Maharaja Surajmal History in Hindi
जाट वीर महाराजा सूरजमल एक ऐसे शौर्य वीर और राजनेता थे, जिनकी वीरता की गाथा आज भी उत्तरी राजस्थान के किसी भी बच्चे को मालूम होगी। उनके परिवार और उनकी वीरगाथा राजस्थान में रोशनी की तरह फैली हुई है। महाराजा सूरजमल वही वीर योद्धा थे जिन्होंने पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठा सेना की महिलाओं और बच्चों को शरण दी थी और कई दिनों तक उनकी देखभाल की थी।
बचपन और परिवार
Maharaja Surajmal का जन्म 13 फरवरी 1707 को राजस्थान की बृज रियासत के महाराजा बदन सिंह और रानी देवकी के घर हुआ था। वे सात फुट दो इंच लंबे और 150 किलोग्राम वजन के थे। उनकी शारीरिक क्षमता बहुत अधिक थी और वे दोनों हाथों में एक साथ तलवार चला सकते थे। उनके पिता बदन सिंह ने उन्हें युवा ही अवस्था में सोगढ़िया रूस्तम पर आक्रमण करने के लिए भेजा था और यह उनके जीवन का पहला सफल अभियान था।

लोहागढ़ किले का निर्माण
सन् 1733 में महाराजा सूरजमल ने लोहागढ़ किले का निर्माण करवाया। इस किले की दीवारें इतनी मोटी और मजबूत थीं कि तोपों की गोलियां भी उन पर कोई असर नहीं कर पातीं। यह किला 6.4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था और दोहरी प्राचीर से घिरा हुआ था। इसकी बाहरी प्राचीर मिट्टी की बनी हुई थी और अंदरूनी प्राचीर पत्थर की बनी हुई थी। इस किले को ‘अजेयगढ़’ भी कहा जाता था क्योंकि न तो किसी मुस्लिम शासक को और न ही अंग्रेजों को इस किले पर कभी कब्जा करने में सफलता मिली।
भरतपुर रियासत की स्थापना
महाराजा सूरजमल ने भरतपुर रियासत की स्थापना की और उन्हें ‘बृजराज’ की उपाधि दी गई। उनके शासनकाल के दौरान भरतपुर जाट साम्राज्य नई ऊंचाइयों तक पहुंचा। जाट वीर महाराजा सूरजमल अपने जीवन में 80 युद्ध लड़े और सभी में विजयी रहे। बगरू की लड़ाई में भारी बारिश के बीच 50 घाव लगने के बावजूद उन्होंने अकेले 107 दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था।
जयपुर रियासत का संघर्ष
महाराजा जयसिंह की मृत्यु के बाद जयपुर रियासत को लेकर उनके दोनों पुत्रों ऐश्वर्य सिंह और माधव सिंह में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया। महाराजा सूरजमल ने ऐश्वर्य सिंह का समर्थन किया और आखिरकार 1748 में बहादुरगढ़ के युद्ध में अकेले ही 160 दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया। इस युद्ध में ऐश्वर्य सिंह को विजय मिली और वह जयपुर के राजा बने।
दिल्ली और आगरा पर आक्रमण
1753 में Maharaja Suraj mal ने दिल्ली पर आक्रमण किया और दिल्ली सहित शाहजहांपुर और गाजियाबाद तक अपने राज्य का विस्तार किया। 1761 में उन्होंने आगरा के किले पर भी कब्जा कर लिया था। मुगल बादशाह इस समय बहुत कमजोर पड़ चुके थे और उनके सामने महाराजा सूरजमल की ताकत के आगे कुछ नहीं कर पाए।
पानीपत की लड़ाई के बाद मराठों की मदद
जब पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठा सेना वापस लौट रही थी तो उनकी बहुत बुरी हालत हो गई थी। वे भूखे-प्यासे, जख्मी और कपड़ों के बिना थे। ऐसे में महारानी किशोरी ने जनता से अपील करके अनाज और कपड़े इकट्ठे किए और महाराजा सूरजमल ने 10 दिन तक मराठा सैनिकों को भरतपुर में रखा। हर सैनिक को एक रुपए और कुछ अनाज-कपड़े दिए गए ताकि वे घर जा सकें। कई मराठा परिवार तो वहीं बस गए और भरतपुर में ही मिल गए।

अंतिम युद्ध और वीरगति
1763 में महाराजा सूरजमल ने दिल्ली को चारों ओर से घेर लिया था। इसी बीच नवाब नाजिबुद्दौला की सेना ने घात लगाकर उन पर हमला कर दिया। इस युद्ध में 25 दिसंबर 1763 को उन्होंने 55 वर्ष की उम्र में वीरगती को प्राप्त हुवे ।
महाराजा सूरजमल की वीरगाथा
Maharaja Surajmal केवल एक योद्धा ही नहीं थे, बल्कि वे एक नैतिक गुणों से सम्पन्न विद्वान भी थे। उनका मानना था कि मानवता ही मनुष्य का एकमात्र धर्म है। उन्होंने भारत को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित करने और राष्ट्रीय एकता लाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था।
उन्होंने किसान वर्ग का बहुत सम्मान किया और व्यक्तिगत रूप से किसानों की समस्याओं को सुना तथा उनके समाधान के प्रयास किए। महाराजा सूरजमल ने समाज के गरीब और वंचित वर्गों की भी काफी सेवा की। उनके जीवन से प्रेरित होकर आज भी कई संस्थाएं स्थापित हैं, जैसे महाराजा सूरजमल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और महाराजा सूरजमल बृज यूनिवर्सिटी भरतपुर।
वीरता व साहस की मिसाल
बॉलीवुड की फिल्में जैसे बाजीराव मस्तानी, पद्मावत और पानीपत ने भारतीय इतिहास को बहुत ही विकृत रूप में पेश किया है। यह फिल्में अपने हिट होने के लिए ही बनाई जाती हैं, इतिहास की सच्चाई को दरकिनार कर दिया जाता है। इस तरह की फिल्मों से युवा पीढ़ी को गलत संदेश जाता है।
हालांकि, महाराजा सूरजमल की वीरगाथा ऐसी है जिसे किसी भी तरह से विकृत नहीं किया जा सकता। वे एक ऐसे अद्वितीय योद्धा थे जिन्होंने न सिर्फ अपने राज्य का विस्तार किया बल्कि मानवीय मूल्यों को भी आगे बढ़ाया। उनके जीवन से युवा पीढ़ी को साहस, निडरता और देशभक्ति की प्रेरणा लेनी चाहिए।

जाट वीर महाराजा सूरजमल की शौर्य गाथा हमारे स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय एकता के लिए एक प्रेरणास्रोत है। उनके जीवन से हम यह सीख सकते हैं कि देश सेवा करना हर नागरिक का कर्तव्य है। आइए, हम इस महान योद्धा और राजनेता को सलाम करते हैं और उनकी वीरगाथा को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का संकल्प लेते हैं।
शोधन कवि द्वारा सूरजमल चरित्र रचना
महाराजा सूरजमल के साहस और वीरता का वर्णन शोधन कवि ने ‘सूरजमल चरित्र’ नामक एक रचना में किया है। इस रचना में उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं और युद्धों का विस्तृत वर्णन है। कवि ने महाराजा के लगभग सभी 80 युद्धों का उल्लेख किया है, जिनमें वे विजयी रहे।
जाट वीर महाराजा सूरजमल का सम्मान
1994 में प्रसारित हुई हिंदी टेलीविजन श्रृंखला ‘द ग्रेट मराठा’ में महाराजा सूरजमल के चरित्र को अरुण माथुर द्वारा चित्रित किया गया था। 2019 की फिल्म ‘पानीपत’ में भी उनके किरदार को मनोज बाजपेयी द्वारा निभाया गया था। हालांकि, इस फिल्म में उनके चरित्र को कुछ गलत तरीके से पेश किया गया था, जिसका काफी विरोध भी हुआ।