Meera Bai Quotes in Hindi
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नींद्रा से ना डरियों नींद्रा जल की धार
नींद्रा से जो डरती मीरा केसे होती पार
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थारे बिना मारो जी नहीं लागे जग लागे है जंजाल
म्हारे तों थे सब हो ज्यू मीरा रे गिरधर गोपाल
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कृष्ण हर समय मेरे साथ हे फिर क्या कमी है
विरह मे नहीं प्रेम की वजह से आँखों मे नमी है
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प्यार तों प्यार हे इसमे क्या पूरा क्या आधा
दोनों की चाहत बेमिसाल हे चाहे मीरा हो या राधा
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प्रेम को समझने के लिए मीरा जेसा होना पड़ेगा
कभी प्रेम छुपाने पड़ेंगे तों कभी विश पीना पड़ेगा
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जहर के जाम मे फिर शयांम नजर आएगा
कोई बेराई तों इस दोर मे मीरा की तरह
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ह्रदय की हर धड़कन मे तेरा ही गीत पिरोना है
तू खो गई शयांम मे मुजे तेरे घुंघुरू मे खोना है
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अब आपका नाम साथ जुड़ गया है हमारे
कोई दीवाना कहता हे तों कोई पागल पुकारे
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त्याग कर राज पाठ वेरागी जीवन को अपनाया
दुनिया के मोह को त्याग हरिकीर्तन मे अपना जीवन बिताया
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चन्दा भी जाएगा सूरज भी जाएगा जाएगी धरती आकाशी
पवन पानी दोनों ही जाएंगे अटल रहे अविनाशी
तात मात भ्रात बन्दु आपनों ना कोई
छड़ी दही कुलकी कानी कहा कारी है कोई
वो कान्हा हे उसे सबका होना है
मे मीरा हु मुजे बस उसी का होना है
मीरा के प्रेम ज्ञान की राधा से तुलना हो जिनकी
दोनों हे एक समान शयांम रहते हे ह्रदय मे जिनकी
लगन ये मीराबाई सी कान्हा कहा से लाओगे
टूट गई जो साँसे मेरी तों केसे मिलन को आओगे
मेरे टो गिरधर गोपाल दूसरा ना कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पती सोई
Meera bai quotes in hindi
भारत की इस पावन धार पर कई श्री कृष्ण प्रेमी हुवे परंतु मीरा बाई जैसी कृष्ण प्रेम दीवानी न कभी कोई दूसरी हुई है न होगी । कृष्ण भक्त मीरा बाई का आज कोन नहीं जानता । एक ऐसी कृष्ण दीवानी जिसने अपनी पूरी जिंदगी भगवान श्री को समर्पित कर दी । आज के इस आर्टिकल मे हम आपको मीरा बाई के प्रसिद्ध दोहों से अवगत कराएंगे जिन्हे आप डाउनलोड भी कर सकते है ।
कृष्ण भक्त मीराबाई का जन्म सन 1498 ई॰ में पाली के कुड़की गांव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ मीरा बाई बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा का विवाह मेवाड़ की पावन धार के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। चित्तौड़गढ़ के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे।
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विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। मीरा बाई के पति की मृत्यु के बाद उन्हें अपने पति के साथ सती होना था परंतु इसके लिए तैयार नहीं हुईं। मीरा के पति का अंतिम संस्कार चित्तोड़ में मीरा की अनुपस्थिति में हुआ ओर पति की मृत्यु पर भी मीरा माता ने अपना श्रृंगार नहीं उतारा, क्योंकि वह गिरधर को अपना पति मानती थी।
मीरा बाई ने सभी मोह माय जो त्याग कर साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करने लगी । मीरा बाई के पती के जाने के बाद वो अपने जीवन को हरिकीर्तन मे समर्पित कर दिया जिससे उनका विश्वास गिरधर मे अटूट होने लगा । मीरा बाई मंदिरों मे जाकर श्री कृष्ण के मूर्ति के सामने कृष्ण प्रेम मे नाचने लगती जो राज परिवार को अच्छा नहीं लगता था , जिसके कारन उन्होंने कई बार मीराबाई को जान से मारने की कोशिश की, यहा तक विश भी देकर मारना चाहा ।
पर वो कहते है न जिस को स्वयं भगवान तारने वाला हो तो उसे कोन मार सकता है । घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर मीरा बाई द्वारका चली गई । मीरा का महल त्याग कर कृष्ण भक्ति मे अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित करने से मीरा की भक्ति का प्रकाश और अधिक फैलने लगा जिसके कारन मीरा को हर जगह सम्मान मिलने लगा ।
मीरा का समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल का समय रहा है। मीरा बाई का महल को त्यागना मेवाड़ का सबसे बाद दुर्भाग्य था । मीरा बाई के जाने से मेवाड़ की खुशी चली गई । मेवाड़ पर संकट के बादल छाने लगे । मेवाड़ पर विदेशी ताकतों का आक्रमण हुआ । बाबर का हिंदुस्तान पर हमला और प्रसिद्ध खानवा का युद्ध उसी समय हुआ था।
इन सभी परिस्थितियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण पद्धति सर्वमान्य बनी। और कहते है की मेवाड़ मे खुशियों का उदय महाराणा प्रताप के जन्म होने से हुआ । और अंत मे मीरा बाई ने स्वयं को भगवान श्री कृष्ण को पूर्ण रूम से समर्पित कर श्री कृष्ण मे समय गई ।