इसके बाद Rajendra Prasad बिहार और ओडिसा के उच्च न्यायालय मे अपनी वकालत की traning पूरी की ।
अब तक देश मे काफी उथल पुथल हो रहा था  ,देश की नई राजधानी बनाई गई नई दिल्ली । तथा महात्मा गांधी भी भारत आ गए । काग्रेस पार्टी मे भी हलचल शुरू हो गई थी ।

चम्पारण आंदोलन में योगदान

राजेन्द्र प्रसाद का चंपारण सत्यागृह मे अहम भूमिका निभाई । 1917 मे राजेन्द्र प्रसाद महात्मा गांधी के संपर्क मे आए जिससे ब्रिटिश सरकार द्वारा कीये जा रहे शोषण से किसानों को मुक्त करने की अहम जिम्मेवारी मिली । इसके लिए राजेन्द्र प्रसाद ने अपने सभी वकील मित्रों के साथ इस आंदोलन का हिस्सा बने । इस आंदोलन से राजेन्द्र प्रसाद का जीवन बिल्कुल बदल गया ।

गांधी जी का डॉ राजेन्द्र प्रसाद के जीवन पर असर

गांधी से मिलने के बाद राजेन्द्र प्रसाद  का जीवन पहले से बिल्कुल बदल गया ,जिससे उनको अपने जीवन का एक सटीक उद्देश्य मिला । गांधी जी ने राजेन्द्र प्रसाद को दूसरों के हक के लिए लड़ना सिखाया ,जिससे राजेन्द्र प्रसाद प्रेरित होकर गांधी जी की स्वतंत्रता की लड़ाई मे शामिल हुवे । कांग्रेस कमिटी का हिस्सा बनना ये सब गांधी के मिलने बाद ही हुआ ।
राजेन्द्र प्रसाद ने गांधी के सभी आंदोलनों अपनी सूझ बुझ तथा ज्ञान से एक विशेष भूमिका अदा की । वकालात करने वाले राजेन्द्र प्रसाद को काभी जैल भी जाना  पड़ेगा ये सोच भी नहीं होगा ,परंतु  देश हित के लिए Rajendra Prasadने 3 वर्ष का कारावास भी झेला ।

Rajendra Prasad  का कांग्रेस से जुड़ाव

राजेन्द्र प्रसाद एक आम कार्यकर्ता के रूप मे भारतीय कांग्रेस मे शामिल हुवे । लगभग 4 दशक तक राजेन्द्र प्रसाद ने कांग्रेस की अगल अगल पदों को संभालकर सेवा की । कांग्रेस पार्टी Rajendra Prasad के स्वतंत्रता प्राप्ति तथा  जनता की सेवा का एक साधन मात्र थी ।
1935 को राजेन्द्र प्रसाद को भारतीय कांग्रेस का अध्यक्ष पद से नवाजा गया । बाद मे एक बार फिर 1939 मे सुभास चंद्र बॉस के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष बने । 1946 मे वे कांग्रेस सरकार के कृषि मंत्री भ बने ।

स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका

स्वतंत्र भारत का सविधान बनाने के लिए Rajendra Prasad  ने सन 1946 को सविधान सभा की स्थापना की । जहा उन्होंने सभा की कुशल अध्यक्षता करते हुवे सविधान निर्माण मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । 26 नवंबर 1949 को सभी की सर्वसहमती से राजेन्द्र प्रसाद को देश का अंतरिम राष्ट्रपति बनाया गया । 26 जनवरी 1950 को देश का सविधान लाघू किया ।

राष्ट्रपति पद

कांग्रेस ने सविधान सभा की सफल अध्यक्षता करने वालों को ही देश की रक्षा की बागडोर देते हुवे 1952 मे राजेन्द्र प्रसाद को स्वतंत्र देश का पहला राष्ट्रपति नियुक्त किया । राष्ट्रपति पद पर होते हुवे भी राजेन्द्र प्रसाद का जीवन बिल्कुल सादा था ।
Rajendra Prasad ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा देश की स्वतंत्रता , जनता की सेवा तथा देश सेवा को ही समर्पित था । खुद सभी सुख सुविधाओ से वंचित रहे और गरीब तथा दुखी लोगों को खुशिया देने का ताउम्र प्रयाश किया ।

Rajendra Prasad जी की मृत्यु

राजेन्द्र प्रसाद 1962 मे अपने पद से मुक्त होने के बाद एक आश्रम मे चले गए ताकि वे अपना बाकी समय शांति से बीता सके । 28 फरवरी 1963 को भारत देश ने अपना एक और रत्न खोते हुवे देश के सबसे ज्ञानी राष्ट्रपति को हमेशा हमेशा के लिए खो दिया । राजेन्द्र प्रसाद की मृत्य पर देश विदेश के कई नेताओ ने शोक व्यक्त किया था ।
लोगों द्वारा पूछे गए प्रश्न 
राजेंद्र प्रसाद भारत के राष्ट्रपति कब बने थे?
भारतरत्न डॉ Rajendra Prasad जी ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप मे 24 जनवरी 1950 को शपत ली ।
राजेंद्र प्रसाद कौन सी समिति के अध्यक्ष थे?
डॉ राजेन्द्र प्रसाद सविधान निर्माती समिति के अध्यक्ष थे ।
डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत रत्न से कब सम्मानित किया गया था?
भारतरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी को देश की लगातार राष्ट्रपति के पद पर रहकर 12 वर्ष की सेवा करने के  बाद 1962 मे  भारत के सर्वश्रेष्ठ सम्मान  भारतरत्न से नवाजा गया ।
डॉ राजेंद्र प्रसाद कितने तक पढ़े थे?
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 1937 मे डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की थी ।
राजेंद्र प्रसाद द्वारा लिखित पुस्तक का नाम क्या है?
राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखित पुस्तक का नाम  इंडिया डिवाइडेड है ।
डॉ राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु कब और कैसे हुई थी?
लंबे समय से बीमार रहने के कारण 28 फरवरी 1963 को डॉ राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु  हो गई ।
भारत देश के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे?
भारत देश के प्रथम राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद थे ।

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