5 Learnings from Karna, Mahabharata,दानवीर कर्ण

5 Learnings from Karna, Mahabharata

दानवीर कर्ण से सीखने वाली 5 बातें – 

कर्ण ओर अर्जुन के युद्ध मे अर्जुन का घमंड टूट जाने की कथा –

महाभारत के युद्ध में धनुर्धर अर्जुन और दानवीर कर्ण आमने-सामने युद्ध लड़ रहे थे जब जब कर्ण का तीर आता था अर्जुन का रथ  था वह थोड़ा पीछे खिसक जाता था और जब जब अर्जुन तीर चला रहे थे तो उस तरफ कर्ण का रथ था वह थोड़ा ज्यादा पीछे खिसक जाता था जैसे कर्ण का तीर   अर्जुन के रथ पर लगता अर्जुन का रथ  थोड़ा भी पीछे खीसकता भगवान श्री कृष्ण कर्ण के साहस की वीरता की प्रशंसा करने लगते |

 

5 Learnings from Karna, Mahabharata,दानवीर कर्ण 5 Learnings from Karna

और जहां अर्जुन का तीर जाकर रथ  को लगता तो रथ  बहुत पीछे खिसक जाता लेकिन भगवान श्री कृष्ण ज्यादा प्रशंसा नहीं करते अर्जुन से रहा नहीं गया ओर भगवान श्री कृष्ण से पूछा ये  क्या हो रहा है मेरा तीर से कर्ण का रथ ज्यादा पीछे जाता है पर फिर भी आप उसकी प्रशंसा कर रहे हो |

भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि अर्जुन तुम्हारे रथ पर मे स्वयं विराजमान हु  हनुमान जी ध्वजा पर विराजमान है तुम्हारे पहियों को शेषनाग ने थाम रखा है लेकिन तब भी कर्ण के तीर छोड़ा भी  पीछे कर पा रहा है तो कर्ण तुमसे   ताकतवर तो है |

जब अर्जुन ने  यह सुना और समझा तो उसका जो घमंड था वह चूर चूर हो गया टूट गया |

महाभारत का अहम किरदार कर्ण को लेकर के बहुत सारी बातें दुनिया में कहीं सुनी जाती है पर आज हम इस आर्टिकल मे5 Learnings from Karna,कर्ण की पाँच ऐसी सीखने वाली बातों को जानेंगे जो हमे अपने जीवन मे उपयोग मे लानी चाहिए

शुरुआत में लिखना चाहता हूं कि – 5 Learnings from Karna

कवच कुंडल जिसने इंद्र को दान दिया था मित्रता के खातिर सर्वस्व अपना बलिदान किया था धर्म मार्ग पर चलना जिसका स्वाभिमान था आपने सही पहचाना वह कर्ण वाकई में महान था |

कर्ण के किरदार की तो बहुत से लोग दुनिया में महाभारत को पढ़ने वाले  कहते हैं कि कर्ण से क्या सीखे कर्ण महाभारत को रुकवा सकता था कर्ण ने नहीं किया कर्ण  की गलतियों से भी सीखा जा सकता है सबसे पहले में यही  कहूंगा कि कर्ण की गलतियों से सीखे कभी जीवन में ऐसी गलतियां मत कीजिएगा 5 Learnings from Karna

कर्ण की ऐसी गलतिया जिनसे हमे सीखना चाहिए – 5 Learnings from Karna

कर्ण  की पहली गलती जिससे हमे सीखना चाहिए  –

कर्ण ने जो पहली गलती की वो थी हस्तिनापुर में जब सारे राजकुमार शिक्षा ग्रहण करके वापस आए कौरव पांडव तो सारे राजकुमारों की  कला का  प्रदर्शन करवाया जाना था मैदान में सब इकट्ठे थे और अपने talent ka showcase कर रहे थे तभी वहां कर्ण ने  अर्जुन को चेतावनी देता है खुली चुनौती देता है कि आ जाओ मेरे सामने  में कितना दम है
उम्र के हिसाब से कर्ण  बड़ा था कर्ण  भीम से बड़ा था यहां तक कि अर्जुन से काफी बड़ा था बहुत age difference था अपने से काफी छोटे को ऐसे ललकारना यह शोभा नहीं देता यही पहली गलती करने कर दी थी |ये थी पहली गलती जिस से हमे सीखना चाहिए 5 Learnings from Karna

 कर्ण महाभारत के युद्ध का कारण कैसे बना ? -5 Learnings from Karna

कर्ण की दूसरी गलती जो  की थी वह थी भरी राज्यसभा में जहां चौसर का खेल खेला जा रहा था पांडव हार चुके थे द्रोपदी को बुलाया गया चीर हरण किया जा रहा था तब दुर्योधन के  भाई विकर्ण  ने कहा कि यह गलत हो रहा है भैया इसको रोक  दीजिए तब कर्ण  विकर्ण  से बहस करने लगा और कहने लगा कि ऐसी स्त्री के साथ तो यही सब होना चाहिए बहुत सारे ऐसे शब्द कह दी ये  जो नहीं कहना चाहिए था और वही शब्द शब्द थे वही जो दृश्य था वही महाभारत का कारण बना कर्ण  चाहता तो रुकवा सकता था वह नारी का सम्मान कर सकता था लेकिन वह आवेश में आकर कहता चला गया और युद्ध का कारण बना |

5 Learnings from Karna – दानवीर कर्ण से क्या सीखा जा सकता है ?

कर्ण से बहुत कुछ सिख  जा सकता है  कर्ण का  किरदार से काफी सारी अच्छाइयां भी थी

कर्ण दानवीर था  दूसरी बात जो सीखी जा सकती है वह है bounce back करना जीवन में विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को टूटने नहीं देना भगवान श्री कृष्ण और कर्ण का संवाद जब होता है तो करण कहता चला जाता है कि प्रभु मेरे साथ तो सब गलत होता गया जिस मां ने मुझे जन्म दिया उसने जन्म देते ही त्याग दिया मुझे क्षत्रिय होते हुवे भी क्षत्रिय धर्म निभाने का मौका नहीं मिला मुझे गुरुकुल में शिक्षा नहीं मिली मुझे भटकना पड़ा मेरे साथ हमेशा बुरा ही हुआ मेरे साथ हमेशा भेदभाव होता गया  द्रौपदी के वहां स्वयंवर में पहुंचा दो अलग कर दिया गया |

लेकिन उनके जीवन से जो सीखने वाली बात है उसने हर परिस्थिति में खुद को ढाला  और उससे बाहर निकलने की कोशिश की ओर  bounce back करने की सोची जब गुरुकुल में द्रोणाचार्य जी ने मना कर दिया था तब  कर्ण  को शिक्षा प्राप्त करने की खोज मे निकल चुका था और परशुराम के पास जा कर पहुचा  था |

कर्ण  ने खुद को तैयार किया एक योद्धा के रूप में और जब जरूरत पड़ी तो अपने मित्र दुर्योधन का साथ देने के लिए महाभारत जैसा इतना बड़ा युद्ध भी लड़ा तो कर्ण सिखाता की situationचाहे जो हो आप उससे बाहर निकल सकते आप bounce back कर सकते हैं कर्ण के  जीवन से सीखने को मिलती है

तीसरी बात जो कर्ण से सीखने को मिलती है  शिक्षा का ही नहीं शिक्षा देने वाले का भी उतना ही सम्मान कीजिए

परशुराम ओर कर्ण का संवाद – 

कर्ण  धनुर्विद्या सीखना चाहता था गुरु द्रोणाचार्य जी के पास जाता है वहां से कर्ण को  लौटा दिया जाता है कहा जाता है कि हम तो सिर्फ क्षत्रिय  को सिखाते हैं
कर्ण  को कैसे भी धनुर्विद्या सीखने होती है तो मालूम चलता कि भगवान परशुराम जी के यहां सीखी जा सकती लेकिन वह सिर्फ ब्राह्मणों को सिखाते तो ब्राह्मण होने का नाटक करके वहां पहुंच जाता है कि मैं भी ब्राह्मण हु ओर वह  शिक्षा ग्रहण करने लगता है  1 दिन

भगवान परशुराम जी कर्ण की गोद में सर रखकर आराम कर रहे होते है तो एक बिच्छू  आता है और कर्ण की जांग पर डंक मारने लगता है कर्ण गुरु  को बताता नहीं है उसे लगता है की गुरु जी की नींद भंग न हो   भगवान की नींद खुल गई तो बहुत गुस्सा होंगे नाराज होंगे और वह विश्राम कर रहे हैं उन्हें विश्राम करने दिया जाए तो सह लेता है सारे दर्द को बिच्छू चला जाता है खून बहने लगता है कुछ समय के बाद में भगवान परशुराम की नींद खुलती वह देखते हैं कि कर्ण की  जांघ में से खून बह रहा है तो कहते कि तुम ब्राह्मण नहीं हो सकते इतनी सहनशीलता तो सिर्फ क्षत्रिय में होती है कौन हो तुम  बताओ तुम बताओ परशुराम जी को गुस्सा आ जाता है

उसे वह श्राप दे देते है कि तुम मेरी विद्या उस समय भूल  जाओगे जब सबसे ज्यादा जरूरत हो सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी उसमें तुम्हें याद ही नहीं आएगा कर्ण  चरणों में गिर जाता  भगवान ऐसा श्राप  मत दीजिए लेकिन श्राप  आप एक बार दे दिया वापस तो लिया नहीं जा सकता है कि मुझे नहीं पता मैं किस कुल में पैदा हुआ कहां मेरा जन्म मुझे कुछ पता ही नहीं है मुझे बस धनुर्विद्या सिखनी थी इस लिए मे  आपके पास चलाया आया भगवान परशुराम अपने शिष्य को देख कर के दया करके उसे अपना विजय धनुश उसे दे देते है

श्राप  जो कर्ण की मृत्यु का कारण बनता है – 5 Learnings from Karna

एक और श्राप  जो कर्ण की मृत्यु का कारण बनता है एक बार जंगल में राक्षस का पीछा करते हुए कर्ण  दौड़ा चला जा रहा होता है और वह तीर चला देता है तो तीन राक्षस की जगह जाकर की गाय को लग जाता है गाय का स्वामी ब्राह्मण होता है जो ब्राह्मण देवता आते हैं तो कहते हैं तुमने क्या कर दिया एक असहाय को मार दिया तुम भी जब ऐसा ही रहोगे तो तुम्हें कोई मार देगा और यही होता है युद्ध भूमि में जब अर्जुन से सामना होता है तो विद्या भूल जाता है उसके रथ का पहिया दलदल में फंस जाता है अर्जुन तीर चला देते हैं और कर्ण की मृत्यु हो जाती है 5 Learnings from Karna

चौथी बात जो हमे कर्ण से सिखनी चाहिए  – 5 Learnings from Karna 

कर्ण ने अपने जीवन मे   ना सिर्फ मित्रता की बल्कि मित्रता को निभाया था आज की लाइफ में बहुत सारे फ्रेंड होते हमारे लेकिन बहुत सारे फ्रेंड्स में से बहुत कम फ्रेंड होते हैं जो हमारी फ्रेंडशिप को निभाते है कर्ण  को मालूम था कि जीत इस महाभारत के युद्ध में पांडवों की होगी क्योंकि उनके साथ में भगवान श्रीकृष्ण खड़े हुए लेकिन फिर भी कर्ण लड़ता चला गया एक बार भी नहीं कहा अपने मित्र दुर्योधन को यह भरोसा दिलाया गया कि हमारी जीत होगी हम लड़ेंगे हम जीतेंगे और उनकी पूरी सेना आंख मूंदकर विश्वास करती थी

पांडवों ने  कहा कि कोई हमसे राजा न होकर युद्ध   कैसे करेगा तो तुरंत एक राज्य का राजा दुर्योधन ने कर्ण को बना दिया था कर्ण  महाभारत की युद्ध में बीच में मालूम चलता है कि उसकी जो असली मां है कुंती है तो वह  पांडवों का कुंती को प्रणाम करके कहता है कि माफ करना लेकिन इस युद्ध में आपके पास अपने पुत्रों मे  बचेंगे युधिष्ठिर रहेंगे नकुल रहेंगे सहदेव रहेंगे भीम रहेंगे लेकिन अर्जुन और कर्ण मे से आपके पास सिर्फ एक बचेगा माँ मुजे  माफ करना  क्योंकी युद्ध कर्ण ओर अर्जुन के बीच होने वाला है अपने भाइयों के विरुद्ध जाके भी कर्ण ने अपनी मित्रता निभाई ओर वह युद्ध लड़ा  ओर  अपनी मित्रता निभाता चला  गया |

पाँचवी बात जो कर्ण से सिखनी चाहिए  5 Learnings from Karna
कर्ण को दानवीर क्यों कहा जाता है ?

पांचवी बात जो सीखनी चाहिए कर्ण के जीवन से अगर आपने दूसरों से ज्यादा धन कमाया  हैं तो  दुनिया में  आपका कर्तव्य बनता है कि आप दूसरों के हित के लिए कुछ ना कुछ पैसा उसमें से लगाए कुछ डोनेट करें इस समाज के लिए जिसमें से आपने कमाया है कर्ण  सबसे बड़ा दानवीर था ना सिर्फ उसने मित्रता निभाई बल्कि दानी होने का जो गुण था वह भी जीवन भर निभाया  अंतिम समय में जब जीवन के अंतिम समय में घायल पड़ा हुआ था तो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा याद रखेगा जमाना याद रखा जाएगा इसके वीरता के लिए कर्ण सबसे बड़ा दानवीर है | उस समय अर्जुन कहते है की  सबसे बड़ा दानवीर तो नहीं हो सकता तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन की अंतिम परीक्षा लेते है श्री कृष्ण  त ब्राह्मण का वेश धरकर के पहुंच गए  कर्ण के पास जो युद्ध में घायल पड़ा था कृष्ण  जाकर के कहने लगे कि आए तो हम आपसे मदद मांगने के लिए थे लेकिन आप तो खुद ही अभी अपनी अंतिम सांसे गिन रहे हैं बाद में आते हैं कि अगले जन्म में मिलना होगा तो
परंतु कर्ण कहते है की   रुके महाराजा आए हुवे  ब्राह्मण को खाली हाथ  कैसे जाने से सकता हु  माना कि मेरी मृत्यु बस होने वाली है परंतु आप मेरी तरफ से ये छोटी से भेट लीजिए  तुरंत कर्ण  पत्थर उठाकर  अपना सोने का दांत तोड़ कर  दे देता है  और कहा यह ले जाइए मुझे क्षमा कीजिएगा मैं आपकी ज्यादा मदद नहीं कर पाया भगवान श्रीकृष्ण बड़े प्रसन्न हुए और तुरंत अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए और कहा करण मांगो क्या मांगना चाहते हो

कर्ण ने अपने जीवन के अंतिम क्षण मे श्री कृष्ण से क्या वचन लिए थे ?

श्री कृष्ण कहते है की मे तुम्हारी दानवीर होने की क्षमता से बहुत प्रसन्न हुआ तुम  इस दुनिया को कुछ ना कुछ देते ही चले गए अपने अंतिम समय में karna ने  भगवान श्रीकृष्ण से तीन वरदान मांगे थे सबसे पहला कर्ण ने  कहा कि  मेरे साथ में जिस तरीके का अन्याय हुआ आप अपने अगले जन्म में सुनिश्चित कीजिएगा कि मेरे वर्ग के लोगों के साथ अन्याय ना  हो दूसरा वरदान मांगा कि भगवान आपका अगला जन्म मेरे ही राज्य मे लो   और तीसरा कर्ण ने  वरदान मांगा कि मेरा अंतिम संस्कार ऐसा व्यक्ति करे जो पाप मुक्त हो

कर्ण का अंतिम संस्कार किस तरीके से हुआ तथा किसने किया ?

कर्ण का अंतिम संस्कार जाता है कर्ण ने अपने तीसरे वरदान मे भगवान श्री कृष्ण से मांगा था कि मेरा अंतिम संस्कार ऐसा व्यक्ति करे जो पाप मुक्त हो ,भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी हथेली में कर्ण का अंतिम संस्कार किया था

Krishna janmashtami 2023,शुभ मुहर्त,कथा ओर पूजन विधि जानने के लिए यह क्लिक करे – 

कर्ण ओर श्री कृष्ण के इस संवाद से से हमे मित्रता की कॉनसी सीख मिलती है ?
5 Learnings from Karna – मित्रता की सीख

महाभारत मे दो ऐसे लोग हुए हमे हमारे जीवन मे भी 2 ऐसे मित्र जरूर बनाने चाहिए एक श्री कृष्ण की तरह की अगर युद्ध न लड़े तो भी आपकी जीत को सुनिश्चित कर दे दूसरा कर्ण  मालूम हो कि हार सामने खड़ी है लेकिन फिर भी अपने मित्र का साथ न छोड़े |

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top