Baba Shree Ramdevji Dibrugarh

ghanshyam kumawat
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Baba Shree Ramdevji Dibrugarh

राजस्थान के लोकदेवता बाबा रामदेवजी को राजस्थान के अलावा भारत के अन्य राज्यों में भी पूजा जाता है। जहा पर बाबा रामदेवजी कई मंदिर है जिनमे से प्रमुख है रामदेवरा में स्थित बाबा रामदेवजी का मंदिर। इसके अलावा आसाम का डिब्रूगढ़ का बाबा रामदेवजी मंदिर भी वहा का प्रसिद्ध मंदिर है। डिब्रूगढ़ मदिर भी अपने चमत्कारों से बहुत चर्चित है। कहा जाता है की यहाँ पर बाबा  से मन्नत मांगने वाले की समस्त इच्छा पूर्ण होती है।

 

डिब्रूगढ़ मंदिर का इतिहास – Baba Shree Ramdevji Dibrugarh

बाबा श्री रामदेव मंदिर, डिब्रूगढ़, जो डिब्रूगढ़ धाम के नाम से पूरे पूर्वाचल में विख्यात है अपने स्थापना के 133वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। सन् 1889 के करीब स्थानीय चौधरी परिवार के स्व. मोहनलाल जी चौधरी द्वारा प्रदत्त एक भूमिखंड पर उनके सुपुत्र स्व. रिद्धकरण जी चौधरी द्वारा मंदिर की स्थापना की गई और उसका पिरचालन किया गया। बाद में यह चौधरी परिवार कोलकाता जाकर बस गया और वहीं अपना व्यवसाय करने लगे।

तत्पश्चात् उनके पुत्र श्री विजय कुमार चौधरी ने यह दायित्व संभाला और कालांतर में उन्होंने एक ट्रस्ट बोर्ड \” बाबा श्री रामदेव मंदिर ट्रस्ट \” बनाकर मंदिर [Baba Shree Ramdevji Dibrugarh] का दायित्व उन्हें सौप दिया। उनके अलावा स्व. परसराम जी जालान, स्व मुरलीधर चौधरी, श्री संतोष कुमार जालान एवं श्री महेश मुनका को सदस्य के रूप में सम्मिलित किया गया। शुरूआत में मंदिर चुना सुखी की दीवार और टीन की छत से बना था।

5 दिसंबर 1988 में पहली बार मंदिर का जीर्णोद्धार का कार्य प्रारंभ किया गया जो सन् 1989 में पूर्ण हुआ। बाद में क्तमशः दानदाताओं के सहयोग से प्रगति होती चली गई और मंदिर वर्तमान स्वरूप में खड़ा हो गया। वर्तमान में मंदिर में स्थापित मूर्ति को जयपुर से मंगवाया गया जिसमें घोड़े पर सवार बाबा के साथ हरजी भाटी, सुगना बाई, डाली बाई विद्यमान हैं।

Baba Shree Ramdevji Dibrugarh

डिब्रूगढ़ मंदिर का \” न भूतो न भविष्यति \” समारोह -Baba Shree Ramdevji Dibrugarh

फरवरी 2014 में मंदिर के 125 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में \” अक्षयवट \” के नाम से 01 फरवरी से 09 फरवरी 2014 तक 9 दिवसीय समारोह किया गया जिसे लोगों ने \” न भूतो न भविष्यति \” कहकर प्रशंसा की। और दिनांक 6 जनवरी 2014 को ट्रस्टी श्री महेश मुनका से भूमी पूजन करवा स्तंभ रोपण किया गया। इस प्रकार सन् 2012 में शुरू हुई समारोह की परिकल्पना \” अक्षयवट \” के रूप में सफलीभूत हुई। समारोह का उद्धोप एक विशाल कलश यात्रा के साथ हुआ जिसमें 371 महिलाओं ने पवित्र कलश उठाया था ।इसके साथ 125 फीट लंबी बाबा की ध्वजा और विभिन्न झाकियाँ सम्मिलित थी।

समारोह पुराने हाई स्कूल फील्ड में आयोजित किया गया था जहाँ \”धरती धोरा री\” के नाम से \”चोखी ढाणी\” बनाई गयी थी जिसमें राजस्थानी कला- संस्कृति, खान-पान भक्तों को मोह रहे थे। समारोह में प्रतिदिन नए नए कार्यक्रम किए गए जिसमें नागपुर के पं राजेन्द्र प्रसाद जी शर्मा द्वारा बाबा का जम्मा, बीकानेर के गायक कलाकार रफीक सागर, कोलकता के युवा गायक सौरभ-मधुकर द्वारा भजन संध्या, दिल्ली के इम्पैक्ट ग्रुप द्वारा बोली पेंट शो, अल्ट्रावायलेट वायलेट यानी बैंगनी किरणों से धार्मिक चरित्रों का चित्रण जैसे शिव तांडव, कृष्ण लीला, दशावतार, मुंबई के कलाकारों द्वारा लेजर शो आदि का प्रदर्शन देर रात 11:30 बजे तक चला।

यह शायद पूर्वोत्तर में पहली बार प्रस्तुत किया गया था। स्थानीय बाबा रामदेव सेवा समिति के कार्यकर्ताओं के निर्देशन में \”बस चाली बाबे रे\” नृत्य और बाबा के अवतार का परचा की नाटिका ने सभी की खूब आकर्षित किया। पहले दिन से ही राजस्थान के फलौदी से पधारे आचार्यों द्वारा यज्ञ प्रारंभ किया गया जिसमें मुख्य यजमान श्री ओमप्रकाश जी भूत थे। सातवे दिन यज्ञ की पूर्णाहुति की गई। एक दिन बाबा को छप्पन भोग लगाने हेतु एक विराट शोभायात्रा निकाली गई जिसमें गजराज, गायन-बायन, नाना प्रकार की झाकियाँ और हजारों की संख्या में भक्तगण शामिल हुए थे।

9 फरवरी 2014 को बाबा की माघ मास की दशमी के दिन पूजा अर्चना और अमृत भंडारा के साथ समारोह का समापन हुआ। आमंत्रित आचार्यों के मतानुसार विश्व में बाबा का ये दूसरा महायज्ञ हुआ हैं। इससे पहले 1999 में रूनिचा में हुआ था। इस महायज्ञ में करीब 5000 से अधिक लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा लिया था।

 

Baba Shree Ramdevji Dibrugarh का चमत्कार

बाबा के अनेकोनेक परचे विख्यात हैं चाहे माता मैणा दें को परचा हो या फिर रूपा दर्जी को परचा या फिर लख्खी बंजारा को परचा। इसी प्रकार स्थानीय भक्तों को भी खूब परचे मिले हुए हैं जिनमें डिब्रूगढ़ के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ डूंगरमल माहेश्वरी, मेले की तैयारी करते वक्त आधी रात को एक व्यक्ति द्वारा गड्ढों को खोद देना एवं साथ बैठ जलपान ग्रहण करना, शिवसागर के श्री मनोज डेका, मौरान के श्री गौरीशंकर जी, आदी।

कुछ वर्ष पूर्व स्थानीय छात्र जो पुणे में पढ़ रहे थे घूमने के लिए कार से महाबलेश्वर गए थे एक जगह पहाड़ पर जब रुके तो देखा की गाड़ी की चाबी गाड़ी के अंदर ही है और गाड़ी लॉक हो गई हैं। सुनसान जगह कोई जीव जंतु भी नहीं दिख रहा। अचानक एक व्यक्ति बाइक के साथ दिखलाई पड़ता है। उससे मदद मांगने पर उसने किसी मेकेनिक के पास ले जाने का आश्वासन दिया और छात्र को मिस्त्री के पास ले गया।

छात्र जब उन्हें धन्यवाद कहने पीछे मुड़कर देखता है तो वहाँ किसी को नहीं पाता, मिस्त्री भी कहता है की आप किसी के साथ आए तो थे पर वो कब कहाँ गया पता नहीं। इसी प्रकार कोलकता के एक भक्त के बच्चे की अचानक बोली बंध हो गई थी। उसे डिब्रूगढ़ के मंदिर के किसी कार्यकर्ता ने बाबा के शरण में जाने को कहा और चरण जल पिलाने को कहा और चरण जल पिलाते ही अचानक से बच्चा बोलने लगा। एसे ही अनगिनत परचे है जो बाबा को ख्याति प्रदान करते हैं।

डिब्रूगढ़ बाबा रामदेवजी का मेला – Baba Shree Ramdevji Dibrugarh

जीर्णोद्धार के बाद से भादो सुदी दशमी का मेला जोर पकड़ने लगा और सन् 1995 से इसने भव्य रूप ले लिया जो आज तक बरकरार हैं। यह सर्वविदित है मेले की तैयारी प्रतिवर्ष 3-4 महीने शुरू हो जाती है मंदिर आबालवृद्ध कार्यकर्ता ही सारे काम करते है चाहे वो मंदिर के नाले की सफाई हो या सजावट का कार्य। इसलिए बाबा श्री रामदेव मंदिर, डिब्रूगढ़ को तकनीक का प्रशिक्षण केंद्र कहा जाता हैं।

मेले के दौरान स्थानीय अथवा बाहर से आए भक्त मंदिर के नियमों के अनुसार पंटों पंक्तिबद्ध होकर ही दर्शन पूजन करते है। वहीं मंदिर के कार्यकर्ता भी उनकी सेवा सुरक्षा पलक पांवड़े बिछाए तैयार खड़े दिखते है। पानी,शरबत, टाॅफी और तो मेवाड़ आइसक्रीम वाले भईया भी भक्तों को दिनभर मुफ्त आइसक्रीम खिलाकर पुण्य अर्जित करते हैं। स्थानीय संस्थाए श्री मारवाड़ी नाट्य समिति, मारवाड़ी युवा मंच, माहेश्वरी समाज, आदि बाहर से आए भक्तों के आवास खान-पान का जिम्मा उठाते हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार बाबा ने 33 वर्ष की अल्पायु में ही भादो सुदी एकादशी को हाथों में श्रीफल लेकर परिजनों, भक्तजनों की उपस्थिति में समाधि ले ली थी। उसी के एक दिन पूर्व भादो सुदी दशमी को यह उत्सव मनाया जाता हैं। इस दिन डिब्रूगढ़ धाम में असम के विभिन्न स्थानों से भक्त साइकिल स, पैदल चलकर, दंडवत करते हुए तो कोई घुटनों के बल चलकर बाबा के दर्शनों को आते हैं।
विशेष उल्लेखनीय है की मेले के दौरान स्थानीय प्रशासन, पुलिस प्रशासन, नगर पालिका, चिकित्सा सेवा, आदि का भरपूर सहयोग प्राप्त होता हैं।

बाबा रामदेवजी के मंदिर –

भारत में बाबा रामदेवजी के मंदिर हर स्थान पर है इस website के माध्यम से हम उन सभी मंदिरों के इतिहास से आपको रूबरू करवाएंगे

बाबा रामदेव समाधि स्थल जहाँ बाबा रामदेवजी रामापीर ने अपना समय व्यतित किया था उसे रुणिचा , रामदेवरा , रानुजा के नाम से विख्यात हे

बाबा रामदेवजी की जीवनी 

बाबा रामदेवजी मंदिर डिब्रूगढ़ FB पेज – 

Baba Shree Ramdevji Dibrugarh

रामदेवजी का प्रतीक चिन्ह क्या है?

रामदेवजी का प्रतिक चिन्ह पगलिया है।

रामदेव जी के घोड़े का नाम क्या था?

रामदेवजी के घोड़े का  लीला घोडा था।

बाबा रामदेव जी के कितने पुत्र थे?

रामदेवजी के दो पुत्र थे सादोजी तथा देवजी।

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