Premanand Ji Maharaj Biography in Hindi
श्री हित प्रेमानंद जी महाराज को भगवान की भक्ति के लिए किस घटना ने प्रेरित किया ?
Premanand Ji Maharaj एक विनम्र और अत्यंत पवित्र ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे रखा गया था इनका जन्म कानपुर उत्तर प्रदेश में हुआ जब महाराज जी कक्षा 5 में पढ़ते थे सताने लगी कि एक दिन मेरी मां मर जाएगी मेरे पिता भी मर जाएंगे ये जीवन ओर यहा कोई भी टिकाऊ या स्थाई नहीं सब मरने वाले हैं उनको यह एहसास हुआ कि किसे हम अपना माने किस से हम अपनापन करें यहां सब कोई नष्ट होने वाला है कभी भी कोई भी मर सकता है कोई तो ऐसा होना चाहिए जिससे हम प्यार करें और वह सदैव हमारे पास रहे एक रास्ता निकला की एकमात्र भगवान के सिवा कोई ऐसा नहीं जो हर पल और हमेशा हमारे साथ रहे चाहे दुख हो या सुख इस बात ने उन्हें भगवान को पाने के लिए प्रेरित किया |
श्री हित प्रेमानंद जी महाराज का वाराणसी का जीवन – Premanand Ji Maharaj in Varanasi
Premanand Ji Maharaj ने 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर का त्याग वह भगवान की तरफ वाराणसी के घाटों में गए ओर भगवान प्राप्ति करनी है ऐसा उन्होंने ठान लिया ओर कहा की मुझे भगवत प्राप्ति करनी है |
उनके पिता मान गए और बोले कि जो करना है करो परंतु कभी सुनने में भी नहीं आना चाहिए कि तुम किसी भी खराब विचार ओर गंदे आचरण मे हो ऐसा सुनने में आया तो किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी हम खुद ही तुम्हें मार देंगे महाराज जी ने वचन दिया हमें केवल भगवत प्राप्ति से मतलब है आपको कुछ गलत सुनने में नहीं आएगा उसके बाद Premanand Ji Maharaj का आधा जीवन वाराणसी के घाटों में अत्यंत कष्ट से गुजरा गंगा की तपोस्थली वाराणसी मे उनका नियम था कि वे दिन भर में 3 बार गंगा मे स्नान करते थे ओर तुलसी घाट पर एक विशाल वृक्ष के नीचे आकर बैठ कर ध्यान करते थे |
Biography Of Premanand Ji Maharaj
Premanand Ji Maharaj वाराणसी मे भोजन कैसे किया करते थे ??
गंगा जी और भगवान महादेव का ध्यान करना उसके बाद वहीं भिखारियों की लाइन में बैठ कर इंतजार करना कि थोड़ा कुछ खाने को मिले और वह भी दिन में केवल एक बार 10 से 15 मिनट के लिए भिखारियों के बीच में बैठे यदि इतने समय में कोई आकर दे गया कुछ खाने को तो ठीक नहीं तो गंगा जल पीकर भगवान का ध्यान करते हुए करें चल दिए अपने 24 घंटे के एकांतवास के लिए इस प्रकार की दिनचर्या में प्रेमानंद महाराज जी कई कई दिनों तक बिना भोजन के ही मात्र गंगा जल पीकर ही रहना पड़ता और ऐसे में यदि कोई रोटी खाता हुआ दिख जाए तोPremanand Ji Maharaj सोचते प्रभु कितना भाग्यशाली है रोटी खाने को मिल रही है
श्री हित प्रेमानंद जी महाराज जी के सर पर छत नहीं हुआ करती थी उन्होंने किसी भी जगह रहने का त्याग कर खुले आकाश के नीचे रहने का निश्चित किया था कड़ाके की ठंड में भी तीन बार गंगा स्नान करते थे महाराज जी कहते हैं भगवान की कृपा से आज तक सर्दी बुखार नहीं हुआ |
Premanand Ji Maharaj का जीवन अत्यंत कष्ट से चल ही रहा था लेकिन असली मुसीबत तब आई जब पता चला इनकी दोनों किडनी खराब हो गई है जहां रहते थे वहां से निकाल दिए गए उनका कहना था की पता नहीं कब मर जाए कुछ पता नहीं यह बताने से पहले हम यह देखते हैं कैसे महाराज जी वाराणसी से वृंदावन आए |
श्री हित प्रेमानन्द जी Premanand Ji Maharaj महाराज वाराणसी से वृंदावन आने की कथा –
एक दिन अचानक से उनके ह्रदय में भगवान महादेव जी की कृपा से उनके मन मे एक विचार आया की कैसा होगा वृंदावन पर उन्होंने इस बात पर उतना ध्यान नहीं दिया अगले दिन फिर रोज के नियम अनुसार तुलसी घाट पर बैठे हुए थे उनके पास एक अपरिचित इंसान आया और बोला कि भाई जी भाई जी सी हनुमान जी का विश्वविद्यालय काशी में स्थित है उसमें श् आचार्य जी द्वारा ही धार्मिक आयोजन का प्रबंध किया गया है इसमें दिन में श्री चैतन्य लीला एवं रात्रि में रासलीला का मंचन होना है , महात्मा हम दोनों लीला का दर्शन करने चलते हैं महाराज जी ने कभी रासलीला तो नहीं देखी थी महाराज जी का स्वभाव था वे हमेशा एकांत में रहना पसंद करते थे इसलिए कह दिया आप जाइए मुझे आवश्यकता नहीं है
बाबा जी फिर बोले अरे महात्मा श्री धाम वृंदावन से कलाकार आए हुए हैं और यह लीला पूरे 1 महीने तक चलेगी चलो चलते दर्शन करके आते हैं बड़ा आनंद आएगा महाराज जी फिर बोले आपको दर्शन करने जाना है तो आप चाहिए मुझे आवश्यकता नहीं है मैं अपने में मस्त हूं आप मुझे क्यों हट कर रहे हैं पर बाबा जी कहां मानने वाले अरे महात्मा बस एक बार मेरी बात मान लो एक बार मेरे कहने पर चलो फिर दोबारा नहीं कहूंगा महाराज जी ने सोचा कि यह बाबा जी इतना हट क्यों कर रहे हैं शायद इसमें महादेव जी की कोई इच्छा होगी ऐसा सोच कर और उन बाबाजी की बात रखने के लिए महाराज बाबाजी के साथ लीला देखने चले गए
श्री चेतन लीला का मंचन हो रहा था
Premanand Ji Maharaj ने भी देखी तो बड़ा आनंद आया लीला देखकर महाराज को इतना आनंद आया की रासलीला प्रारंभ होने के पहले महाराज जी लीला देखने पहुंच गए श्री चैतन्य लीला ओर रासलीला से इतने प्रभावित हुए कि 1 महीने तक उनका हर दिन महाराज जी लीला का दर्शन करने जाते ओर किस प्रकार 1 महीना निकल गया पता ही नहीं चला |
ज्ञात हुआ कि अरे लीला तो समाप्त हो गई कलाकार वापस वृंदावन जा रहे हैं अब मेरा क्या होगा या सोच उनके मन में हाहाकार मच गया अब मैं क्या करूंगा मेरा क्या होगा अब मैं जिऊंगा कैसे मुझे तो वृंदावन जाना है महाराज जी सोचने लगे यह सब कलाकार वापस वृंदावन जा रहे हैं वृंदावन मे भी यह सब ऐसे ही लीलाओं का आयोजन करते रहते होंगे अगर मैं इनके साथ लग जाऊं तो मुझे रोज लीला देखने को मिलती रहेगी इसके बदले में मैं इनकी सेवा करता रहूंगा मन में ऐसा भाव लेकर महाराज जी टीम के संचालक के पास पहुंचे और उन्हें साष्टांग दंडवत करके अपने मन के भाव उनके सामने प्रकट किए स्वामी जी हम गरीब बाबा है हमारे पास पैसे तो है नहीं मैं आपकी सेवा करूंगा मुझे अपने पास रख लो मुझे अपने पास रख लो संचालक महोदय बड़ी विनम्र भाव से बोले कि अरे नहीं बाबा ऐसा तो संभव ही नहीं है ऐसे कैसे हो सकता है महाराज जी बोले कि स्वामी जी हम सिर्फ रासलीला देखना चाहते हैं और कुछ नहीं तब संचालक महोदय बोले – बाबा तू बस एक बार वृंदावन बिहारी जी तुझे छोड़ेंगे नहीं महाराज जी कहते हैं कि इस वाक्य ने मेरा जीवन बदल कर रख दिया मैं इस वाक्य को गुरु मंत्र मानता हूं और संचालक महोदय को अपना गुरु, इसके बाद उनके मन में एक ही लगन लग गई कि मुझे वृंदावन जाना है मुझे वृंदावन जाना है जाना है , जो महाराज जी अपने नित्य नियम अनुसार भगवान का ध्यान करते हुए अपने भजन और एकांतवास में मस्त थे आज वह वृंदावन जाने के लिए पागलों की तरह हट लगाए बैठे हैं |
Premanand Ji Maharaj का ध्यान
एक माह की लीला का दर्शन करने के बाद महाराज जी फिर अपने पुराने नियम के अनुसार गंगा जी में स्नान कर तुलसी घाट पर बैठकर ध्यान करने लगे और विचार के लिए बैठकर एकांतवास के लिए निकल जाने वाला उनका क्रम फिर से शुरू हो गया लेकिन इस दिनचर्या में एक नई बात जुड़ गई बात यह थी कि मुझे वृंदावन जाना है मुझे बस कैसे भी वृंदावन जाना है कुछ दिन तक ही चला 1 दिन महाराज जी प्रातः काल तुलसी घाट पर ध्यान में बैठे हुए थे पास में ही स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर के बाबा जुगल किशोर जी प्रसाद लेकर महाराज जी के पास आए और बोले कि लो बाबा प्रसाद ले लो अब महाराज जी ठहरे एकांतवास थी उनका तो था नहीं ऐसी कुछ खाने को दे दे उन्होंने उचित नहीं समझा इसलिए बोले क्यों ले लो यह मुझे क्यों दे रहे हो इतने सारे लोग हैं किसी को भी दे दो युगल किशोर जी बोले की मंदिर से बाबा की प्रेरणा हुई है आप ही को देना है संकटमोचन का प्रसाद है ले लीजिए जब महाराज जी को उनके व्यवहार से प्रतीत हुआ कि इनसे कोई खतरा नहीं है तो बाबा जी ने प्रसाद स्वीकार कर लिया प्रसाद पाया उसके बाद बाबा जुगल किशोर जी बोले , बाबा चलो मेरी कुटिया उनके इतने प्यार से बोलने पर महाराज जी उनकी कुटिया में गए जहां जुगल किशोर जी ने अपने हाथ से दाल रोटी बनाकर महाराज को खिलाया इससे महाराज की भूख तो शांत हो गई लेकिन उसका क्या उनके मन में लगी है चाहे कैसी भी परिस्थितियां हो महाराज जी के मन में एक बात हमेशा रहती है मुझे वृंदावन जाना है क्योंकि उन्हें भले मनुष्य प्रतीत हो रहे थे इसलिए उन्होंने जुगल किशोर जी से पूछा आप मुझे वृंदावन पहुंचा सकते हैं जैसे जुगल किशोर जी तैयार ही बैठे थे बोले , बाबा जरूर पहुंचा सकता हूं बताइए आपको कब जाना है महाराज जी बोले हम तो तैयार ही बैठे हैं जब आप प्रबंधन कर दो तब चले जाएं जुगल किशोर जी बोले ठीक है आप कल की तैयारी कीजिए ले चलूंगा|
रूम रूम रोमांचित हो उठा मन प्रसन्न हो गया जाना है आखिरकार कल वृंदावन जाना है युगल किशोर जी ने मथुरा जाने वाली रेलगाड़ी में महाराज जी को बैठा दिया अब देखो रेल गाड़ी में मथुरा की यात्रा के दौरान दो लोगों से महाराज जी का परिचय हुआ जो महाराज जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें कुछ रुपए देने लगे क्योंकि महाराज जी के पास ₹1 भी नहीं था फिर भी उन्होंने रुपए लेने से इनकार कर दिया दोनों लोग महाराज जी से बोले हम भी मथुरा जा रहे हैं आप हमारे साथ चलो हम जहां ठहरे हैं आज रात आप भी वही विश्राम करके कल सुबह वृंदावन चले जाना ठीक है भैया आज तुम्हारे साथ रुक जाता हूं मथुरा में राधे श्याम गेस्ट हाउस के बाहर महाराज जी को बैठा कर वे लोग बोले हम अंदर जा रहे हैं थोड़ी देर में आपको बुलाएंगे रात का समय था ठंडी का मौसम था महाराज जी गेस्ट हाउस के बाहर बैठकर अपने बुलावे का इंतजार करने लगे और बहुत समय बीत गया कोई बुलाने नहीं आया कुछ देर बाद मथुरा से वृंदावन चले जाएंगे इन्हीं विचारों में खोए हुए प्रेमानंद महाराज जी राधे श्याम गेस्ट हाउस के बाहर बैठे हुए थे उस समय रात्रि के 11:00 बजे के आसपास समय हो रहा होगा एक सज्जन आए और बोले बाबा जय श्री कृष्णा कैसे बैठे हो अकेले इतनी रात को यहां महाराज जी ने सारी कहानी उन सज्जन को बताए सज्जन महाराज जी को अपने घर ले गए उन्हें भरपेट स्वादिष्ट भोजन कराया और रात्रि को विश्राम कराया अगले दिन सुबह होते ही महाराज जी सबसे पहले पहुंचे यमुना जी ,
यमुना जी में स्नान करके सीधा पहुंच गए केशव देव जी के दर्शन करने जैसे ही दर्शन किए चिल्ला चिल्ला कर रोना आ गया भगवान कृष्ण के लिए आए थे महाराज जी भाव में खो के भगवान का नाम लेकर चिल्ला चिल्ला के रोने लगे अब तक के जीवन का सार मिल गया हो मन में भाव उठने लगे कि जीवन व्यर्थ चला गया पूरा जीवन भाग दौड़ में व्यतीत हो गया आज तो यही है इस प्रकार के भाव के कारण खूब जोर-जोर से चिल्ला चिल्ला कर रोने लगे महाराज जी के स्वरूप का वर्णन करूं तो बड़ी-बड़ी जटाए चेहरे पर एक अप्रतिम चमक विशालकाय शरीर बड़ी-बड़ी दाढ़ी और शरीर पर एक वस्त्र लपेटे हुए भगवान का दर्शन कर रहे हैं ,
उन्हें इस बात का जरा भी ख्याल नहीं कि मैं कहां खड़े हैं क्या कर रहे हैं उन्हें कौन-कौन देख रहा है बस रोए जा रहे हैं रोए जा रहे हैं मंदिर में आए अन्य लोग आश्चर्यचकित हो गए यह दृश्य देखकर ऐसा लग रहा था मानो आज भगवान स्वयं अपने भक्तों को दुलार में प्रकट हो गए हो|
एक साधक ने महाराज जी के व्यवस्था करके महाराज जी को मथुरा से विदा किया उस गाड़ी वाले ने महाराज जी को रमणरेती 13 में उतार दिया रमणरेती में कुछ देर घूमने के बाद महाराज जी की भेट होती है संत श्री श्याम सखा जी से उनसे महाराज जी ने निवेदन किया कि मैं बनारस से आया हूं बिहारी जी के दर्शन करना चाहता हूं यदि तीन-चार दिन रहने की व्यवस्था हो जाए तो बड़ी कृपा होगी इस प्रकार महाराज जी ने वृंदावन एवं ब्रजमंडल दर्शन का आनंद लिया महाराज जी के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव थे लेकिन अब उनके जीवन में ऐसा समय आया जो उन्हें राधा रानी के बिल्कुल करीब ले आया
श्री प्रेमानंद महाराज जी Premanand Ji Maharaj की किडीनिया किस आयु मे खराब हो गई थी ?
Premanand Ji Maharaj कहते हैं की आयु 35 वर्ष के लगभग हुई तो उस समय तक मेरे पेट में बहुत ज्यादा बढ़ गई थी जिस कारण में रामकृष्ण मिशन में जांच कराने गया मुझे बोले कि तुम्हारी दोनों किडनी आधे से ज्यादा खराब हो चुकी है तुम्हें पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज नाम का रोग है इस बीमारी में किडनी पर हजारों की संख्या में कीड़े बन जाते हैं कभी-कभी किडनी फटने का भी खतरा रहता है किडनी का यह रोग जींस में होता है माता-पिता से बच्चों में आता है और कुछ ही सालों में किडनी पूरी तरह से खराब हो जाती है तुम्हारे पास ज्यादा से ज्यादा 4 से 5 साल का वक्त है इससे अधिक नहीं इसके बाद तुम मर जाओगे मेरी ऐसी दशा हुआ करती थी मैं वही खा सकता था जो मांग कर लाता था यदि किसी दिन अपेक्षा नहीं मिलती तो भूखे पड़े रहते हैं
पर आज राधा रानी की कृपा से मे स्वस्थ हु |
ये थी श्री प्रेमानंद महाराज जी Premanand Ji Maharaj की कहानी अगर आप इन से मिलना चाहते है तो आप वृंदावन जाके मिल सकते है ओर इनके प्रवचन आपको यूट्यूब पे मिल जाएंगे
|| राधे राधे ||
श्री प्रेमानंद महाराज की आयु कितनी है?
ऐसा भक्तों के द्वारा कहा जाता है की अब महाराज जी Premanand Ji Maharaj की आयु 60 वर्ष हो चुकी है |
श्री प्रेमानंद महाराज जी Premanand Ji Maharaj से भक्तों को मिलना हो तो वह कोनस स्थान है ?
श्री प्रेमानंद महाराज जी Premanand Ji Maharajभक्तगण राधा रानी के के स्थान मथुरा वृंदावन मे मिल सकते है |
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